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    Tuesday, April 16, 2024
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      यूं तड़क-भड़क से हरनौत की चुनावी फिजां बदलने में जुटी है मुखिया ममता !

      “जरा सियासत की सोहबत तो देखिए, जहां रिश्ते भी सराबोर होकर मौका परस्ती का रुप ले लेता है। इसी की बानगी है मुखिया ममता देवी, जो नीतीश कुमार के लिए भीड़ जुटाने वाली नेत्री अब जदयू का दामन छोड़कर लोजपा के सहारे सियासत में कूद गई है। लेकिन उनकी राहें आसान है या फिर मुश्किल, यह तो मतदान के बाद चुनाव परिणाम ही बताएगा…

      रामघाट, हरनौत (नालंदा दर्पण)। नालंदा का हरनौत निर्वाचन क्षेत्र सीएम नीतीश कुमार के लिए प्रतिष्ठा का सवाल रहा है। इस बार उनके ही तरकस से निकले ‘बागी’ जदयू का खेल बिगाड़ने में लगे हुए हैं।

      कभी उनके दाहिने हाथ रहे हरनौत के तेजतर्रार नेता ई अशोक कुमार सिंह और संजय सिंह दोनों नीतीश कुमार को उनके ही घर में पटखनी के लिए जोर आजमाइश कर रहे हैं। इन दोनों बागियों से भी बढ़कर एक अन्य बागी मुखिया ममता देवी सीएम नीतीश कुमार को सीधी चुनौती दे रही हैं।

      हरनौत विधानसभा क्षेत्र में कभी सीएम नीतीश की रैलियों, चुनावी सभाओं में भीड़ जुटाने और उनके विकास कार्यों को जनता तक पहुंचाने वाली मुखिया ममता देवी लोजपा के टिकट पर चुनाव में है। उनके चुनाव मैदान में आने के बाद वह खांसी चर्चा में है।कई ऐसी चीजें हैं जो उन्हें चुनाव मैदान में अलग बनाती है।

      नगरनौसा प्रखंड की एक पंचायत से मुखिया निर्वाचित ममता देवी कुछ दिन पहले तक जदयू की निष्ठावान कार्यकर्ता थी। जदयू से टिकट के लिए जी-जान लगा देने के बाद भी जब उन्हें टिकट नहीं मिला तो वे कांग्रेस से टिकट प्राप्त करने में लगी।

      जब वहां भी उनका दाल नहीं गला तो वे टिकट की जुगाड़ में लोजपा के दरबार पहुंची, जहां उन्हें टिकट आसानी से मिल गया। लोजपा से दो बार चुनाव मैदान में रहे अरूण कुमार को बेटिकट कर दिया गया।

      ममता देवी धन-बल के साथ ‘माननीय’ बनने की तमन्ना लिए हुए चुनाव मैदान में हैं। इस बार उनका मुख्य मुकाबला ‘राजनीति के चाणक्य’  हरिनारायण सिंह के साथ बताया जा रहा है।

      हरिनारायण सिंह चंडी और हरनौत से आठ बार विधायक रह चुके हैं। अपने पांच दशक से ज्यादा राजनीतिक सफर में शायद यह पहला मौका होगा जब उनका मुकाबला अपने ही गांव-जेवार की रिश्ते में पतोहू लगी ममता देवी से होना तय है।

      ममता देवी चुनाव प्रचार में सबसे ज्यादा ध्यान खींच रही है। उनके चुनाव प्रचार में युवाओं और महिलाओं की संख्या ज्यादा देखी जा रही है। खुली और फूल-मालाओं से सजी जीप में उनका चुनाव प्रचार का अनोखा अंदाज देखने को मिल रहा है।

      उनके बारे में कहा जाता है कि उनके प्रचार में धन का ज्यादा प्रभाव दिखता है। चर्चा है कि वह धन बल के सहारे विधायक बनने का सपना संजोए हुए हैं।

      ममता देवी भले ही लोजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में हों, लेकिन देखा जा रहा है कि वह स्वयं प्रचार की डोर थामे रखी हुई है। लोजपा के बड़े नेताओं का उनके प्रचार में साथ न मिलना, कहीं न कहीं उनकी गलत रणनीति का नतीजा है।

