किसानों ने राजस्व महाअभियान का किया बहिष्कार, जानें बड़ी वजह
नगरनौसा (नालंदा दर्पण)। नगरनौसा प्रखंड अंतर्गत काछियावां पंचायत के अकैड़ गांव में दुर्गा स्थान पर एक बैठक कर किसानों ने राजस्व महाअभियान के तहत चल रही जमाबंदी पंजी सुधार प्रक्रिया में अपनी भागीदारी न करने का कठोर निर्णय लिया है। उनकी मांग स्पष्ट है कि अधिकारी गांव में आएं और ऑन द स्पॉट जमाबंदी पंजी में सुधार करें।
किसानों का कहना है कि वे लंबे समय से अपनी जमाबंदी पंजी में सुधार के लिए प्रयासरत हैं, लेकिन उनकी मेहनत बेकार साबित हो रही है। किशोरी प्रसाद, कमेंद्र प्रसाद, विजेंद्र प्रसाद, योगेंद्र प्रसाद, अरुण पटेल, राजेश कुमार, श्यामसुंदर प्रसाद, चंदेश्वर प्रसाद आजाद और शैलेन्द्र कुमार जैसे कई किसानों ने बताया कि वे बार-बार आवेदन दे चुके हैं, फिर भी उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ।
किशोरी प्रसाद ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि हम आवेदन देते-देते थक गए हैं। हर बार दस्तावेज जमा करने के बाद भी आवेदन रिजेक्ट कर दिया जाता है। परमार्जन के नाम पर हमारी बात को अनसुना कर दिया जाता है।
ग्रामीणों का कहना है कि यदि अधिकारी गांव में आकर ऑन द स्पॉट जमाबंदी पंजी में सुधार करें, तो ही उनकी समस्याएँ हल हो सकती हैं। उनका मानना है कि मौजूदा प्रक्रिया जटिल और अपारदर्शी है, जिसके कारण किसानों को बार-बार कार्यालयों के चक्कर काटने पड़ते हैं। योगेंद्र प्रसाद ने कहा कि अधिकारी अगर गांव में आएँ और हमारे दस्तावेजों की जाँच कर सुधार करें, तो यह प्रक्रिया न केवल तेज होगी, बल्कि पारदर्शी भी होगी।
किसानों ने यह भी आरोप लगाया कि कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों की उदासीनता के कारण ही जमाबंदी सुधार में देरी हो रही है। श्यामसुंदर प्रसाद ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि अधिकारी चाहते ही नहीं कि हमारी जमाबंदी पंजी पूरी तरह सही हो। अगर हमारी समस्याएँ हल हो गईं, तो उनकी दुकान पर ताला लग जाएगा। यह बयान ग्रामीणों की गहरी निराशा और व्यवस्था के प्रति उनके अविश्वास को दर्शाता है।
बता दें कि बिहार सरकार ने राजस्व महाअभियान के तहत जमाबंदी पंजी में सुधार को प्राथमिकता दी है, लेकिन अकैड़ गांव के किसानों का अनुभव इसकी प्रभावशीलता पर सवाल उठाता है। ग्रामीणों का कहना है कि नियम और अभियान चाहे जितने बनाए जाएँ, जब तक अधिकारी गांव स्तर पर सक्रिय नहीं होंगे, तब तक कोई ठोस परिणाम नहीं मिलेगा।
किसानों ने सुझाव दिया है कि प्रशासन को गाँवों में शिविर आयोजित करने चाहिए, जहाँ अधिकारी और कर्मचारी मौके पर ही दस्तावेजों की जाँच करें और त्रुटियों को सुधारें। इससे न केवल समय की बचत होगी, बल्कि किसानों को कार्यालयों के चक्कर काटने से भी मुक्ति मिलेगी।
बहरहाल, अकैड़ गांव के किसानों की यह माँग न केवल उनकी अपनी समस्या को दर्शाती है, बल्कि यह ग्रामीण भारत में प्रशासनिक प्रक्रियाओं की जटिलता और सुस्ती को भी उजागर करती है। सरकार और प्रशासन को चाहिए कि वे इस माँग पर गंभीरता से विचार करें और ऐसी व्यवस्था बनाएँ, जो किसानों के लिए सुगम और पारदर्शी हो।









