नालंदा दर्पण डेस्क। एक तरफ देश का अन्नदाता पिछले चार महीने से दिल्ली के सिंघू , गाजीपुर और टिकरी बार्डर पर केंद्र सरकार के तीन नये कृषि कानून का विरोध करते हुए आंदोलनरत हैं तो वहीं नालंदा के नगरनौसा प्रखंड के तीनी लोदीपुर निवासी आप नेता धर्मेंद्र कुमार ‘लच्छे मोक्ष, गुच्छे धान,अन्नदाता किसान ही मेरा भगवान’ इस वाक्य के साथ गांव-गांव,डगर-डगर घूमकर केंद्र सरकार की तीन कृषि कानून का पुरजोर विरोध करते हुए पिछले चार महीने से किसानों के बीच जाकर जागरूकता फैला रहे हैं।
यहीं नहीं जब बिहार के किसानों को तीन कृषि कानून लाए जाने की तैयारी की भनक नहीं थी तब से यानी संपूर्ण लाॅकडाउन के दौरान धर्मेंद्र कुमार गांव-गांव जाकर किसानों को इस बिल के नुक़सान बताने में लगें हुए थे।
कृषि कानून के खिलाफ वह आज भी जिले के चंडी, नगरनौसा, थरथरी, हिलसा, रहूई, नूरसराय आदि प्रखंडों के गांव, खेत-खलिहान में जाकर जागरूकता का अलख जगाए हुए हैं। वे अपने कारवें को जोश और संकल्प के साथ
बढ़ाते जा रहें हैं।
धर्मेंद्र कुमार का कहना है कि सरकार ने देश का कृषि क्षेत्र काॅरपोरेट घराने को देने का इरादा कर लिया है। खेती-किसानी हमारे देश के किसानों की आजीविका है, कारोबार नहीं है।
वे कहते हैं कि किसानों के बीच जाकर यह बताना है कि तीनों कृषि कानून के 46 धारा में करता लिखा है,उसे हू-ब-हू किसानों के सामने प्रस्तुत कर देना है।साथ ही साक्ष्य के तौर पर तीनों कानून की प्रतियां उनके सामने रखना।
उनका मानना है कि तीन काला कृषि कानून जो पूरी तरह संविधान को दरकिनार कर बनाया गया है । केंद्र सरकार की सूची में कृषि आता ही नहीं है। यह राज्य सरकार के सूची की 14 वे नंबर पर है तो कानून बनाने का हक भी राज्य सरकार के पास है।
यह समवर्ती सूची में 33 और 34 नम्बर पर आता है। इसके अनुसार केंद्र सरकार अगर कोई कानून बनाता है तो राज्य सरकार से सलाह लेगा और राज्य सरकार अगर कोई कानून बनाता है तो केंद्र सरकार से सलाह करता है जो इस काला कानून को बनाते वक़्त ऐसा नहीं किया गया है।
धर्मेंद्र कुमार कहते हैं कि कार्य कठिन है, लेकिन गुलामी से ज्यादा दुष्कर नहीं है। वे कहते हैं कि दिन में तो ज्यादा किसानों से मुलाकात नहीं हो पाती है, लेकिन शाम से लेकर देर रात तक जिले के विभिन्न गांवों में मुलाकात का सिलसिला चलता रहता है।
वे अपने शायरी से भी किसानों के सामने अपनी बात रखते हैं- ‘किसानों ने क्या हक मांग लिया,नाली का कीड़ा हो गया,
मुंह खोलने पर अंबानी और अडानी जीवी को पीड़ा हो गया’।
उनका कहना है कि तीन कृषि कानून में 46 धारा है। कृषि करार में 25, वाणिज्य संवर्धन में 20 और एसेंशियल कमोडिटीज़ में 1धारा है।
क्या है तीन कृषि कानून:
पहला कानून जिसका नाम है ‘कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य विधेयक,2020,यह कानून निकट भविष्य में सरकारी कृषि मंडियों की प्रासंगिकता को खत्म कर देगा। सरकार निजी क्षेत्र को बिना किसी पंजीकरण और बिना किसी जबाबदेही के कृषि उपज के क्रय-विक्रय की खुली छूट दे रही है।
इस कानून की आड़ में सरकार निकट भविष्य में स्वंय ज्यादा अनाज न खरीदने की योजना पर काम कर रही है।ताकि वह भंडारण और वितरण की जबाबदेही से बच सके।
दूसरा कानून ‘कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार विधेयक है।इस कानून का पूरा विरोध इस तथ्य पर हो रहा है कि इसके जरिए किसानों को विवाद की स्थिति में सिविल कोर्ट जाने से रोका गया है।
साथ ही कांट्रेक्ट फार्मिंग के इस कानून की वजह से देश में भूमिहीन किसानों के एक बड़े वर्ग के जीवन पर गहरे संकट के बादल छाने वाले है।
गौरतलब रहे कि 2011 की जनगणना के अनुसार देश के कुल 26.3 करोड़ परिवार खेती-किसानी के काम में लगें हुए हैं जबकि इसमें से महज 11.9 करोड़ किसानों के पास खुद की जमीन है। जबकि 14.43करोड़ किसान भूमिहीन है। जो बड़ी संख्या में बंटाई पर खेती कार्य में लगी हुई है।
तीसरा कानून ‘आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक, 2020’ है। यह कानून आने वाले निकट भविष्य में खाद्य पदार्थों की महंगाई का दस्तावेज है।इस कानून के जरिए निजी क्षेत्र को असीमित भंडारण की छूट दी जा रही है। उपज जमा करने के लिए निजी निवेश को छूट होगी।
सरकार को पता नहीं चलेगा कि किसके पास कितना स्टॉक है और कहां है? यह जमाखोरी और कालाबाजारी को कानूनी मान्यता देने जैसा है।
वहीं, इस कानून में स्पष्ट लिखा है कि राज्य सरकारें असीमित भंडारण के प्रति तभी कार्यवाही कर सकती हैं जब वस्तुओं की मूल्यवृद्धि बाजार में दोगुनी होगी। एक तरह से देखें तो यह कानून महंगाई बढ़ाने की भी खुली छूट दे रहा है।
विपरीत हो चुकी आर्थिक स्थिति के बीच यह कानून देश के मध्य आय वर्ग एवं निम्न आय वर्ग की बुनियाद को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाने वाला माना जा सकता है।
धर्मेंद्र कुमार बिहारी कृषि परिवार तथा अन्य संगठनों के साथ मिलकर लाखों किसानों के हित की लड़ाई लड़ रहे हैं।किसान भी उनकी चौपाल पर जमा होते हैं और उनकी बातों को गंभीरता से सुनते हैं।
वे अंत में कहते भी हैं….
“हौसलों से जीत होती है, हथियारों से नहीं।
किसानों के साथ हूँ, हत्यारों के साथ नहीं”