
नालंदा दर्पण डेस्क। सीमावर्ती दनियावां प्रखंड अंतर्गत पारथु पंचायत स्थित पारथु मिडिल स्कूल की कुछ चौंकाने वाली तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं, जो ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था की हकीकत को बेनकाब कर रही हैं। हालांकि नालंदा दर्पण इन वायरल तस्वीरों की पुष्टि नहीं करता और यह विभागीय जांच का विषय है।
इन तस्वीरों में स्कूल के एक शिक्षक क्लासरूम में ही आराम फरमाते, सोते हुए या मोबाइल पर व्यस्त नजर आ रहे हैं, जबकि बच्चे अपनी पढ़ाई में लगे हुए हैं। यह दृश्य शिक्षकों की जिम्मेदारी एवं शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर पर सवाल उठाता है। आइए, इन तस्वीरों के माध्यम से विस्तार से समझते हैं।

तस्वीरों का गहन अध्ययन करने पर पता चलता है कि विद्यालय का क्लासरूम काफी साधारण है। पीछे की दीवार पर रंग-बिरंगे पोस्टर लगे हैं, जिनमें हिंदी में शब्द जैसे ‘काला, उजला, नारंगी और आसमानी लिखे हैं। जोकि प्राथमिक स्तर की शिक्षा का संकेत देते हैं।
ब्लैकबोर्ड पर गणित की साधारण गणनाएं जैसे जोड़, घटाव और गुणा-भाग के उदाहरण अंकित हैं, लेकिन शिक्षक की भूमिका कहीं नजर नहीं आती। पहली तस्वीर में शिक्षक अपनी डेस्क पर पैर को ऊपर उठाकर आराम की मुद्रा में हैं । जबकि सामने बैठे बच्चे नोटबुक में लिख रहे हैं। उनकी आंखें बंद हैं और चेहरा थका हुआ लग रहा है। मानो क्लास लेने की बजाय वे खुद ही पढ़ाई कर रहे हों।

दूसरी तस्वीर और भी हैरान करने वाली है। यहां शिक्षक कुर्सी पर सिर झुकाए, आंखें बंद करके सोते हुए दिख रहे हैं। उनके बगल में एक बैग रखा है और डेस्क पर नोटबुक, लेकिन कोई शिक्षण गतिविधि नहीं। बच्चे अपनी जगह पर बैठकर काम कर रहे हैं, लेकिन बिना किसी मार्गदर्शन के।
तीसरी तस्वीर में शिक्षक कान में ईयरफोन लगाए, सिर झुकाकर मोबाइल या किसी डिवाइस पर ध्यान केंद्रित किए हुए हैं। शायद वे संगीत सुन रहे हों या वीडियो देख रहे हों, लेकिन क्लासरूम में यह व्यवहार पूरी तरह अनुचित है।

चौथी तस्वीर में एक अन्य व्यक्ति ब्लैकबोर्ड की ओर इशारा कर रहा है, जबकि मुख्य शिक्षक फिर से झुके हुए बैठे हैं, मानो क्लास से बेखबर। इन सभी दृश्यों में बच्चे नीले यूनिफॉर्म में शांतिपूर्वक अपनी पढ़ाई जारी रखे हुए हैं, जो उनकी लगन को तो दर्शाता है। लेकिन शिक्षक की अनुपस्थिति जैसी स्थिति शिक्षा की गुणवत्ता पर बड़ा सवाल खड़ा करती है।

यह स्थिति पारथु मध्य विद्यालय तक सीमित नहीं लगती। कई ग्रामीण स्कूलों में शिक्षकों की अनियमितता, देरी से आना या क्लास में असक्रिय रहना एक आम समस्या बन चुकी है।
स्थानीय निवासियों के अनुसार शिक्षा विभाग की ओर से निगरानी की कमी, शिक्षकों पर कोई सख्त कार्रवाई न होना और संसाधनों की कमी इसकी मुख्य वजहें हैं। बच्चे सरकारी स्कूल में इसलिए जाते हैं क्योंकि प्राइवेट स्कूलों की फीस नहीं चुका सकते, लेकिन यहां शिक्षक खुद ही पढ़ाई से दूर रहते हैं। क्या शिक्षा विभाग सो रहा है?
शिक्षा विभाग की स्थिति तो और भी दयनीय है। राज्य में निगरानी तंत्र कमजोर होने से ऐसी घटनाएं सामने आती रहती हैं। इन तस्वीरों से साफ है कि विभाग ने क्या स्थिति बना रखी है। यदि समय रहते सुधार नहीं किया गया तो ग्रामीण बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो सकता है।









