नालंदा DEO और DPO का वेतन बंद, जानें सनसनीखेज मामला
बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। नालंदा जिले के शिक्षा विभाग में अनियमितताओं और भ्रष्टाचार का एक नया मामला सामने आया है, जो हाईकोर्ट के आदेशों की खुलेआम अवमानना को दर्शाता है। जिन अधिकारियों पर शिक्षकों के हितों की रक्षा और विभागीय नियमों को लागू करने की जिम्मेदारी है, वही अब सवालों के घेरे में हैं। जिला शिक्षा पदाधिकारी (डीईओ) राजकुमार और जिला कार्यक्रम पदाधिकारी (डीपीओ) स्थापना पर हाईकोर्ट के वेतन निकासी पर रोक के बावजूद वेतन निकालने का गंभीर आरोप लगा है। इस मामले ने न केवल प्रशासनिक लापरवाही को उजागर किया है, बल्कि राजनीतिक हलकों में भी हलचल मचा दी है।
परवलपुर प्रखंड के अलीपुर की शिक्षिका मीरा कुमारी ने अपने बकाया वेतन के भुगतान में देरी के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। मीरा कुमारी ने बताया कि उनके बीएड प्रमाण पत्र, जो सोगरा कॉलेज ऑफ एजुकेशन से प्राप्त था, उसे शिक्षा विभाग ने पहले अमान्य घोषित कर उनकी सेवाएँ समाप्त कर दी थीं। हालांकि हाईकोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाते हुए न केवल उनकी बहाली को सही ठहराया, बल्कि बकाया वेतन भुगतान का भी आदेश दिया।
हाईकोर्ट के इस आदेश के बावजूद शिक्षा विभाग ने मीरा कुमारी के बकाया वेतन का भुगतान नहीं किया। इसके बाद शिक्षिका ने दोबारा हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 20 सितंबर 2024 को हाईकोर्ट ने मामले को गंभीरता से लेते हुए डीईओ राजकुमार और डीपीओ स्थापना के वेतन निकासी पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी।
आश्चर्यजनक रूप से हाईकोर्ट के स्पष्ट आदेश के बावजूद डीईओ राजकुमार और डीपीओ स्थापना पर हर माह वेतन निकासी का आरोप लगा है। इस मामले को लेकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के जिलाध्यक्ष राज कुमार पासवान ने जिला अधिकारी (डीएम) शशांक शुभंकर को एक आवेदन सौंपा है। जिसमें डीईओ पर हाईकोर्ट के आदेश की अवमानना का आरोप लगाया गया। आवेदन के साथ डीईओ द्वारा हर माह निकाले गए वेतन की रसीदें भी संलग्न की गई हैं, जो इस मामले की गंभीरता को और बढ़ाती हैं।
आवेदन में कहा गया है कि डीईओ और कुछ कर्मचारियों की मिलीभगत से कोषागार से नियमित रूप से वेतन निकाला जा रहा है, जो न केवल हाईकोर्ट के आदेश का उल्लंघन है, बल्कि प्रशासनिक अनुशासनहीनता का भी प्रमाण है। यह मामला केवल वेतन निकासी तक सीमित नहीं है।
विभागीय सूत्रों के अनुसार सोगरा कॉलेज ऑफ एजुकेशन के प्रमाण पत्रों पर आधारित शिक्षकों की नियुक्ति और बर्खास्तगी में भी बड़े पैमाने पर अनियमितताएँ हुई हैं। हाईकोर्ट के आदेश से पहले विभाग ने सोगरा कॉलेज के प्रमाण पत्रों को अमान्य घोषित कर कई शिक्षकों को बर्खास्त कर दिया था। लेकिन कोर्ट के फैसले के बाद इन शिक्षकों की बहाली का आदेश दिया गया।
आरोप है कि बहाली की प्रक्रिया में भी भ्रष्टाचार हुआ। आरोप है कि जिन शिक्षकों ने चढ़ावा चढ़ाया, उन्हें ही नियुक्ति पत्र देकर पुनः बहाल किया गया। अन्य शिक्षकों को बिना किसी ठोस कारण के बहाली से वंचित रखा गया। मीरा कुमारी और रिटायर्ड शिक्षक राजेंद्र प्रसाद जैसे कई शिक्षकों ने बताया कि बकाया वेतन और बहाली के लिए बार-बार जिला शिक्षा कार्यालय के चक्कर लगाने पड़े, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
इस मामले ने अब राजनीतिक रंग ले लिया है। एनसीपी जिलाध्यक्ष राज कुमार पासवान ने डीएम को दिए आवेदन में डीईओ के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है। उनका कहना है कि यह मामला न केवल हाईकोर्ट की अवमानना का है, बल्कि शिक्षा विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार को भी उजागर करता है। जब शिक्षकों के हितों की रक्षा करने वाले अधिकारी ही नियमों का उल्लंघन करेंगे तो आम शिक्षकों का क्या हाल होगा?
डीएम शशांक शुभंकर को सौंपे गए आवेदन के बाद अभी तक कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है। शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने भी इस मामले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है। हालांकि सूत्रों का कहना है कि डीएम ने इस मामले की जाँच के आदेश दे दिए हैं और जल्द ही दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।
बहरहाल यह मामला नालंदा जिले के शिक्षा विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार और लापरवाही की गहरी जड़ों को उजागर करता है। हाईकोर्ट के आदेश की अवमानना एक गंभीर अपराध है और यदि आरोप सिद्ध होते हैं तो डीईओ और डीपीओ को न केवल प्रशासनिक कार्रवाई, बल्कि कानूनी दंड का भी सामना करना पड़ सकता है।
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