नालंदा दर्पण। नौ साल तक सेवा में रहने के बाद कार्यमुक्त किए गए एसपीओ (स्पेशल पुलिस ऑफिसर) के संघर्ष का फलाफल सकारात्मक रहा। पटना हाईकोर्ट ने एसपीओ की अर्जी को स्वीकार करते हुए केन्द्र और राज्य सरकारों से जवाबी हलफनामा देने के लिए नोटिस भेजा।
नालंदा में वर्ष 2011 में एसपीओ की बहाली हुई थी। एसपीओ की बहाली खासकर वैसे थानों में किया जिन थाना क्षेत्रों में उग्रवादी गतिविधियां बढ़ी हुई थीं।
बताया जाता है जिले के 10 थानों में कुल 279 एसपीओ बहाल किए गए थे।
वर्ष 2011 में संविदा पर बहाल हुए एसपीओ को पिछले साल बगैर किसी कारण और नोटिस के मौखिक तौर पर हटा दिया गया था।
हटाने के करीब दो माह बाद डीएम द्वारा अनुबंध तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दिया गया।
डीएम अपने आदेश में एसपी के उस अनुरोध को आधार बनाया, जिसमें कहा गया था कि वर्तमान में कार्यरत कोई भी एसपीओ भारत सरकार के गृह मंत्रालय से प्राप्त नवीन संशोधित मार्गदर्शिका की शर्तों को पूरा नहीं करते।
नौ वर्ष तक सेवा करने के बाद एसपी के मौखिक आदेश से हटाए गए एसपीओ ने एकजुट होकर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। करीब दो माह बाद मंगलवार को जस्टिस आशुतोष कुमार की अदालत में मामले की सुनवाई हुई।
संघ के अधिवक्ता अनिल कुमार सिंह ने बताया कि एसपीओ केसरी तथा अन्य द्वारा दायर अर्जी पर वरीय अधिवक्ता राजेन्द्र नारायण द्वारा मजबूती से पक्ष रखा गया।
अदालत को बताया गया कि आवेदक तथा अन्य नौ साल तक सेवा की, जिसे बगैर किसी कारण के हटा दिया जाना विधिसम्मत नहीं है।
वरीय अधिवक्ता राजेन्द्र की दलील से संतुष्ट अदालत ने केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकारों से जवाबी हलफनामा देने को कहा। इसके लिए नोटिस जारी करते हुए चार सप्ताह का वक्त दिया।
शुरुआती दौर में बहाल हुए एसपीओ का मानदेय 15 सौ रुपये था। बहाली प्रक्रिया पूर्ण होते-होते मानदेय बढ़कार तीन हजार रुपये हो गया था।
डीएम द्वारा जिले के सभी एसपीओ का अनुबंध इस साल के फरवरी माह में समाप्त किया गया। जबकि, एसपीओ की अनुपस्थिति विवरणी दिसम्बर 2018 तक एसपी कार्यालय को भेजा गया। बावजूद इसके अबतक एसपीओ के मानदेय का पूर्ण भुगतान नहीं किया।