नालंदा दर्पण डेस्क (जयप्रकाश नवीन): “खामोशी इसमें पसरती है
खुशबू किताबों की महकती है,
मौन चेहरे रहते हैं सब यहाँ
आपस में कुर्सियां बतलाती है
पुस्तकें हाल अपना बयां करती है। “
पुस्तकालय के सबंध में सटीक वर्णन करती यह शायरी बिहार के सीएम नीतीश कुमार के अपने पैतृक गांव कल्याण विगहा में निर्मित पुस्तकालय भवन को देखकर बेमानी लगती है।
तीन वर्ष पूर्व बने लगभग छह लाख की राशि से बने पुस्तकालय भूत बंगला बना हुआ है। यहाँ किताब और शेल्फ की जगह थ्रेसर मशीन रखी जाती है। पाठकों की जगह यहाँ सुनापन है। बंद ताले इस पुस्तकालय की दुर्दशा को बयान करते है। जिस कल्याण विगहा में सब कुछ है।
कहते हैं बिहार में विकास की धारा देखनी हो तो एक बार कल्याण विगहा पधार कर देखिए। लेकिन शायद यहाँ भी ज्ञान का कबाड़ा निकला हुआ है। विकास का मतलब शिक्षा को छोड़कर सब कुछ है। शायद छह लाख की राशि से बने कल्याण विगहा के पुस्तकालय को देखकर तो यही भ्रम होता है।
बिहार सरकार के योजना एवं विकास विभाग की ओर से मुख्यमंत्री क्षेत्र विकास योजना के तहत पार्षद संजय कुमार ने 5 लाख 98 हजार 8 सौ की राशि से कल्याण विगहा में पुस्तकालय भवन का उद्घाटन किया था।
योजना संख्या 44/16-17 में जब यह पुस्तकालय भवन निर्मित हुआ तो कल्याण विगहा में एक अदद पुस्तकालय होने के गौरव से लोग अभिभूत हो रहे थे।
कल्याण विगहा को भी लगने लगा था एक दिन मेरा खुद का पुस्तकालय होगा, उसमें ढ़ेर सारी प्रेम की किताबें होगी, इतिहास, राजनीति की किताबें होगी, वीर रस की किताबें होगी, थ्रिलर और कामेडी से लेकर साहित्यिक किताबें, पत्र-पत्रिकाएं होगी।
शिक्षाविदों का जमावड़ा होगा, किताबों पर चर्चा होगी। लेकिन शायद विकास की आंधी में कल्याण विगहा को एक अदद पुस्तकालय का सुख नहीं मिलना था, सो नही मिला। शायद विकास की आंधी में शिक्षा नहीं आती है। जिस कल्याण विगहा में विकास की आंधी देखने को मिलती है।
रेफरल अस्पताल, आर्युवेदिक कालेज, अत्याधुनिक शूटिंग रेंज, 24घंटे बिजली-पानी, बाईपास सड़क, गांव जाने के लिए चारों ओर से चकाचक सड़क वहाँ पुस्तकालय अपने भाग्य पर आठ- आठ आंसू बहाने को विवश है।
पुस्तकालय भवन का उपयोग एक कर्मचारी के रहने के लिए किया जाता रहा है। लेकिन अब वह बंद पड़ा रहता है। यह भूसे रखने के लिए काम में लाया जाता है। प्रथम नजर में कोई भी इस भवन को देख ले तो उन्हें पता ही नहीं चलेगा कि यह पुस्तकालय भवन है।
उद्घाटन बोर्ड को देखकर ही पुस्तकालय होने का पता चलता है। यहाँ तक कि गांव के लोगों को भी पता नहीं है कि उनके गांव में कोई पुस्तकालय भवन है।
बहुत ढूंढने पर नालंदा दर्पण को वह पुस्तकालय भवन मिल ही गया। जहाँ किताबों की जगह सिर्फ खालीपन था। जहाँ कभी-कभार भूसा रखने के उपयोग में लाया जाता है।
पुस्तकालय भवन की ओर जाने के लिए ईट सोलिंग भी की गई थी लेकिन वह भी अब साबूत नहीं है। आने जाने के रास्ते में सिर्फ जंगल ही है।
कहने को सीएम नीतीश कुमार के गृह गाँव में बहुत कुछ है। इसी पुस्तकालय भवन से सटे पीएचईडी विभाग का कार्यालय है, बैंक की शाखा है, एटीएम है। लेकिन पुस्तकालय का विकास नहीं हो सका है।
उपर से बिडम्बना देखिए ग्रामीणों ने बताया कि यहाँ एक पशु चिकित्सालय भी है जो किराये के भवन में चल रहा है, जो हमेशा बंद ही रहता है।