आज संसद से सड़क तक, अखबार से पत्रिका तक, स्टूल से कुर्सी तक, दफ्तर से घर तक ‘भ्रष्टाचार’ शब्द का अखंड कीर्तन चल रहा है। जिससे पूरा वातावरण सौम्य, शांत स्निग्ध,सुगंधित और पवित्र हो रहा है। दुःख-दारिद्र भाग रहा है। राम का नाम लेने वाले दुःखी होते थे। भ्रष्टाचार का नाम लेने वाले सुखी। भ्रष्टाचार की बात अब करना वैसा ही है, जैसे सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की कथा सुनाना। इस देश में भ्रष्टाचार की कथा उतनी ही पुरानी है, जितना राजा हरिश्चंद्र की कहानी। ईमानदारी इस देश में लुप्त चीज हो गई है। बेईमानी उतनी पुरानी बात हो गई है….
✍️ जयप्रकाश नवीन / बिहार ब्यूरो प्रमुख (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क)
नालंदा दर्पण। भ्रष्टाचार दुरात्मा नहीं है, सदात्मा है। भ्रष्टाचार राम नाम की तरह इस लोक और उस लोक को संवारने वाला है। जैसे ही आपके मुख से भ्रष्टाचार का नाम निकलेगा, आप सदात्मा समझ लिए जाएंगे। बगल बाला जो आपके मुँह से भ्रष्टाचार की बात सुनेगा, आपको सज्जन, ईमानदार और देशभक्त समझने लगेगा।
अपने पत्रकारिता के दो दशक से ज्यादा समय के सफर में मुझे भ्रष्ट तंत्र से यूँ तो कई बार बास्ता पड़ा है। प्रखंड स्तर के संवाददाता तौर पर आपको पहली लड़ाई थाना से ही शुरू होती है। फिर प्रखंड और अंचल कार्यालय जहाँ की लूट खसोट को उजागर करते हैं।
अगर आप ईमानदार हैं तो बेशक ऐसी सड़ी-गली व्यवस्था को देखकर दुख होता होगा, लेकिन आप समझौता वादी हैं तो आपको कुछ फर्क नहीं पड़ता है। लेकिन कल रात से मैं पूरी तरह सो नहीं सका। इसका एक कारण था एक खबर और उस पर आई एक टिप्पणी ने मुझे बेचैन कर दिया।
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क के नालंदा दर्पण में “शर्मनाक :लॉकडाउन में भी गरीबों की हकमारी कर रहें हैं चंडी के डीलर” शीर्षक से प्रसारित खबर लॉकडाउन में गरीब-लाचार और असहाय जनता आर्थिक और मानसिक परेशानी से गुजर रही है। उस पर जनवितरण प्रणाली की दुकान इनकी हकमारी कर रहा है। डीलर उन्हें घटिया चावल मुहैया करा रहे हैं।
इस बात को लेकर हमारे एक पाठक ने सिस्टम पर बहुत तल्ख टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि- “सिर्फ डीलर ही क्यों दोषी हो। इसके लिए एफसीआई, बीडीओ, एमओ और वरीय पदाधिकारी जिम्मेदार है। इन सबका कमीशन उपर तक जाता है। पीडीएस का माल का लोड और अनलोड देखना हो तो राइस मिल के पास देखो। चंडी में विपक्ष का कोई नेता भी नही है जो गरीबों की सुनें। सबको दलाली की आदत लगी हुई है। सब सही हो तो अफसर की क्या मजाल की वे भ्रष्टाचार करें। बेचारा गरीब गुलाम हैं और गुलाम रहेगा। पीडीएस का चावल कोई नहीं खाता है।”
उन्होंने मुझे आईना दिखाया कि “आप कुछ भी कर लीजिए। कुछ भी लिख लीजिए। कुछ बदलने वाला नहीं है। जो अनाज जानवर नहीं खा सकता है, उसे लोगों को दिया जा रहा है। पत्रकारिता कितनी बची है चंद लोग जैसे….चंद अफसर।”
मैं उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ। वे जिस विभाग से हैं, वहाँ पर उन्होंने भ्रष्टाचार की गंगोत्री बहती देखी है। उन्होंने अपने विभाग से भ्रष्टाचार को खत्म करना चाहा, लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी।
एक सफेदपोश, जो प्रखंड का महत्वपूर्ण सताधारी नेता रहे हैं, उनको देखकर लंबी सलामी देते हैं। यह भ्रष्टाचार की राम कहानी है। प्रखंड जहाँ से गाँव के विकास के लिए राशि जाती है, जहाँ कल्याणकारी योजनाएँ तैयार की जाती है लेकिन, सब के सब भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है।
प्रखंड एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक स्तर होता है। जहाँ गरीब और ग्रामीण जनता का प्रशासन से आमना -सामना होता है। उसी स्तर पर ग्रामीण विकास एवं गरीबी निवारण की सभी योजनाएँ चलाई जाती है। स्वास्थ्य, शिक्षा, पुलिस महकमा जैसे बुनियादी इकाई भी प्रखंड में है।
जब प्रखंड विकास की प्रशासनिक इकाइयाँ बनी थी तब परिकल्पना थी कि इस स्तर पर विकास योजनाएँ जनता की सहभागिता से कार्यान्वित होगी। लेकिन पिछले कुछ दशक में प्रखंड स्तर पर जन सहभागिता तो नाममात्र की है।
