प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहर के पास स्थित हियून सांग मेमोरियल हॉल चीनी विद्वान और यात्री ह्वेन त्सांग की स्मृति में है।
इस स्मारक का निर्माण और नाम चीनी यात्री और विद्वान भिक्षु जुआनजांग के नाम पर रखा गया है।
भिक्षु जुआनजांग नालंदा में छात्र थे और बाद में प्राचीन नालंदा महाविहार में शिक्षक बन गए।
हियून सांग मेमोरियल हॉल प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहर से बमुश्किल 1.3 किमी दूर स्थित है।
जनवरी 1957 में भारत सरकार की ओर से भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपनी जीवनी के साथ जुआनजांग के अवशेष प्राप्त किए।
उसके बाद परम पावन दलाई लामा और तिब्बत के पंचन लामा से उनकी स्मृति में एक हॉल के निर्माण के लिए बंदोबस्ती की।
हियून सांग मेमोरियल हॉल निर्माण पहल का मकसद भारत और चीन के बीच सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ाना था।
हियून सांग मेमोरियल हॉल का निर्माण कार्य वर्ष 1960 में शुरू हुआ और वर्ष 1984 में पूरा हुआ।