Home खोज-खबर आवंटन घोटाला: प्रशासन के नियंत्रण से बाहर हैं जिला परिषद की दुकानें!

आवंटन घोटाला: प्रशासन के नियंत्रण से बाहर हैं जिला परिषद की दुकानें!

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Allotment scam: Zila Parishad shops are out of the control of the administration!
Allotment scam: Zila Parishad shops are out of the control of the administration!

यह मुद्दा प्रशासन की कार्यप्रणाली और भ्रष्टाचार को उजागर करता है। नालंदा में आम नागरिक न जानें कब से उम्मीद कर रहे हैं कि यह घोटाला कभी न कभी निष्कर्ष तक पहुंचेगा और सार्वजनिक संपत्ति का सही उपयोग हो सकेगा

बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। नालंदा जिले में जिला परिषद की जमीन पर बनी दुकानों से जुड़ा किराया घोटाला प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। जिले में करीब 500 दुकानों पर 5 करोड़ रुपये से भी अधिक का किराया बकाया है। यह घोटाला वर्षों से चल रहा है। जिसमें कई दुकानदारों ने मामूली किराये पर दुकानें आवंटित करवाईं और बाद में उन्हें ऊंचे किराये पर दूसरों को दे दिया।

नालंदा जिले में सबसे ज्यादा बकाया बिहारशरीफ, राजगीर, चंडी, नूरसराय और इसलामपुर जैसे क्षेत्रों में स्थित दुकानों पर करोड़ों रुपये का किराया बकाया है। अकेले बिहारशरीफ के भरावपर, पीली कोठी, भैंसासुर, कोना सराय, टाउन हॉल और खासगंज इलाकों में 2 करोड़ रुपये से ज्यादा का किराया बाकी है।

भरावपर स्थित एक दुकानदार अशमत नाज पर अक्टूबर 2018 से अब तक 6 लाख 28 हजार 416 रुपये का किराया बकाया है। चंडी इलाके की 15 दुकानों पर 15 लाख रुपये का किराया वर्षों से लंबित है। यहां कई किरायेदारों ने 2010, 2014, 2016, 2017 और 2018 से अब तक भुगतान नहीं किया है।

दूसरों को ऊंचे किराये पर दुकानें देना बना आय का जरिया यह पाया गया है कि कई दुकानदारों ने सस्ते दर पर आवंटित दुकानों को ऊंचे किराये पर दूसरों को दे दिया। ये किरायेदार हर महीने 5 से 15 हजार रुपये तक कमा रहे हैं। प्रशासन को वर्षों से इस अनियमितता की जानकारी थी, लेकिन ठोस कार्रवाई नहीं की गई।

इस बाबत नालंदा डीडीसी ने भी वहीं रस्म दुहराया है कि जिन दुकानों पर 6 महीने से अधिक का किराया बकाया है, उन्हें एक सप्ताह के भीतर किराया जमा करने या दुकान खाली करने का नोटिस भेजा जा रहा है। किराया न चुकाने वालों से ब्याज सहित राशि वसूलने और दुकानें सील करने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।

हालांकि वसूली की प्रक्रिया पर सवाल उठते रहे हैं। पहले भी कई बार नोटिस जारी किए गए, लेकिन कार्रवाई ठंडे बस्ते में चली गई। उदाहरण के लिए पिछले साल गिने-चुने दुकानदारों को नोटिस जारी किया गया था। लेकिन नतीजा शून्य रहा।

कई बार छापेमारी में यह पाया गया कि इन दुकानों का उपयोग गैर-कानूनी धंधों के लिए भी किया जा रहा है। लेकिन प्रभावशाली लोगों की पहुंच के कारण प्रशासन ठोस कदम उठाने से कतराता है।

इस पूरे मामले में आम जनता का सवाल है कि क्या प्रशासन वाकई सख्त कार्रवाई करेगा या फिर यह मुद्दा पहले की तरह कागजी प्रक्रिया में ही दबकर रह जाएगा? जिला परिषद को बकाया वसूली के साथ दुकानों के आवंटन की पारदर्शी नीति अपनानी होगी। ताकि इस तरह के घोटालों पर लगाम लगाई जा सके।

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