हरि कथा अनंताः हरनौत में कायम रहेगी ‘बैताल फिर डाल पर’ की राजनीति !

हरनौत (नालंदा दर्पण)। राजनीति में कसमें वादे प्यार वफा का कोई मोल नहीं होता है। सियासत उस हाथी की दांत की तरह है, जहां से दिखाया कुछ और जाता है, होता कुछ और है। ऐसी ही जनता के विश्वास और धोखे की पटकथा लिखी गई है हरनौत विधानसभा में। जहां 2020 के विधानसभा चुनाव में अफवाह फैलाई गई कि यह चुनाव हरिनारायण सिंह के लिए आखिरी होगा। 

फिर एक साल से वर्तमान विधायक घूम घूमकर बता रहें थे कि अब मैं राजनीति से संन्यास ले रहा हूं। मैं अपनी विरासत अपने पुत्र को सौंपना चाहता हूं। यहां से लगा कि पिछले 25 साल से हरनौत विधानसभा में एकछत्र साम्राज्य कायम कर चुके हरिनारायण सिंह का राजनीतिक अंत होगा।

जनता भी सांस लेने लगी थी कि जल्द ही बदलाव की बयार बहेगी। एक महीने पहले ही लगा कि इस बार नीतीश कुमार आधी आबादी का सूखा खत्म कर एक इतिहास रचेंगे लेकिन उनके लिए फैसला लेना भी आसान नहीं रहा, उनके सामने विकल्प भी था, लेकिन जो उनकी राजनीतिक सोच रही है, उसपर शायद ही कोई उम्मीदवार खरा उतर पा रहें थे।

यहीं वजह रहा कि उन्होंने सारी शिकवा शिकायत को दरकिनार कर फिर से आखिरकार हरिनारायण सिंह को अपने क्षेत्र के लिए चुना।  हरिनारायण सिंह छठी पर जदयू की टिकट पर मैदान में उतरने जा रहे हैं। भले ही जनता में उनके प्रति नाराजगी देखी जा रही है, लेकिन नाराजगी तभी तक है, जब तक नीतीश कुमार उन्हें जीत का माला नहीं पहना देते हैं।

राजनीति और खेल का मैदान एक जैसे ही होते हैं,कभी कभी मजबूरी में मैदान में उतरना ही पड़ता है। राजनीति में कसम-ए-वादे, संन्यास वचन को तोड़ना ही पड़ता है, यह कोई नई बात नहीं है। वैसे भी राजनीति आज जनसेवा कम सता की लड़ाई ज्यादा है। राजनीति में विचारधारा और वचनबद्धता की जगह जातिय समीकरण, वोट बैंक और पार्टी हित ज्यादा रहता है।

निवर्तमान विधायक हरिनारायण सिंह को हरनौत से छठी बार मैदान में उतारने का फैसला सुप्रीमो को शायद फैसला भी कुछ इन्हीं कारणों से लिया गया है। नालंदा की राजनीति में पिछले लगभग 48 साल से सक्रिय “अपराजेय योद्धा” बने हुए हरनौत के निर्वतमान विधायक हरिनारायण सिंह पर नीतीश कृपा की बारिश हुई है।

सारे राजनीतिक अटकलों को झूठलाते हुए एक बार फिर से नीतीश कुमार ने उनपर विश्वास जताते हुए हरनौत की ट्रेन पकड़ा दी है, जिसपर सवार होकर वह छठी बार विधानसभा पहुंच जाएं।

हालांकि हरनौत विधानसभा हमेशा से नीतीश कुमार के लिए प्रतिष्ठा का सीट बना हुआ रहा है। लेकिन यहां से राजनीतिक चाणक्य नीतिश कुमार और नालंदा की राजनीति का भीष्म पितामह हरिनारायण सिंह का गठजोड़ बेजोड़ है।  इस बार सभी आकलन कर रहे थे कि नीतीश कुमार इनका पता साफ कर देंगे। किसी नये चेहरों को टिकट मिलेगा।

इसलिए हरनौत विधानसभा से मुखिया से लेकर छुट्भैय्ये नेता तक टिकट के लिए सीएम हाउस मंडराने लगे थे। कुछ विरोधी भी इनके पुत्र को टिकट देने का विरोध करने लगें थे। फिर भी वे राजनीति के ‘फीनिक्स’ साबित हुए। राजनीति में दिखावे से दूर रहने वाले निवर्तमान विधायक की यही छवि उनके लिए वरदान साबित हुई।

उनका विकल्प अभी हरनौत में नहीं है। सीएम नीतीश कुमार ने आखिरी बार उनकी उम्र की परवाह नहीं करते हुए भी जो भरोसा जताया है, यह उनकी राजनीति में सम्मानजनक विदाई इससे बेहतर नहीं हो सकती थी।

नालंदा की राजनीति के दो पुराने क्षत्रप में सत्यदेव नारायण आर्य के बाद पहले ऐसे नेता हैं, जो राजनीति में सक्रिय हैं। दोनों ने वर्ष 1977 से अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की। जहां सत्यदेव नारायण आर्य  आठ बार विधायक और मंत्री रहे और उसके बाद अपने पुत्र को विरासत सौंप दी।

वहीं हरिनारायण सिंह नौ बार चुनाव जीत चुके हैं और दो बार मंत्री रहे। इस बार अपने पुत्र अनिल कुमार को राजनीतिक में विधायक बनते देखना चाह रहे थे, लेकिन सत्यदेव नारायण आर्य की तरह भाग्यशाली नहीं है। हरिनारायण सिंह अपने राजनीतिक जीवन के दसवीं जीत के लिए मैदान में दमखम के साथ आ चुके हैं।

फिलहाल नीतीश कुमार ने जनता में उनके विरोध को दरकिनार कर उनका टिकट कंफर्म कर दिया है। अब ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि जनता सीएम के फैसले को चुपचाप स्वीकार करती है या उनके हार के दरवाजे खोलती है?

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