अतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल राजगीर की सबसे बड़ी पहचान गर्म जल कुंड है। हर कोई इस गर्म कुंड में स्नान करने की ख्वाहिश रखता है।

राजगीर में 22 कुंड और 52 धारा है। सभी कुंडों और सभी धाराओं को अपना-अपना धार्मिक महत्व है। यहां के सभी कुंडों का नामकरण भी देवी-देवताओं के नाम पर है। 

इनमें ब्रहमकुंड, सप्तधारा, गंगा, यमुना, सावित्री, राम लक्षण, सीता कुंड, सूर्य, चंद्र, व्यास, अनंत, मार्कर्ण्ड, सरस्वती प्रमुख है। 

कहा जाता है कि ब्रहमा पुत्र राजा बसु ने माघ महीने में यहां एक यज्ञ का आयोजन किया था। स्वर्ग के सभी 33 कोटी देवी-देवताओं का इस आयोजन में शामिल होने आए। 

माघ की भीषण शीतलहरी में स्वर्गसुख के उपभोग करने वाले देवी देवताओं ने भगवान ब्रहमा जी से भीषण ठंड से निजात दिलाने के लिए गरम जल की व्यवस्था करने प्रार्थना की प्रार्थना की।  

देवी-देवताओं की इस प्रार्थना पर ब्रहमा जी की कृपा से पर्वतों से असीम गरम जलधारा फूट पड़ी। जो आज तक उसी रूप में प्रवाहित होती है। इसीलिए इस कुंड के ब्रह्मकुंड भी कहा गया है। 

मलमास के दौरान दुनियां में कहीं भी पुण्य कार्य या कर्म कांड राजगीर के अलावा कहीं नहीं होता है। इस दौरान राजगीर के गर्म जल के इस कुंड में स्नान करना विशेष फलदाई माना जाता है।  

इस कुंड के गरम जल की कई खासियत भी है। इसका जल पीने और स्नान करने से उदर, वात, त्वचा रोग, विकलांगता, कुष्ट जैसे रोगों से मुक्ति मिलती है। 

वैसे तो सर्दियों में जल कुंड में स्नान करने वालों की भीड़ ज्यादा होती है। लेकिन भीषण गर्मी में भी लोग यहां जमकर स्नान करते हैं।

महाभारत काल में राजगीर के इस इलाके को तापदा कहा जाता था। आज भी राजगीर में विभर पहाड़ के निचले हिस्से में पहाड़ों से निकलने वाले कई उष्ण प्रकृति के झरने हैं। 

इन झरनों में सबसे अधिक गर्म ब्रह्म कुंड है जिसका पानी 45 डिग्री सेल्सियस तक गर्म रहता है। ब्रह्मकुंड में उतरने से पहले उपर कई झरने बने हैं, जिनमें शेर की मुखाकृति से पानी गिरता है।  

राजगीर का यह कुंड यहां के कारोबार का मुख्य केंद्र माना जाता है। यहां आने वाले सैलानियों की वजह से यहां के होटल रिक्शा, तांगा, समेत कई धंधों से जुड़े लोगों का कारोबार चलता है।  

इस तरह यह ब्रह्म कुंड न केवल लोगों की आस्था से जुड़ा है बल्कि उनकी रोजी-रोटी से भी जुड़ा है।