नालंदा दर्पण डेस्क। बिहार विधानसभा चुनाव में दूसरे चरण के तहत नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख दो दिन बची है। ऐसे में नालंदा के हरनौत विधानसभा क्षेत्र में एनडीए ने अपने प्रत्याशी की घोषणा एक सप्ताह पूर्व कर दी है।
लेकिन महागठबंधन से उम्मीदवार के नाम को लेकर अभी तक संशय बरकरार है। वहीं लोजपा ने भी अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है।
हरनौत में चुनाव मैदान में दल बदलुओं की बहार है। टिकट की आशा में जब अपने दल से मायूस हुए तो दूसरे दल का दामन थामकर चुनाव मैदान में ताल ठोंक रहे हैं। कुछ ऐसे भी है,जिनकी दाल दूसरे दल में नहीं गली तो निर्दलीय ही चुनाव मैदान में आ गये हैं।
वहीं कई ऐसे भी है जो अपने ही दल से बगाबत कर दूसरे दल के सहारे चुनाव मैदान में जोर आजमाइश कर रही है। सताधारी जदयू और भाजपा को हरनौत में बागियों का सामना करना पड़ रहा है।
बागी नेताओं के बागी तेवर देखकर हरनौत में ऐसा लग रहा है कि कहीं एनडीए की लगातार जीत में वे विलेन साबित न हो जाए।
जदयू के ऐसे ही एक बागी नेता है ई अशोक कुमार सिंह जिन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में निवर्तमान विधायक हरिनारायण सिंह के टिकट का विरोध किया था। इस बार भी खुलेआम कर रहे हैं।
उन्हें आशा थी कि इस बार उन्हें टिकट मिलेगी लेकिन उनकी उम्मीद पर फिर पानी फिर गया। पिछली बार तो चुप रह गये थे, लेकिन इस बार निर्दलीय चुनाव मैदान में आ गये है। उनके आने से जदयू प्रत्याशी की नींद हराम है।
वहीं जदयू की एक और संभावित प्रत्याशी रही एक मुखिया ममता देवी, जो मीडिया में काफी चर्चित भी रही हैं, उन्हें आशा था कि ससुर और पति ने जदयू की सेवा की हैन उसका फल उन्हें मिलेगा।
वे कई बार सीएम से मिलकर अपना टिकट लगभग कंफर्म भी करा ली थी और पूरे जोश-खरोश के साथ चुनाव मैदान में डटी हुई थी। जब टिकट नहीं मिला तो आंखो से आंसू की सैलाब बह निकला।
जदयू में अपनी कर्मठता और वफादारी दिखाने के बाद भी जब बात नहीं बनी तो दिल्ली दौड़ पड़ी। लोजपा के दरबार में हाजिरी लगा रही है। उम्मीद है लोजपा के पूर्व प्रत्याशी अरूण कुमार को बेटिकट कर ममता देवी पर ममता दिखा सकती है।
जदयू के दो भीड़ जुटाऊ नेताओं के बागी होने से जदयू के जीत का गणित बिगाड़ने में भूमिका निभा सकते है। जदयू की सहयोगी भाजपा में भी एक नेता बागी रुख अख्तियार किये हुए है।
उन्होंने जदयू से टिकट की कोशिश की लेकिन दाल नहीं गली तो वे अब कांग्रेस से टिकट की जुगाड़ भिड़ा रहे है। अगर उन्हें टिकट मिल जाता है तो इसका असर जदयू के जीत और हार पर पड़ सकता है। निवर्तमान विधायक के जीत के रोड़े बन सकते हैं एनडीए के बागी।
बागी और दल बदलू सिर्फ एनडीए में भी नहीं है।महागठबंधन में भी है। राजद से टिकट की आशा में चार महीने से कूदे संजय सिंह ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उन्हें टिकट नहीं मिलेगा।
टिकट तो दूर महागठबंधन ने हरनौत सीट कांग्रेस के हवाले कर दी। ऐसे में संजय सिंह का चुनाव लड़ने का सपना चूर होता दिखा। उन्हें लगा कि जनता के बीच में उनका किया काम बेकार चला जाएगा।
फिर दल बदलने का फैसला कर लिया। पप्पू यादव के दरबार में जा पहुंचे।मुलाकात भी हुई भी बात भी हुई। जाप की सदस्यता भी ले ली। टिकट को लेकर असंमजस में थे। खुद लड़े या बेटे को लड़ाएं।
लोगों ने सुझाव दिया, आपने चार महीने क्षेत्र में काम किया है। लोग आपको पहचानते हैं।जाप के टिकट पर वो अब खुद मैदान में है।
बताते चलें कि संजय सिंह वही नेता है जिन्होंने अपनी सफारी वाहन को लालटेन मय कर रखा था और मीडिया की सुर्खियां बने हुए थे।
इन सब के अलावा समाजसेवी चंद्र उदय कुमार उर्फ मुन्ना फिर से निर्दलीय मैदान में है। इस बार आप ने बिहार विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है। इसलिए आप के नेता धर्मेंद्र कुमार निर्दलीय कमर कस रहे है।
पुष्यम प्रिया चौधरी की प्लूयर्लस से समाजसेवी, रक्तदाता जगत नारायण भी मैदान में है। प्रबल भारत दल से बहुमूल्य कुमार भी मैदान में है। इसके अलावा आधा दर्जन और निर्दलीय उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में होगे।
देखा जाए तो हरनौत में बागियों और दलबदलुओं का जमावड़ा साफ झलक रहा है। ये बागी अपने ही दल जदयू का खेल बिगाड़ सकते हैं, जिसका असर चुनाव परिणाम पर पड़ सकता है।
फिलहाल हरनौत में चुनावी बुखार अब सिर चढ़कर बोलने लगा है। चौक-चौराहे और चाय दुकानों पर यही चर्चा है हरनौत में का बा, लोग जबाब देते हैं यहाँ तो बागियों और दलबदलुओं की बहार है। चर्चा यह भी है कि यहाँ इस बार वोट कम और धन वर्षा ज्यादा होगी।