“अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल राजगीर के सूर्ख आसमान में सूरज डूबता है, जो यहां के भिखारियों के लिए हर सुबह नाउम्मीदियां लेकर उगता है और उम्मीदें लेकर डूब जाता है। ऐसे सूरज का भी क्या करें, जो रोटी भी सेंक नहीं सकती, हलक से पानी उतार नहीं सकती…
राजगीर (नीरज कुमार)। कोरोना और लॉकडाउन से जिंदगी की रफ्तार पर ब्रेक लग गया है। भले ही सरकार कुछ क्षेत्रों में लाकडाउन की छूट दे रखी है, लेकिन अभी तक धार्मिक स्थलों और पर्यटन स्थलों को बंद रखें हुए हैं। कोरोना के नाम पर मंदिर बंद होने से भिखारियों को दान दक्षिणा तक नसीब नहीं हो रहीं है।
मंदिर के कपाट बंद होने से कइयों की जिंदगी तंग हो गई है। मंदिर से जुड़े लोग फांकाकशी में दिन काटने को मजबूर हैं। सबसे ज्यादा प्रभावित वो भिखारी हो रहे हैं, जो सीधे तौर पर मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं की दान-दक्षिणा पर निर्भर रहते हैं।
कुछ यही हाल अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल राजगीर की है। राजगीर के विभिन्न धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों, मंदिरों को बंद रहने की वजह से उन लोगों की रोजी-रोटी पर खतरा पिछले एक साल से मंडरा रहा है।
सिर्फ राजगीर के पंडे पुजारी ही नहीं, बल्कि राजगीर के विभिन्न स्थलों पर भीख मांगकर गुजारा करने वाले भिखारियों की भी जिंदगी तंग है। बिना दान के मजबूर भिखारियों को सूखी रोटी पर भी आफ़त है।
सरकार यह समझने में भूल कर रहीं कि मंदिर और पर्यटन स्थल सिर्फ पूजा अर्चना, घूमने की जगह नहीं है, बल्कि इनके खुलें रहने से कई परिवारों का गुजारा होता है। लेकिन वे सभी पिछले साल से बुरी तरह प्रभावित हैं।
राजगीर के विभिन्न मंदिरों और पर्यटन स्थलों के पास सालों भर भिखारियों का यूं तो जमावड़ा लगा रहता, लेकिन ब्रह्मकुंड के पास पुल पर भिखारियों का एक जत्था इस उम्मीद में बैठी हुई है कि शायद कोई पर्यटक भूले भटके यहां आ जाएं और उन्हें कुछ दान दक्षिणा मिल जाएं।
रामवृक्ष और सरोनी देवी आधा दर्जन बाल बच्चों के साथ सड़क की ओर टकटकी लगाए दिख गई। उन्होंने अपने दर्द को बयां करते हुए बताया कि जब पर्यटकों और श्रद्धालुओं का रेला लगा रहता था तब उनकी जिंदगी किसी तरह चल रही थी।
लेकिन पिछले डेढ़ साल से सूखी रोटी पर भी आफत है। किसी तरह माड़-भात खाकर गुजारा कर रही है।कभी कभी वो भी नसीब नहीं होता है। अपने से ज्यादा बच्चों की भूख की चिंता है।
ऐसे ही एक वृद्धा भिखारी मिल गई जिसने कहा कि जीवन बहुत मुश्किल से कट रहा है। न रहने को छत है और न ही खाने को कुछ, सड़क ही उनका घर है। लाकडाउन की चिंता उनके चेहरे पर साफ झलक रही थी।
ऐसे ही कुछ अन्य भिखारियों की कमोवेश यही शिकायत है कि लाकडाउन और पर्यटकों के नहीं आने से उनको खाने के लाले पड़े हुए हैं।
भिखारी दंपति दशरथ मांझी और उर्मिला देवी की आंखें भी पर्यटकों और श्रद्धालुओं की आस में पथरा सी गई। फुटपाथ ही उनका बसेरा है। कटोरा ही उनका संसार। जिस दिन कटोरे में सिक्के खनक गए, समझ जाइए आज अल्लाह मेहरबान है। उस दिन फाका नहीं होता।
राजगीर के भिखारियों का जीवन अभी भी लाकडाउन के उहापोह में गुजर रही है। कब कोरोना महामारी खत्म हो और उनका जीवन खुशहाली की पटरी पर आ सकें।
यहाँ अंग्रेजी समेत कई अंतर्राष्ट्रीय भाषाओं में मांगते हैं भीखः राजगीर के भिखारियों के भीख मांगने का भी अनोखा अंदाजा है। यहां के भिखारी अंग्रेजी समेत कई देशों के भाषाओं में भीख मांगते हैं।
राजगीर अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूप में जाना जाता है। यहां जापान,चीन,बर्मा, तिब्बत, भूटान सहित अन्य देशों से पर्यटक आतें हैं।
यह अलग बात है कि राजगीर में लाकडाउन की वजह से विदेशी पर्यटकों का आना बंद है। लेकिन जब राजगीर पर्यटकों से गुलजार रहता है, तब भिखारी भी अंग्रेजी समेत कई भाषाओं में बोलकर भीख मांगते हैं।
राजगीर के ब्रह्मकुंड तथा गूद्धकूट पर्वत के भिखारी अपने अनोखे अंदाज के लिए जाने जाते हैं। भिखारियों में कई भाषाओं का समावेश भी दिखता है। पर्यटकों को अपनी ओर खींचने के लिए जिस देश के पर्यटक उस देश की भाषा में भीख मांगते हैं।
अगर कोई जापानी पर्यटक नजर आ जाएं तो भिखारी ‘वातासी वा तोतेमों माजुसी तसुकेते, या ‘कमी गा अनत ओ तसुकेते’ बोलकर भीख मांगते हैं।
चीनी पर्यटकों को देखकर ‘वां हेनं क्यांग। वान नांग वो सांगदी होय वांग्जुनी। वहीं कई भिखारी टूटी-फूटी अंग्रेजी में भी भीख मांगते हैं…. ‘आई एम वेरी वेरी पूअर, हेल्प मी, गॉड विल हेल्प यू’ । लेकिन फिलहाल ये लंबे वक्त तक धार्मिक स्थलों के बंद होने से भूख के शिकार हो रहे हैं।
मंदिरों के बाहर रहने वाले भिखारियों, मंदिर परिसर में फूल-माला, बेलपत्र और प्रसाद बेचने वाले दुकानदारों और पुजारियों की स्थिति खराब है। सरकार को इनके हितों को लेकर पहल करने की दरकार है, ताकि इनकी जिंदगी भी पटरी पर लौट सके।
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