नालंदा दर्पण डेस्क। भारतीय संविधान में यदि एक आम भारतीय नागरिक को अंतिम अधिकार दिया है तो वह है वोट का अधिकार। इस अधिकार से ही हम लोकतंत्र के सभी स्तंभों पर बखूबी नियंत्रित कर सकते हैं। उसमें बदलाव ला सकते हैं।
दिक्कत यही है कि देश में एक बड़ा समूह इस अधिकार को लेकर उस स्तर पर जागरुक नहीं हो पाए हैं, जो बैशाली की गर्भ से निकले वैश्विक लोकतंत्र की सफलता के लिए अहम हैं।
बहरहाल, नालंदा जिले के राजगीर विधान सभा क्षेत्र की एक ऐसी तस्वीरें सामने आई है, जो लोकतंत्र के प्रति जागरुकता और उत्साह की मिसाल पेश करती है। श्री जितेन्द्र कुमार एक दिव्यांग युवा मतदाता हैं और वे मध्य विद्यालय मुरौरा अवस्थित मतदान केन्द्र संख्या-15 पर बड़े स्वभिमान के साथ अपने अधिकार का प्रयोग करते दिख रहे हैं।
वेशक वे जिस उमंग से मतदान करते दिख रहे हैं, वह उन जैसे पढ़े-लिखे अनपढ़ों के मुँह पर एक तमाचा है, जो “हमरा देवे से और न देबे से को फरक होवअ हय” की मूर्खतापूर्ण दलील के साथ मतदान के दिन घरों में सोए रहते हैं और फिर उसके बाद पाँच साल तक व्यवस्था को गरियाते-कोसते रहते हैं।