नालंदा दर्पण डेस्क / बिहार शरीफ (संजय कुमार)। ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार नालंदा विधानसभा से निर्वाचित है। उनके गृह प्रखंड बेन के ग्राम पंचायत खैरा अंतर्गत मखदुमपुर गांव के वार्ड नंबर 15 में ही देख लीजिए। यहाँ हर घर नल का जल योजना सिर्फ दिखावा मात्र की योजना बन कर रह गई है।
बताया जाता है कि इस गांव में नल जल योजना संख्या 1/2018-19 के तहत 11 लाख 11 हजार एक सौ रुपए की लागत से बनाई गई है।
इस पंचायत के वर्तमान मुखिया पुन्नी देवी तथा तथा मखदुमपुर गांव के वार्ड संख्या 15 के वार्ड सदस्य रिंकी देवी है।
वैसे तो इस गांव में वाटर स्टैंड पोस्ट बनकर तैयार है। परंतु इस टंकी से लोगों को पानी नहीं मिल पा रहा है। फिलहाल डायरेक्ट पानी की सप्लाई की जा रही है।
लोगों का कहना है कि लूट खसोट के कारण टंकी व स्टैंड का निर्माण जैसे-तैसे करा दिया गया है। जिससे टंकी द्वारा घरों में पानी नहीं पहुंच पाता है।
वार्ड सदस्य रिंकू देवी के पति पिंटू राम का कहना है कि 5300 फीट प्लास्टिक का पाइप गांव में बिछाया गया है तथा 150 घरों में कनेक्शन दिया गया है।
वहीं ग्रामीण पीनू कुमार चौधरी का कहना है कि योजना के तहत ब्रांडेड कंपनी का पाइप ना बिछाकर सस्ते कंपनी का पाइप बिछा दिया गया है। जिससे पानी का स्वाद खराब हो जाता है।
यहाँ नल पाइप भी निर्धारित गड्ढा खोदकर बिछाने के बजाय 6 से 8 इंच पर ही बिछाया गया है। हर घर में कनेक्शन भी अभी तक नहीं दिया गया है।
ग्रामीण बताते हैं कि हर घर नल का जल योजना कनेक्शन में मोटर नहीं लगाना है। परंतु कई लोगों ने मोटर लगा रखा है, जिससे गांव के अन्य हिस्से में पानी नहीं पहुंच पा रहा है। इसे देखने वाला कोई नहीं है।
ग्रामीणों का आरोप है कि वार्ड सदस्य पति द्वारा हर घर प्रत्येक टोटी से 30 रुपए महीना वार्ड सदस्य पति द्वारा वसूला जा रहा है। करीब 2 माह से यह वसूली की जा रही हैं। गांव में करीब 150 टोटी लगा हुआ है।
इस संबंध में वार्ड सदस्य पति पिंटू राम का कहना है कि 2 माह से रकम हर घर 30 रुपए के हिसाब से वसूल की गई है, वह वापस कर दी जाएगी। जब इस संवाददाता ने जानना चाहा कि किस के आदेश से रकम वसूली जा रही है तो उसने बताया कि मुखिया द्वारा कहने पर रकम वसूली गई है।
जब इस संवाददाता ने यह पूछा कि क्या कोई लिखित आदेश मिला था तो मुखिया ने बताया कि मौखिक आदेश पर ही वसूली की गई है। वह रकम अब वापस कर देंगे।
बहरहाल, चुनाव के दौरान जनता के दुख दर्द में हिस्सा बनने का वादा करने वाले जनप्रतिनिधि चुनाव जीतते ही सरकारी योजनाओं के लूट-खसोट में लग जाते हैं। जिन अफसरों को इसपर नजर रखनी है, वे संबंधित शिकायत को काली कमाई का जरिया बना लेते हैं। इसका खामियाजा गांव की भोली भाली जनता को भुगतना पड़ता है।