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    Saturday, April 20, 2024
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      25 साल बाद यूं घर वापसी की तैयारी में जुटे पूर्व विधायक अनिल सिंह !

      अब उन्हें एक मात्र ठिकाना अब कांग्रेस दिख रहा है। बदले राजनीतिक समीकरण में हरनौत सीट भी कांग्रेस के खाते में चली गई है। कांग्रेस ने अभी तक प्रत्याशी के नाम की घोषणा नही की है....

      नालंदा दर्पण/जयप्रकाश नवीन।  ‘न जाने किस भंवर में है जिंदगी।  ठहाके मौन है,गायब हंसी है। नही परछाईयाँ तक साथ देतीं, इसी का नाम शायद बेबसी है……..’ किसी कवि की यह पंक्ति विलोपित चंडी विधानसभा के पूर्व विधायक पर अक्षरशः सटीक बैठती है।

      anil singh 3पिछले दो दशक से राजनीतिक हाशिये और राजनीतिक वनबास झेल रहे पूर्व विधायक अनिल सिंह 26 साल बाद फिर से अपने पुराने राजनीतिक दल कांग्रेस में घर वापसी की तैयारी में जुट गयें है।

      पिछले 20 साल से विभिन्न राजनीतिक दलों की परिक्रमा करने के बाद हताश, निराश उनके लिए अब एकमात्र उपाय घर वापसी ही रह गया है।

      चुनावी फिजां आते ही उनके अंदर की अंतरात्मा हमेशा जाग जाती है। यही वजह है कि वे हमेशा किसी खास दल से अपने लिए एक अदद टिकट की पैरवी के लिए हाथ पैर मारना शुरू कर देते है, लेकिन जब दाल नहीं गलती है तो मजबूरन किसी क्षेत्रीय दलों का दामन थामना पड़ता है।

      चंडी विधानसभा क्षेत्र से पांच बार विधायक और विभिन्न विभागों में मंत्री रहे डा. रामराज सिंह के पुत्र अनिल सिंह अपने पिता के असामयिक निधन के बाद राजनीति में आए।

      वर्ष 1983 में चंडी विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस ने उन्हे टिकट दिया। लेकिन वे अपने पिता के निधन की सहानुभूति वोट नहीं बटोर सके। नतीजा यह हुआ कि चंडी की जनता ने उन्हें नकार दिया।

      इस हार के बाद उन्होंने राजनीति से तौबा कर ली और रांची चले गये। जब 1985 का विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हुई तो फिर से कुछ लोगों ने उन्हें चुनाव मैदान में उतरने की गुहार लगाई।

      उनके नजदीकी लोगों ने विरासत की राजनीति का वास्ता दिया। अनमने फिर से चुनाव मैदान में आएं। किस्मत ने इस बार साथ दिया। बड़े अंतर से चुनाव भी जीते। फिर वर्ष 1990 में अपने प्रतिद्वंद्वी हरिनारायण सिंह से हार का सामना करना पड़ा।

      वर्ष 1993 का साल बिहार की राजनीति का उथल पुथल साल रहा। जनता दल को फिर से टूट का सामना करना पड़ा। जार्ज फर्नांडीज के नेतृत्व में समता पार्टी का गठन हुआ। कांग्रेस पराभव की ओर जा रही थी।

      ऐसे में अनिल सिंह को लगा कि नीतीश कुमार की समता पार्टी अगामी चुनाव में उनकी नैया पार लगा सकती है। उन्होंने कांग्रेस छोड़ने का फैसला कर लिया। इसकी जानकारी कांग्रेस के वरीय नेताओं को भी लग गई थी।

       नालंदा के नूरसराय के मनारा में कई लोगों की हत्या के बाद कांग्रेस की एक टीम मनारा गई थी। जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र भी थे। उन्होंने अनिल सिंह को काफी मनाने की कोशिश की कि वे पार्टी न छोड़े। उनके पिताजी कांग्रेस के सम्मानित नेता थे।

      लेकिन पूर्व सीएम के अनुनय विनय का भी असर नहीं हुआ। अनिल सिंह कांग्रेस को अलविदा कह समता पार्टी में आ गये। वर्ष 1995 में समता पार्टी ने उन्हें चुनाव मैदान में उतारा। जहाँ से वह चुनाव जीतने में कामयाब रहे।