      ममता देवी वर्ष 2016 में नगरनौसा प्रखंड के भूतहाखार पंचायत की मुखिया निर्वाचित हुई थी। उन्होंने लगातार दो बार मुखिया रहे डॉ रघुवंश मणि को हराकर जीत दर्ज की थी। उनके श्वसुर और पति दोनों जदयू के सक्रिय सदस्य रहे हैं।

      यही वजह रही कि जब वह मुखिया बनी तो नगरनौसा में चर्चा में आने लगी। अपने धन-बल की बदौलत वह प्रखंड मुखिया संघ की अध्यक्ष बन गई। धीरे-धीरे वह राजनीति की मुख्यधारा में शामिल होने लगी।

      जदयू की रैली हो या सीएम नीतीश कुमार की कोई जनसभा या कोई कार्यक्रम वह पटना से लेकर चंडी, नगरनौसा और हरनौत तक में भीड़ जुटाकर लाइमलाइट में आने लगी।

      कभी जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे और चुनाव रणनीति कार प्रशांत किशोर स्वंय उन्हें बुलाकर पार्टी की नीतियां समझाते और साथ ही सीएम नीतीश के विकासात्मक कार्यक्रमों को जनता तक पहुंचाने का प्रशिक्षण भी देते थे।

      यहां से उनकी सीधी पहुंच एक अणे मार्ग में होने लगी। ममता देवी ने मीडिया के बलबूते क्षेत्र में एक अलग छवि बनाने की कोशिश की। वो अब भी चुनाव मैदान में मीडिया मैनेजमेंट की वजह से ही डटी हुई है।

      विभिन्न अखबारों, न्यूज़ चैनलों, और मीडिया के विभिन्न माध्यमों में विज्ञापन और चुनाव प्रचार की खबरों से वह सुर्खियों में है।

      उन्होंने इस चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा बना ली है। वह मुखिया से विधायक बनना चाह रही है। वह हर हाल में इस लड़ाई को जीतने के लिए जोर आजमाइश कर रहीं हैं।

      लेकिन देखा जाए तो उनके सामने राजनीति का एक ऐसा वटवृक्ष है, जिनके पते को भी हिला देना उनके बूते की बात नहीं है।

      हरनौत में इस बार लड़ाई श्वसुर और पतोहू के बीच में नहीं है। बल्कि यहां इस बार की लड़ाई हरिनारायण और सबके बीच है। लोजपा का परंपरागत वोटर खामोश दिख रहा है।

      महागठबंधन से कांग्रेस के उम्मीदवार ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। वह भी मुकाबले में नजर आ रही है। यहां तक कि जदयू के बागी निर्दलीय उम्मीदवार ई अशोक कुमार सिंह भी लड़ाई में नजर आ रहें हैं।

      जाप से संजय सिंह भी कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। पिछले चुनाव में तीसरे स्थान पर रहे आप नेता धर्मेंद्र कुमार इस बार निर्दलीय फिर से मैदान में हैं।

      वहीं हरनौत में इस बार भूमिहारों की राजनीतिक संगठन राजपा ने भी अपने उम्मीदवार उतारे हैं। जिस कारण भूमिहारों का वोट निर्णायक माना जा रहा है।

      कभी राजद की तरफ रहने वाला राजपूत मतदाता इस बार जदयू के पक्ष में है। ब्राह्मणों ने अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं की है।

      निवर्तमान विधायक हरिनारायण सिंह को इस बार लगभग चार उम्मीदवार से टक्कर मिलती दिख रही है। मतलब हरेक राउंड में उनका कोई न कोई टक्कर देने वाला होगा।

      वैसे हरनौत की यह परंपरा रही है नाराजगी अंतिम समय में मुहब्बतम में बदल जाती है। जिसका फायदा निवर्तमान विधायक हरिनारायण सिंह को कितना मिलेगा, यह तो चुनाव परिणाम ही तय करेगा।

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