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पंचायत भवन में लटका मिला युवक का सड़ा-गला शव, सुरक्षा में तैनात थे 3 होमगार्ड, 5 हत्याओं का चश्मदीद था मिंटू

मिंटू की हत्या ने न्याय की उस डोर को तोड़ने की कोशिश की है, जिसे उसने गोली लगने के बाद भी थामे रखा था। यदि न्यायिक तंत्र और प्रशासन ऐसे चश्मदीदों को नहीं बचा सकते, तो न्याय की उम्मीदें कमजोर पड़ती जाएंगी। यह केवल नालंदा का मामला नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम के लिए एक चेतावनी है...

राजगीर (नालंदा दर्पण)। छबीलापुर थाना क्षेत्र अंतर्गत लोदीपुर गांव में उस समय सनसनी फैल गई, जब 10 दिन से लापता युवक मिंटू कुमार उर्फ मिठू यादव (35 वर्ष) का सड़ा-गला शव गांव के पंचायत भवन से लटका हुआ बरामद हुआ। मृतक वर्ष 2021 में हुई बहुचर्चित पांच हत्याओं का चश्मदीद गवाह था और उसकी सुरक्षा में प्रशासन की ओर से तीन होमगार्ड की ड्यूटी लगाई गई थी।

परिजनों के अनुसार, मिंटू कुमार 30 अप्रैल से लापता था। 2 मई को गुमशुदगी की सूचना थाना में दी गई और 6 मई को एफआईआर दर्ज हुई। शुक्रवार की सुबह पंचायत सरकार भवन के महिला शौचालय से बदबू आने पर गार्ड ने दरवाजा खोला तो शव लटका मिला। शव की हालत देखकर अंदेशा जताया जा रहा है कि उसकी हत्या करीब एक सप्ताह पहले की गई थी।

मृतक के भतीजे रोहित कुमार ने बताया कि मिंटू परिवार के पुराने जमीन विवाद में 2021 की गोलीबारी का प्रत्यक्षदर्शी था। उस गोलीबारी में मिंटू खुद भी घायल हुआ था और उसके दो भाइयों सहित कुल पांच लोगों की मौके पर हत्या कर दी गई थी। इस घटना को लेकर बिहारशरीफ न्यायालय ने 2024 में 15 आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। जबकि दो नाबालिग आरोपियों पर केस अभी किशोर न्याय परिषद में लंबित है।

मिंटू की 30 अप्रैल को किशोर न्यायालय में गवाही होनी थी, जो किसी कारण टल गई। परिजन और ग्रामीणों का आरोप है कि सुनियोजित तरीके से उन्हीं बदमाशों ने मिंटू की हत्या कर दी, जो पहले की हत्या कांड में शामिल थे। आश्चर्य की बात यह है कि जिस पंचायत भवन से शव बरामद हुआ, वह प्रतिदिन खुलता था और वहां सुरक्षा गार्ड भी तैनात रहते थे। बावजूद इसके किसी को शव की भनक तक नहीं लगी।

घटना की जानकारी मिलते ही छबीलापुर थानाध्यक्ष मुरली आज़ाद पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंचे। शव की शिनाख्त मिंटू कुमार के रूप में की गई। डॉग स्क्वॉड और एफएसएल की टीम को भी बुलाया गया है। शव को पोस्टमार्टम के लिए बिहारशरीफ सदर अस्पताल भेज दिया गया है। पुलिस इसे हत्या मानकर हर पहलू पर जांच कर रही है।

परिजन सवाल उठा रहे हैं कि जब मिंटू की सुरक्षा में तीन होमगार्ड लगे थे तो फिर यह घटना कैसे हो गई? अब यह प्रशासनिक लापरवाही है या अपराधियों की चुनौती। यह जांच का विषय है। परंतु एक बात साफ है कि चश्मदीद गवाह की हत्या न्यायिक प्रक्रिया और कानून व्यवस्था दोनों पर गंभीर सवाल खड़े कर रही है।

क्योंकि मिंटू यादव की हत्या केवल एक व्यक्ति की हत्या नहीं है, बल्कि यह नालंदा की न्यायिक प्रक्रिया, पुलिसिया सुरक्षा व्यवस्था और गवाह सुरक्षा प्रणाली की गंभीर विफलता का उदाहरण है। वर्ष 2021 में पांच लोगों की नृशंस हत्या के मामले में मिंटू एक अहम गवाह था, जिसे गोली लगने के बावजूद उसने अपराधियों की पहचान की थी। अदालत में उसकी गवाही बेहद निर्णायक मानी जा रही थी।

प्रशासन की ओर से उसे सुरक्षा देने के नाम पर तीन होमगार्ड की ड्यूटी लगाई गई थी। परंतु प्रश्न यह उठता है कि यदि 24 घंटे की सुरक्षा थी तो आखिर 10 दिनों तक कोई यह क्यों नहीं जान पाया कि वह कहां है? क्यों पुलिस को उसकी गुमशुदगी के 4 दिन बाद जाकर एफआईआर दर्ज करनी पड़ी? और सबसे बड़ा सवाल गांव के पंचायत भवन में शव एक सप्ताह तक लटका रहा और किसी को भनक तक नहीं लगी?

भारत की न्याय प्रणाली में गवाहों की सुरक्षा आज भी बड़ी चुनौती बनी हुई है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2018 में गवाह सुरक्षा योजना लागू करने की सिफारिश की गई थी, लेकिन जमीनी स्तर पर उसका असर नगण्य है। मिंटू यादव जैसे अहम गवाहों के लिए भी कोई प्रभावी निगरानी या संरक्षित माहौल नहीं दिया गया।

गवाह की सुरक्षा में तीन होमगार्ड लगाए जाना क्या पर्याप्त था? क्या सिर्फ कागजी सुरक्षा से गवाहों की रक्षा हो सकती है? यह सवाल पुलिस-प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर आरोप लगाते हैं। जब पंचायत भवन जैसी सार्वजनिक जगह पर शव सप्ताह भर तक पड़ा रहता है, तब यह दर्शाता है कि निगरानी व्यवस्था पूरी तरह निष्क्रिय थी।

यह घटना पुनः यह सिद्ध करती है कि गवाह सुरक्षा के लिए विशेष कानून, डिजिटल निगरानी, सीसीटीवी कवरेज और फुलप्रूफ मानव निगरानी की आवश्यकता है। साथ ही, पुलिस को ऐसे मामलों में संवेदनशील और जवाबदेह बनाना जरूरी है।

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