बिहार के नालंदा जिलांतर्गत राजगीर अस्थित यह सोन भंडार गुफाएं तीसरी या चौथी शताब्दी के समय की प्रतीत होती हैं।

चौथी शताब्दी के गुप्त पात्रों में गुफा के प्रवेश द्वार पर चट्टान में एक शिलालेख है। 

इस शिलालेख में वैरादेवा नाम के एक जैन मुनि द्वारा तहखाने के निर्माण का उल्लेख किया गया है।

इस शिलालेख ने स्वाभाविक रूप से गुफा को चौथी शताब्दी का होने की पुष्टि की है। 

इस स्थान पर भगवान बुद्ध ने मगध के सम्राट बिम्बिसार को धर्मोपदेश दिया था। 

मौर्य शासक बिंबिसार ने अपने शासन काल में राजगीर में एक बड़े पहाड़ को काटकर अपने खजाने को छुपाने के लिए गुफा बनाई थी। 

इस कारण ही इस गुफा का नाम पड़ा था “सोन भंडार”। 

मौर्य शासक के समय बनी इस गुफा की एक चट्टान पर शंख लिपि में कुछ लिखा है। 

यह मान्यता प्रचलित है कि इसी शंख लिपि में इस खजाने के कमरे को खोलने का राज लिखा है। 

यह भी मानना है कि खजाने तक पहुंचने का यह रास्ता वैभवगिरी पर्वत सागर से होकर सप्तपर्णी गुफाओं यानि सोन भंडार गुफा के दुसरी तरफ़ तक पहुँचती है। 

सोन भंडार गुफाओं का रहस्यमय होना और इनकी अद्भुत बनावट पर्यटकों को खूब आकर्षित कर रही है।