प्रखंड में आला अधिकारियों का वर्चस्व, थाना पर थानाध्यक्ष का कब्जा, गांव में प्रभावशाली व्यक्तियों एवं बिचौलिये से सांठ-गांठ कर विकास योजनाओं का लाभ गरीबों तक पहुँचने नहीं दिया जाता है। प्रखंड भ्रष्टाचार का अड्डा और दलालगाह बनकर रह गया है।
यह सच है कि कुछ सालों में प्रशासनिक गिरावट सरकार की ओर से विरासत में मिली है। प्रखंड स्तर पर प्रशासन उसी प्रकार काम करता है, जैसे पहले करता था। जिला स्तर के पदाधिकारियों द्वारा प्रभावी पर्यवेक्षण की कमी और दोषपूर्ण मॉनिटरिंग के फलस्वरूप ग्रामीण स्तर पर विकास तथा गरीबों को लाभान्वित करने की वास्तविकता को बड़ी आसानी से प्रखंड स्तर के पदाधिकारी छिपा लेते हैं।
जनता भी जागरूक और जुझारू दिखती नहीं है। उन्हें उनके हित के लिए उपलब्ध सरकारी योजनाओं से अंधेरे में रखा जाता है या फिर उनका काम तब तक नहीं हो सकता है जब आप टेबल के नीचे रूपये न सरकाये।
प्रखंड स्तर पर उनके योजनाओं का पदाधिकारियों और बिचौलियों के साथ बंदर बांट कर लिया जाता है। कई योजनाएँ कागज पर कार्यान्वयन दिखाकर फर्जी बिल द्वारा रूपये निकासी कर ली जाती है। यदि किसी को जानकारी मिल जाएँ, तो उसे डरा-धमकाकर चुप करा दिया जाता है या कुछ ले दे के साजिश में शामिल कर लिया जाता है।
प्रखंड में कुछ छुटभैये नेताओं की बाढ़ सी आई रहती है। जो प्रशासनिक अधिकारी पर दबाव डालकर लूट में अपना हिस्सा ले लेते है। यदि किसी ईमानदार पदाधिकारी ने इसका विरोध करने की जुर्रत दिखाई, तो प्रशासन के उपरी और राजनीतिक स्तर से उनका तबादला करा दिया जाता है या फिर शांत करा दिया जाता है।
कुछ इसी तरह की स्थिति थाना पर भी नजर आता है, जहाँ ये छुटभैये नेता किसी की पैरवी कराते हैं और पुलिस और आरोपी के बीच बिचौलिये या दलाल की भूमिका का निर्वहन करते हैं। पुलिस भी ऐसे छूटभैये नेताओं को कुर्सी देते हैं।
प्रखंड में शिक्षा व्यवस्था भी पूरी तरह बेपटरी हो चुकी है। स्कूलों में शिक्षक और छात्र दोनों हैं फिर भी पढ़ाई नहीं होती है। प्रखंड में फर्जी शिक्षक बहाली के दर्जनों मामले उजागर हुए, लेकिन आज तक किसी का बाल बांका नहीं हो सका।
राजनीतिक दलों से जुड़े लोगों ने शिक्षक नियोजन का भरपूर लाभ उठाया। अपने परिवार के सभी लोगों को शिक्षक की नौकरी में घुसा दिया। लेकिन मजाल हैं किसी की, जांच में इन पर कोई आंच आ जाएँ।
प्रखंड के पंचायतों में करोड़ों की राशि फेंकी मिलेगी लेकिन आपको धरातल पर कोई भी योजना नहीं मिलेगी।प्रखंड में शिलान्यास-उद्घाटन के दर्जनों शिलापट्ट मिल जाएगा। लेकिन सिर्फ रस्म अदायगी ही दिखेगी। वह योजना कुछ महीने में दम तोड़ देती है।
आप विश्वास नहीं करियेगा कि उपर से साफ-सुथरे देखने वाले पदाधिकारी अंदर से कितने काले हैं। आंखों से देखने में हकीकत को झुठलाने का साहस कोई नहीं कर सकता। कागजी रिपोर्टों के नग्न सत्य से कोई मुँह नहीं मोड़ सकता। लेकिन इस भ्रष्ट तंत्र में सबकुछ संभव है।
हाल-फिलहाल में निगरानी विभाग सक्रिय हुआ तो प्रखंड स्तर पर बीडीओ-सीओ से लेकर कर्मचारी तक भ्रष्टाचार में पकड़े गए। फिर भी आमतौर पर प्रशासन में भ्रष्टाचार में कमी नहीं आई। क्योंकि भ्रष्टाचार अब एक-दो पदाधिकारियों तक सीमित नहीं रहा।
यह पूरे सिस्टम में फैल चुका है। जब तक दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ पूरे सिस्टम में बदलाव लाने का प्रयास नहीं किया जाएगा। तब तक प्रखंड में कार्यकुशल, स्वच्छ और ईमानदार प्रशासन की उम्मीद करना बेकार है।
फिर भी सवाल है कि गरीबों की हकमारी आखिर कब तक चलेगी। न सरकार उनकी सुनती हैं, न पदाधिकारी और न ही उनके जनप्रतिनिधि। यह सियासत पर मयस्सर करता है कि वो दवा दे या दर्द। लेकिन गरीबों को दर्द के सिवा आज तक मिला क्या।
सतर्कता दिवस पर नेता और अफसर सब मनोहारी शपथ लेते हैं -‘हम करप्शन फ्री शासन देगे, फिर कहते है-करप्शन तो शासन के साथ फ्री में मिल रहा है।
‘धूमिल’ सही फरमा गये –
“एक आदमी रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
वह सिर्फ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूँ –
‘यह तीसरा आदमी कौन हैं?’
मेरे देश की संसद मौन है ।
…लेकिन हम मौन नहीं होंगे, हम अब और तमाशबीन नहीं बनें रह सकते हैं। क्योंकि इन गरीब, बेसहारा और बेबस लोगों का दर्द वहीं समझ सकता हैं जो इन राहों से गुजरा हो या फिर जयप्रकाश नवीन!