बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। नालंदा जिले में खाद्यान्न घोटाले से जुड़े मामलों के उजागर होने का जो सिलसिला पिछले दिनों शुरू हुआ था, वह थमने का नाम नहीं ले रहा है। इसी कड़ी में एक और बड़ा मामला प्रकाश में आया है।
हाल में मनरेगा की विशेष ऑडिट के दौरान यह तथ्य उभर कर आया कि संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना के तहत मजदूरी के रूप में वितरण के लिए दिये गये 84 हजार क्विंटल अनाज डीलरों के पास ही बाकी रह गये। इस अनाज की वसूली के लिए न ही सरकारी स्तर पर कोई प्रयास किया गया और न ही डीलरों ने इसे वापस लौटाया।
ऑडिट रिपोर्ट के बाद नींद से जागी सरकार के निर्देश पर जिला प्रशासन खाद्यान्न की कीमत एकमुश्त जमा कराने के लिए बकायेदार 245 डीलरों को बकाया अनाज की कीमत 1370 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से एक सप्ताह के अंदर जमा कराने का आदेश दिया।
जिले के कुल 303 में से 245 डीलरों के पास अवशेष खाद्यान्न बाकी है। इनमें से 57 डीलरों के पास चार लाख रुपये से अधिक के बकाया का आकलन किया गया है।
वर्ष 2002-03 से 2006-07 के बीच संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना के तहत मजदूरों के बीच मजदूरी के एवज खाद्यान्न देने के लिए डीलरों को उक्त अनाज उपलब्ध कराया गया था।
2006-07 में इस योजना को बदल कर राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना कर दिया गया तथा अनाज की जगह पूरी मजदूरी नगद भुगतान करने का प्रावधान किया गया। इसके बाद से डीलरों के पास अवशेष खाद्यान्न बाकी रह गये।
हाइकोर्ट ने दी डीलरों को राहत खाद्यान्न की कीमत डीलरों से सख्ती से वसूलने तथा नोटिस में दी गयी अवधि तक राशि नहीं जमा करानेवालों पर प्राथमिकी दर्ज कराने के प्रशासन के मंसूबे पर हाइकोर्ट ने पानी फेर दिया।