राजगीर के पांचवे पर्वत वैभारगिरि पर स्थित पिपली गुफा महाभारत, मगध साम्राज्य तथा बौद्ध काल का संयुक्त धरोहर है।
यह गुफा ब्रह्म कुण्ड परिसर के दक्षिण पश्चिम में शिलाखंडों से निर्मित एक पत्थर की ईमारत से मिलकर बनी है।
पिपली गुफा के उपर विशाल आयताकार, चबुतरेनुमा सतह है। जिसकी लंबाई करीब 25.09 मीटर और चौड़ाई करीब 24.08 मीटर है।
वहीं विशाल बड़े बड़े शिलाखंडों से पर्वत की सतह से उपर तक निर्मित पिपली गुफा की ऊंचाई लगभग 9 मीटर से अधिक है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के रिपोर्ट में यह स्थान महाभारत काल में मगध सम्राट राजा जरासंध की बैठक के नाम से दर्ज है।
कहा जाता है कि भगवान बुद्ध के पिप्पली मानव नामक एख प्रमुख शिष्य महाकश्यप ने इस गुफा को निवास स्थल के रुप में चुना।
चीनी यात्री फाहियान का मत है कि भगवान बुद्ध भोजन के बाद इसी गुफा में आकर ध्यान मग्न हो जाया करते थे।
इस गुफा की खोज ब्रिटिश शासन का जनरल कर्निंघम ने 1895 ई. में किया और पौराणिक तकनीकी का बेमिसाल नमूना बताया था।
बौद्ध काल में गुफा के यहां चारों ओर केवल पीपल के वृक्षों की जमावड़ा रहा करता था। शायद उस कारण भी पिप्पली नाम पड़ गया।