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    Friday, April 19, 2024
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      ‘राजगीर और अस्थावाँ के थानेदार-दोनों संतोष कुमार, अनुसंधानकर्ता समेत सदेह हाजिर हों’

      नालंदा दर्पण डेस्क। बाल किशोर न्याय परिषद के प्रधान दंडाधिकारी मानवेन्द्र मिश्रा की अदालत ने जिला के दो थानेदार और प्राथमिकी के अनुसंधानकर्ता पर नाबालिग को 24 घंटे से अधिक समय तक विधि विरुद्ध पुलिस हिरासत में रखने के कारण कारण बताओ नोटिश जारी करते हुए कड़ी चेतावनी दी है।

      अदालत ने थानेदार द्वय से पूछा है कि बालक को अवैध रूप से निरूद्ध रखने के आरोप में क्यों न उनपर कार्रवाई करने की अनुशंसा करते हुए माननीय उच्च न्यायालय को सूचित किया जाए।

      राजगीर थाना के प्रभारी संतोष कुमार और वहीं दर्ज एक प्राथमिकी के अनुसंधानकर्ता के अलावे अस्थावां थाना के प्रभारी संतोष कुमार और वहीं दर्ज एक प्राथमिकी के अनुसंधानकर्ता जयनंदन पासवान ने किशोर न्याय परिषद  ही नहीं, अपितु भारतीय दंड विधि की धाराओं का भी उल्लंघन किया है। जिस पर किशोर न्याय परिषद  के न्यायाधीश ने इनके विरूद्ध काफी तल्ख टिप्पणी की है।

      अदालत ने ऐसे लापरवाह पुलिस अफसरों द्वारा बाल किशोर न्याय अधिनियम के साथ-साथ बाल अधिकार और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन का दोषी करार देते हुए पूछा है कि क्यों नहीं, इनके वरीय अधिकारी को किशोर न्याय अधिनियम 2015 की धारा 75 के तहत उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने, विभागीय कार्रवाई करने का आदेश दिया जाये। पटना उच्च न्यायालय के जुवेनाइल जस्टिस कमिटी को सूचित किया जाए।

      प्रधान दंडाधिकारी मानवेन्द्र मिश्रा ने दोनों थानेदार और मामले के अनुसंधानकर्ता को तीन दिनों के अंदर बाल किशोर न्याय परिषद के समक्ष सशरीर हाजिर होकर जवाब देने को कहा है।

      अदालत ने माना है कि  दोनों ही मामलों में पुलिस ने एक और बड़ी लापरवाही बरतते हुए किशोर को न सिर्फ अवैध रूप से निरूद्ध रखा, बल्कि अपराध स्वीकारोक्ति बयान पर भी हस्ताक्षर कराया गया।

      नियमानुसार अभिभावक की मौजूदगी में ही किशोर से पूछताछ होनी थी। इसका न तो स्वीकारोक्ति बयान दर्ज होना था और न ही हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य किया जाना था।

      किशोर न्याय परिषद ने इस मामले में बाल किशोर न्याय अधिनियम की धारा 12 की उप धारा (2), किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) नियम, 2016 के नियम 8 (2) (1), (2), (3) एवं 8 (3), (1), (5) नियम 9 (1), संविधान के अनुच्छेद 22 (2), आईपीसी 57 का उल्लंघन माना है।

      दरअसल, राजगीर पुलिस ने एक किशोर को 13 दिसम्बर को उसके घर से पकड़ा था। करीब 48 घंटे बाद 15 दिसम्बर को दिन के करीब 3 बजे किशोर न्याय परिषद के समक्ष पेश किया गया।

      इस मामले में भी बाल कल्याण पुलिस पदाधिकारी की मौजूदगी, किशोर के पकड़े जाने के संबंध में तारीख व समय के साथ अभिभावक को जानकारी और पेशी के समय अभिभावक की मौजूदगी जैसे नियमों का उल्लंघन किया गया।

      वहीं अस्थावां थाना से सम्बंधित किशोर को अपहरण के जिस मामले में पुलिस ने 60 घंटा से भी अधिक समय तक हिरासत रखा है, उस मामले का पुलिस ने 24 घंटे में ही उद्भेदन का दावा किया था।

      अस्थावां थाना से संबंधित अपहरण के एक मामले में अस्थावां पुलिस ने हिलसा से एक किशोर को हिरासत में लिया था। उसे 13 दिसम्बर को ही पकड़ा गया था। जबकि 16 दिसम्बर की दोपहर करीब 12.30 बजे किशोर न्याय परिषद के समक्ष पेश किया गया।

      पूछताछ के दौरान किशोर ने अस्थावां थाने के हाजत में रखने और घर वालों को उसकी गिरफ्तारी की सूचना नहीं देने की बात भी न्यायाधीश मानवेन्द्र मिश्रा को बताई। पुलिस ने 60 घंटे से भी अधिक समय के बाद बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत किया।

      जबकि बाल किशोर न्याय परिषद के सख्त निर्देश हैं कि…

      • बाल-किशोर की गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर बोर्ड में प्रस्तुत किया जाए।
      • बाल-किशोर के न्यायालय में उपस्थिति के समय बाल कल्याण पुलिस पदाधिकारी की मौजूदगी हो।
      • माता-पिता या संरक्षक को बाल-किशोर के पकड़े जाने की सूचना तारीख और समय के साथ दी जाए।
      • बाल-किशोर की गिरफ्तारी की सूचना पर्यवेक्षण पदाधिकारी को दी जाए, ताकि वे सामाजिक पृष्ठभूमि की जानकारी ले सकें।
      • आरोपी बाल-किशोर  से किसी भी तरह की पूछताछ उसके अभिभावक की मौजूदगी में ही की जाए।

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