      इसी बीच वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले चंडी के पूर्व विधायक हरिनारायण सिंह समता पार्टी में आ गए। नीतीश कुमार ने अनिल सिंह को बेटिकट कर हरिनारायण सिंह को टिकट दे दिया।

      उस समय क्षेत्र में चर्चा थी कि नीतीश कुमार उन्हें हिलसा से टिकट दे रहे थे, लेकिन वे चंडी से ही चुनाव लड़ने पर अडिग रहे। लेकिन तब के पुराने राजनीतिक कार्यकर्ता इस चर्चा को सिरे से खारिज कर देते हैं कि अनिल सिंह को इस तरह का कोई ऑफर नहीं मिला था।

      टिकट नहीं मिलने से नाराज अनिल सिंह बाद में राजद में आ गये और उन्होंने उसी साल 4 दिसम्बर, 2000 को अपने पिता डा. रामराज सिंह की स्मृति दिवस पर चंडी मैदान पर पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को बुलाकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया था।

      लेकिन चुनाव में वह शक्ति प्रदर्शन काम नहीं आया। राजद से एनसीपी, रालोसपा की परिक्रमा की। निर्दलीय विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव भी लड़े। लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया।

      वर्ष 2015 विधानसभा चुनाव के पहले अपने लाव-लश्कर के साथ भाजपा में इस आशा के साथ शामिल हुए थे कि शायद ‘भगवा रंग’ उनके जीवन को रंगीन कर दे।

      हरनौत से टिकट मिलने की पूरी उम्मीद थी, लेकिन ऐन मौके पर यह सीट लोजपा के खाते में सीट चली गई। पूर्व विधायक की किस्मत यहां भी दगा दे गई।

      अपने राजनीतिक भंवर को दो दशक से उबारने में लगे हुए हैं। वे कई बार जदयू में वापसी करना चाहा, लेकिन जदयू की नजर में वे अछूत माने जाते हैं।

      उसके पीछे की राजनीतिक कहानी यही है कि अपने टिकट कटने से नाराज पूर्व विधायक ने वर्ष 2004 में बाढ़ लोकसभा में नीतीश कुमार को हराने का काम किया। तब चंडी विधानसभा से नीतीश कुमार को बढ़त नहीं मिली, जिस कारण वह बाढ़ से चुनाव हार तो गये, लेकिन नालंदा से जीत गये।

      इस हार का खामियाजा सिर्फ अनिल सिंह को ही नहीं चंडी विधानसभा की जनता को भी भुगतना पड़ा। जिसका उदाहरण चंडी विधानसभा का विलोपन शामिल है।

      इन सब के बाद भी अनिल सिंह की नजरें जदयू की ही तरफ रही है। दो साल पूर्व भी उन्होंने अपने पिता की जयंती समारोह में सीएम नीतीश कुमार को लाने के लिये एड़ी-चोटी किये हुए थे।

      सीएम नीतीश कुमार तक पैरवी कराये, लेकिन नीतीश कुमार ने कोई भाव नहीं दिया। इस विधानसभा चुनाव में भी चर्चा थी कि अनिल सिंह को जदयू से टिकट मिल सकता है। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं।

      अब थक हार कर हताश निराश उन्हें एक मात्र ठिकाना अब कांग्रेस दिख रहा है। बदले राजनीतिक समीकरण में हरनौत सीट कांग्रेस के खाते में चली गई है। कांग्रेस ने अभी तक प्रत्याशी के नाम की घोषणा नही की है।

      ऐसे में उनके लिए आशा की एक किरण जगी है। अब वे अपने पुराने कांग्रेसी नेताओं को टिकट दिला देने की चिरौरी कर रहें हैं। ऐसा लग भी रहा है कि उन्हे कांग्रेस अपने साथ ले सकती है।

      हरनौत विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस से अपनी टिकट पक्की करने के लिए हाथ-पांव मार रहे हैं। अगर वे सफल हो गए तो 26 साल बाद उनकी घर वापसी होगी। लेकिन लोगों के जेहन में सवाल यह भी है कि यह घर वापसी असल में है या फिर चुनाव लड़ने का हथकंडा!

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