बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। नालंदा सहित बिहार के 26 जिलों में स्थित संस्कृत विद्यालय शिक्षकों की कमी के कारण गंभीर संकट का सामना कर रहे हैं। इस अभाव ने इन विद्यालयों में पठन-पाठन को पूरी तरह ठप कर दिया है, जिससे बच्चों की शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
पिछले तीन वर्षों से शिक्षक नियुक्ति के लिए आवश्यक आरक्षण रोस्टर की अनुपलब्धता ने इस समस्या को और जटिल बना दिया है। बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष ने इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए सभी 26 जिलों के जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) को पत्र लिखकर स्थिति पर तत्काल कार्रवाई करने का आग्रह किया है।
बता दें कि बिहार राज्य के अराजकीय प्रस्वीकृत संस्कृत विद्यालयों (मध्यमा स्तर तक) में शिक्षक और शिक्षकेतर कर्मचारियों की नियुक्ति एवं प्रोन्नति के लिए आरक्षण रोस्टर की आवश्यकता होती है।
शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव ने जुलाई 2021 में ही सभी डीएम को इस संबंध में रोस्टर तैयार करने का निर्देश दिया था। सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार इन रोस्टरों को तैयार कर बोर्ड को उपलब्ध कराया जाना था।
हालांकि तीन वर्ष बीत जाने के बावजूद नालंदा, पटना, मुजफ्फरपुर, गया, नवादा, जहानाबाद, अरवल, रोहतास, कैमूर, बक्सर, मुंगेर, लखीसराय, जमुई, शेखपुरा, खगड़िया, भागलपुर, बांका, सहरसा, सुपौल, अररिया, पूर्णिया, किशनगंज, गोपालगंज, पूर्वी चम्पारण और दरभंगा सहित 26 जिलों से रोस्टर प्राप्त नहीं हुआ है।
बोर्ड ने इन जिलों से आरक्षण रोस्टर प्राप्त करने के लिए अब तक पांच बार स्मार-पत्र भेजे हैं। इसके बावजूद केवल पूर्वी चम्पारण जिले से आंशिक रूप से रोस्टर प्राप्त हुआ है, वह भी केवल चार विद्यालयों का और अधूरा। शेष 25 जिलों के किसी भी विद्यालय का रोस्टर बोर्ड को उपलब्ध नहीं कराया गया है। इस लापरवाही के कारण इन विद्यालयों में रिक्त पदों पर शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया शुरू नहीं हो सकी है। परिणामस्वरूप, इन स्कूलों में बच्चों की पढ़ाई बुरी तरह प्रभावित हो रही है।
संस्कृत शिक्षा बोर्ड ने इस स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की है और सभी संबंधित जिलों के डीएम से लापरवाही का जवाब मांगा है। बोर्ड ने प्रत्येक जिले के संस्कृत विद्यालयों की सूची भी भेजी है, ताकि रोस्टर तैयार करने में कोई असमंजस न रहे।
बोर्ड के अध्यक्ष ने स्पष्ट किया है कि रोस्टर की अनुपलब्धता के कारण शिक्षक नियुक्ति की प्रक्रिया को और अधिक विलंबित नहीं किया जा सकता। उन्होंने डीएम से तत्काल कार्रवाई करने और रोस्टर प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
बहरहाल, शिक्षकों की कमी ने न केवल पठन-पाठन को प्रभावित किया है, बल्कि संस्कृत जैसे महत्वपूर्ण विषय के प्रति छात्रों की रुचि को भी कमजोर किया है। नालंदा, जो प्राचीन काल से ही शिक्षा का केंद्र रहा है, यहां इस तरह की स्थिति चिंताजनक है। अभिभावकों ने भी इस मुद्दे पर नाराजगी जताई है और सरकार से त्वरित हस्तक्षेप की मांग की है।









