इ नालंदा एसपी हैं साहब। नीलेश कुमार हैं। इनकी बात-व्यवहार की अपनी अनूठी शैली है। अगर विश्वास न हो तो उनकी एक पीड़ित के साथ हुई बातचीत सुनिए। पता चल जाएगा कि पुलिस वालों को डीजीपी साहब द्वारा मिले इस निर्देश का कितनी संवेदशीलता से अमल करते हैं कि पब्लिक के साथ शालीनता से बात करें। पीड़ित की शिकायत को गंभीरता से लें। उनका मजाक न उड़ाएं।
राजगीर के एक बीमा कंपनी अभिकर्ता की पलक झपकते ही दिनदहाड़े भीड़ भरी इलाके से बाइक चोरी हो जाती है। वह तुरंत थानेदार और डीएसपी को फोन करता है। संभव है कि राजगीर पुलिस के हालिया नकारा कार्यकलापों को लेकर पीड़ित के मन में शंका हो और उसने एसपी से गुहार यह सोच कर लगाइ हो कि वे आस पास के थानों को अलर्ट कर बाईक चोर को दबोचवा लें।
लेकिन एसपी साहब ने जो कुछ भी कहा, उसमें कई आपतिजनक कथन छुपे हैं। पहला थाना-डीएसपी को सूचना दे दी है तो चुपचाप बैठिए। दूसरा, यहां के लोगों को एक बीमारी हो गया है एसपी से बात करने का। लैट्रिन भी लगता है तो सब एसपी को ही फोन करता है, एसपी लैट्रिन करवाएगा क्या।
अब भला एसपी साहब को ई कौन समझाए कि उनकी राजगीर पुलिस कितनी चुस्त-दुरुस्त है और आम पीड़ित को क्या मालूम है कि किस तरह के लोग उन्हें फोन कर-कर के यूं भिनभिनाए हुए है।