हिलसा (नालंदा दर्पण)। बिहार की राजनीतिक गलियारों में हिलसा विधानसभा सीट हमेशा से ही एक हॉट सीट रही है, जहां हर चुनाव में उम्मीदवारों की तलवारें खींची जाती हैं। लेकिन इस बार 2025 के विधानसभा चुनाव में यह सीट एक बार फिर सुर्खियों की चपेट में आ गई है। एनडीए गठबंधन के दबंग योद्धा और वर्तमान विधायक कृष्ण मुरारी शरण (जदयू) बनाम महागठबंधन के धुर विरोधी शक्ति सिंह यादव (राजद) के बीच कांटे की टक्कर तो तय थी ही, जनसुराज अभियान के उभरते चेहरे उमेश कुमार वर्मा की एंट्री ने इस मुकाबले को त्रिकोणीय जंग में बदल दिया है।
यहां कुल 10 प्रत्याशी मैदान में हैं, जो इस सीट के भाग्य का फैसला करने को बेताब हैं। संध्या 6 बजे तक समाप्त हुए मतदान में 61.55 प्रतिशत वोटिंग दर्ज की गई, जो शांतिपूर्ण माहौल और युवा मतदाताओं के जोश से रंगा हुआ था। आइए, इस चुनावी महासंग्राम की गहराई में उतरें और देखें कि हिलसा की धरती पर क्या-क्या रंग बिखरे।
हिलसा विधानसभा क्षेत्र नालंदा जिले का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस बार 10 दावेदारों की फौज देखने को मिली। एनडीए के चेहरे कृष्ण मुरारी शरण पिछले पांच सालों से विधायक हैं और विकास के नाम पर अपनी छाप छोड़ने का दावा कर रहे हैं। ग्रामीण विकास, सड़क निर्माण और शिक्षा सुविधाओं पर उनके कार्यों को समर्थक ‘मील का पत्थर’ बताते हैं।
वहीं महागठबंधन के शक्ति सिंह यादव, जो 2020 के चुनाव में मात्र 14 वोटों के मामूली अंतर से हार गए थे, इस बार बदला लेने को आक्रामक मोड में हैं। यादव ने तब प्रशासन पर मिलीभगत का गंभीर आरोप लगाया था, जिसने पूरे चुनाव को विवादास्पद बना दिया। इस बार वे ‘सामाजिक न्याय’ और ‘युवा रोजगार’ के मुद्दों पर जोर दे रहे हैं, खासकर यादव और मुस्लिम वोट बैंक को लक्षित करके।
लेकिन असली ट्विस्ट जनसुराज अभियान से आया, जिसके उम्मीदवार उमेश कुमार वर्मा ने स्थापित दलों को कड़ी चुनौती दी है। इस नए दल ने ‘परिवर्तन की लहर’ का नारा दिया है, जो भ्रष्टाचार मुक्त शासन और स्थानीय मुद्दों पर फोकस करता है। वर्मा, जो स्थानीय स्तर पर सामाजिक कार्यों के लिए जाने जाते हैं, उन्होंने ग्रामीण युवाओं को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
इसके अलावा अन्य उम्मीदवारों में निर्दलीय और छोटे दलों के चेहरे भी हैं, जो वोटों का बिखराव पैदा कर सकते हैं। कुल मिलाकर यह सीट अब केवल दो दलों की जंग नहीं, बल्कि एक अनिश्चितता भरी रेस बन चुकी है, जहां हर वोट की कीमत सोने के बराबर है।
चुनाव आयोग की ओर से मतदाताओं की सुविधा के लिए हिलसा क्षेत्र में कुल 389 पोलिंग बूथ स्थापित किए गए थे। सुबह 7 बजे से शुरू हुए मतदान में शुरुआती घंटों में ही लंबी-लंबी कतारें लग गईं। अनुमंडल पदाधिकारी और पुलिस प्रशासन ने शांतिपूर्ण प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए सतर्कता बरती।
यहां ड्रोन से निगरानी की गई और संवेदनशील बूथों पर अतिरिक्त फोर्स तैनात रही। सुखद बात यह रही कि पूरे दिन कहीं से कोई अप्रिय घटना या हिंसा की खबर नहीं आई। मतदाता जागरूकता अभियान के चलते महिलाओं और बुजुर्गों की भागीदारी भी उल्लेखनीय रही।
संध्या 6 बजे तक 61.55 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया, जो पिछले चुनाव की तुलना में थोड़ा अधिक है। लेकिन आंकड़ों के पीछे छिपी कहानी और भी दिलचस्प है। पहली बार वोट डालने वाले युवा मतदाताओं में जबरदस्त उत्साह दिखा। हिलसा के गांवों में सुबह-सुबह ही 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हो गया, जहां जदयू और राजद के कार्यकर्ता घर-घर जाकर वोटरों को प्रेरित करते नजर आए। विशेषज्ञों का मानना है कि यह ग्रामीण जोश ही निर्वाचन क्षेत्र के परिणाम तय करेगा।
2020 के चुनाव की यादें अभी ताजा हैं। तब शक्ति सिंह यादव को कृष्ण मुरारी शरण ने महज 14 वोटों से हराया था, जो बिहार चुनाव इतिहास की सबसे रोमांचक जंगों में शुमार है। हार के बाद यादव ने न केवल प्रशासन पर ‘जबरन हराने’ का आरोप लगाया, बल्कि अदालत में भी मामला खींचा। लेकिन इस बार सीन बदला-बदला सा है।
जनसुराज की एंट्री ने वोटों का ध्रुवीकरण तोड़ा है। प्रशांत किशोर का अभियान तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार दोनों की आलोचना करता है। जिसने युवाओं और मध्यम वर्ग को आकर्षित किया है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अगर जनसुराज 5-7 प्रतिशत वोट भी काट लेता है तो जदयू के लिए मुश्किल हो सकती है। वहीं, राजद समर्थक दावा कर रहे हैं कि विकास के एजेंडे पर उनकी पकड़ मजबूत है।
बहरहाल हिलसा की इस चुनावी जंग ने न केवल स्थानीय राजनीति को गर्माया है, बल्कि पूरे बिहार को बांधे रखा है। 61.55 प्रतिशत मतदान के साथ युवाओं का उत्साह और ग्रामीणों का जोश बताता है कि लोकतंत्र यहां जिंदा है। लेकिन सवाल वही पुराना कि जीत किसकी होगी? क्या प्रेम मुखिया अपनी कुर्सी बचा पाएंगे या शक्ति यादव का इंतजार खत्म होगा या फिर जनसुराज का नया सूरज उगेगा? नतीजों का इंतजार ही रोमांच है।
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