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नालंदा के स्वास्थ्यकर्मियों ने ठुकराया हेपेटाइटिस बी का सुरक्षा कवच!

बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। नालंदा जिले के अस्पतालों में रोजाना दर्जनों मरीज हेपेटाइटिस बी की चपेट में आते हैं। ये मरीज न केवल खुद पीड़ित होते हैं, बल्कि इलाज करने वाले डॉक्टरों, नर्सों और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों के लिए भी गंभीर खतरा बनते हैं। संक्रमण का जोखिम हमेशा मंडराता रहता है, क्योंकि स्वास्थ्यकर्मी मरीजों के सबसे करीब संपर्क में रहते हैं।

इसी खतरे को भांपते हुए बिहार सरकार ने स्वास्थ्य विभाग को हेपेटाइटिस बी से बचाव की निःशुल्क वैक्सीन उपलब्ध कराई थी। प्राथमिकता स्वास्थ्यकर्मियों को दी गई, ताकि वे सुरक्षित रहें और मरीजों का इलाज बेझिझक कर सकें।

चौंकाने वाली बात यह है कि जिले में वैक्सीनेशन अभियान पूरी तरह फ्लॉप हो गया। अधिकांश स्वास्थ्यकर्मी टीका लगवाने से कतराते रहे, जबकि कुछ ने निजी अस्पतालों में पहले से वैक्सीन लगवा ली थी। नतीजा? बड़ी संख्या में वैक्सीन बेकार पड़ी रही और अंततः स्टॉक वापस लौटाना पड़ा।

यह स्थिति न केवल स्वास्थ्य विभाग के लिए शर्मिंदगी का सबब बनी है, बल्कि एक गंभीर चेतावनी भी है। हेपेटाइटिस बी एक खतरनाक वायरस है, जो लीवर को बुरी तरह प्रभावित करता है और लंबे समय में कैंसर या सिरोसिस जैसी जानलेवा बीमारियां पैदा कर सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार यह वायरस खून, सुई या असुरक्षित यौन संपर्क से फैलता है। अस्पतालों में तो यह जोखिम और भी ज्यादा है, जहां सर्जरी, इंजेक्शन या ब्लड ट्रांसफ्यूजन जैसी प्रक्रियाएं रोज होती हैं। सरकार ने इसी जोखिम को देखते हुए स्वास्थ्यकर्मियों को प्राथमिकता दी थी। वैक्सीन निःशुल्क थी, अभियान चलाया गया, लेकिन रुचि की कमी ने सारे प्रयासों पर पानी फेर दिया।

जिले को कुल 4000 वैक्सीन डोज उपलब्ध कराई गई थीं। योजना के तहत सभी स्वास्थ्यकर्मियों को तीन डोज का पूरा कोर्स कराना था। लेकिन अभियान अपेक्षित स्तर पर सफल नहीं हो सका। काफी प्रचार-प्रसार और प्रयासों के बावजूद जिले के 18 प्रखंडों में केवल 866 स्वास्थ्यकर्मियों ने पहली डोज ली। दूसरी डोज तक तो महज 40 कर्मी ही पहुंच सके। तीसरी डोज का तो जिक्र ही नहीं!

प्रखंडवार आंकड़े और भी निराशाजनक हैं। करायपरसुराय में सबसे अधिक 75 स्वास्थ्यकर्मियों ने टीका लगवाया। इस्लामपुर में 74 कर्मी, जिला अस्पताल में 62 कर्मी समेत अन्य प्रखंडों में संख्या और कम रही। सिलाव और बिहारशरीफ प्रखंड में एक भी स्वास्थ्यकर्मी ने टीका नहीं लिया।

ये आंकड़े स्वास्थ्य विभाग के लिए बड़ा झटका हैं। जिला एपिडेमियोलॉजिस्ट डॉक्टर का कहना है कि हमने हर संभव कोशिश की। मीटिंग्स कीं, जागरूकता अभियान चलाए, लेकिन कई कर्मी टीका लेने से बचते रहे। कुछ का कहना था कि वे पहले से निजी क्लिनिक में वैक्सीन लगवा चुके हैं तो सरकारी की जरूरत नहीं। जबकि कुछ ने अफवाहों या साइड इफेक्ट्स के डर से मना कर दिया।

पहली डोज लेने वाले 866 कर्मियों के लिए तीनों डोज का स्टॉक सुरक्षित रखा गया है। लेकिन शेष लगभग 1400 वैक्सीन को एक्सपायरी से बचाने के लिए राज्य स्वास्थ्य विभाग को वापस भेज दिया गया।

जिला एपिडेमियोलॉजिस्ट के अनुसार वैक्सीन की वैलिडिटी सीमित होती है। अगर उपयोग नहीं हुई तो बर्बाद हो जाती। इसलिए हमने बची हुई डोज स्टेट को लौटा दीं। अब जिन्होंने पहली डोज ली है, उन्हें हर दो महीने के अंतराल पर दूसरी और तीसरी डोज दी जाएगी।

हेपेटाइटिस बी वैक्सीन का पूरा कोर्स तीन डोज का होता है। पहली डोज शुरू में। दूसरी डोज पहली के एक महीने बाद (कुछ मामलों में दो महीने) और तीसरी डोज दूसरी के छह महीने बाद। अगर सभी डोज समय पर ली जाएं, तो यह वैक्सीन 95% तक प्रभावी होती है और आजीवन सुरक्षा प्रदान करती है। लेकिन अधूरा कोर्स लेने से बचाव कमजोर पड़ जाता है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि टीकाकरण में कमी की कई वजहें हैं। पहली, जागरूकता की कमी। कई कर्मी हेपेटाइटिस बी के जोखिम को गंभीरता से नहीं लेते। दूसरी अफवाहें। सोशल मीडिया पर वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स की झूठी खबरें फैलती रहती हैं। तीसरी सुविधा की कमी। कुछ प्रखंडों में वैक्सीनेशन सेंटर दूर होने से कर्मी नहीं पहुंच पाते। और चौथी निजी वैक्सीनेशन का चलन। कई स्वास्थ्यकर्मी सरकारी की बजाय पैसे देकर प्राइवेट में लगवाना पसंद करते हैं।

एक वरिष्ठ चिकित्सक ने कहा कि यह विडंबना है कि जो लोग दूसरों की जान बचाते हैं, वे खुद की सुरक्षा को नजरअंदाज कर रहे हैं। हेपेटाइटिस बी से हर साल लाखों लोग प्रभावित होते हैं। स्वास्थ्यकर्मी फ्रंटलाइन वॉरियर्स हैं, उनका टीकाकरण अनिवार्य होना चाहिए।

स्वास्थ्य विभाग अब नई रणनीति पर काम कर रहा है। जिला प्रतिरक्षण अधिकारी ने बताया कि बचे हुए कर्मियों के लिए विशेष कैंप आयोजित किए जाएंगे। साथ ही अनिवार्य टीकाकरण पर विचार हो रहा है।

नालंदा दर्पण की जांच में पता चला कि जिले में हेपेटाइटिस बी के मामले बढ़ रहे हैं। पिछले साल सदर अस्पताल में ही 200 से अधिक मरीज भर्ती हुए। अगर स्वास्थ्यकर्मी खुद असुरक्षित रहेंगे तो संक्रमण की चेन नहीं टूटेगी। यह अभियान की असफलता एक सबक है। सरकार, विभाग और स्वास्थ्यकर्मियों को मिलकर प्रयास करने होंगे।

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