नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त सम्राट कुमारगुप्त द्वारा की गई थी। यह प्राचीन भारत का विश्व विख्यात प्रतिष्ठित शिक्षा केंद्र था।
नालंदा विश्वविद्यालय भारत देश के बिहार राज्य अंतर्गत नालंदा जिले में स्थित है, जो प्राचीन समय में एक प्रमुख बौद्ध शिक्षा स्थल के रूप में प्रसिद्ध था।
नालंदा एक विशाल विश्वविद्यालय था जिसमें 9 मंजिला पुस्तकालय, कई कक्षाएं, अध्ययन कक्ष और छात्रावास थे। यह संस्थान 10,000 से अधिक छात्रों और 2,000 अध्यापकों का घर था।
यहाँ विभिन्न विषयों जैसे कि बौद्ध धर्म, तर्कशास्त्र, चिकित्सा, गणित, ज्योतिष, व्याकरण, दर्शन और शास्त्र की शिक्षा दी जाती थी।
इस विश्वविद्यालय की ख्याति न केवल भारत में, बल्कि चीन, जापान, कोरिया, तिब्बत, श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व एशिया तक फैली हुई थी। विदेशी छात्रों में प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग भी शामिल थे।
ह्वेनसांग ने नालंदा विश्वविद्यालय में कई वर्षों तक अध्ययन किया और अपनी पुस्तक 'सी-यू-की' में इसका विस्तृत वर्णन किया, जिससे हमें उस समय की शिक्षा प्रणाली और संस्कृति की जानकारी मिलती है।
12वीं शताब्दी में बख्तियार खिलजी के आक्रमण के दौरान इसे नष्ट कर दिया गया था। इसे जलाने की घटना इतिहास में विख्यात है। पुस्तकालय में लगी आग तीन महीने तक जलती रही थी।
आज नालंदा के खंडहर यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में संरक्षित हैं। 2014 में भारत सरकार ने इसका पुनर्निर्माण किया और इसे पुनः शिक्षा केंद्र के रूप में स्थापित किया।
नालंदा के अवशेष उसकी अद्वितीय वास्तुकला का प्रमाण हैं, जिसमें स्तूप, मठ और ताम्रनिर्मित मूर्तियां शामिल हैं। यह स्थान प्राचीन स्थापत्य कला और संस्कृति का अद्वितीय उदाहरण है।
नालंदा विश्वविद्यालय आज भी शैक्षिक इतिहास और भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। आधुनिक समय में इसकी पुनर्स्थापना एक शैक्षिक पुनरुद्धार का प्रतीक है।