नालंदा दर्पण डेस्क/मुकेश भारतीय। बिहार की राजनीति में अपना अलग मुकाम बनाने वाले नीतीश कुमार शायद खुद भी नहीं जानते थे कि कभी उनके गुस्से में निकले शब्द भविष्य में एक ऐतिहासिक सच बन जाएंगे। दस बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने का रिकॉर्ड आज उन्हें भारतीय राजनीति के उन विरले नेताओं की पंक्ति में खड़ा कर देता है, जिनकी बराबरी कर पाना आने वाली पीढ़ी के लिए लगभग असंभव होगा।
करीब पच्चीस वर्षों तक सत्ता की कमान संभालना और दस बार मुख्यमंत्री बनने की यह उपलब्धि नीतीश को देश के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले नेताओं की श्रेणी में आठवां स्थान दिलाती है। यदि वे 2030 तक सत्ता में बने रहते हैं तो पवन कुमार चामलिंग और नवीन पटनायक जैसे दिग्गजों का रिकॉर्ड भी पीछे छूट सकता है।
लेकिन नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षा का बीज 2000 में नहीं, बल्कि 1977 में चुनावी हार के बाद पड़ा। उस समय वे बेहद उग्र स्वभाव के हो चले थे। पटना के डाकबंगला स्थित मशहूर कॉफी हाउस में एक दिन गुस्से में उन्होंने मेज पर हाथ मारकर कहा था कि एक दिन सत्ता हासिल करूंगा और बिहार में सब ठीक कर दूंगा। उसी पल से उनकी संघर्षयात्रा शुरू हुई, जो तीन दशक बाद जाकर सत्ता के शीर्ष पर पहुंची।
पटना कॉफी हाउसः राजनीति, साहित्य और सपनों का संगम
1971 में खुले इस कॉफी हाउस में कभी राजनीति और साहित्य के सबसे बड़े चेहरे जुटते थे। नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बीपी कोईराला, अज्ञेय, दिनकर, नागार्जुन, रेणु, सुरेंद्र किशोर से लेकर कर्पूरी ठाकुर, लालू यादव, सुशील मोदी जैसे नेता यहां घंटों बहस-मुबाहिसा करते थे।
यही वह जगह थी, जहां युवा नीतीश कुमार के मन में सत्ता परिवर्तन और सुशासन का सपना आकार ले रहा था। 1977 की चुनावी पराजय के बाद यह कॉफी हाउस उनका रोज़ का अड्डा बन गया। यहां चल रही चर्चाओं में भाग लेते हुए वे अक्सर अपनी झुंझलाहट जाहिर करते और तभी एक दिन उनके मुंह से मुख्यमंत्री बनने की बात निकली, वह आज एक सत्यपरक इतिहास बन चुका है।
पटना कॉफी हाउस में रेणु कॉर्नर की साहित्यिक महिमा
कॉफी हाउस में फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ के लिए एक खास जगह ‘रेणु कॉर्नर’ के नाम से आरक्षित रहती थी। साहित्यप्रेमी उनके पास बैठकर घंटों विचार-विमर्श किया करते थे। नागार्जुन और शंकर दयाल सिंह जैसे नाम भी यहां नियमित दिख जाते थे। राजनीति और साहित्य का यह अनोखा संगम उस दौर में पटना को देश के बौद्धिक नक्शे पर एक अलग पहचान देता था।
अब सिर्फ स्मृतियों में बसा है पटना कॉफी हाउस
1987 में जब कॉफी हाउस का अंतिम ताला लगा तो इसकी दिवारें भी गवाह बनीं उस महत्वाकांक्षी युवक की यात्रा की, जिसने यहां बैठकर बिहार में बदलाव का सपना देखा था। आज न कॉफी हाउस है और न उसकी मेजें। लेकिन यहां की स्मृतियां मिटाई नहीं जा सकतीं। यही स्मृतियां अब इतिहास बनकर यह बताती हैं कि कैसे एक साधारण युवक ने संघर्षों के लंबे रास्ते को पार कर बिहार की राजनीति का सबसे मजबूत स्तंभ बनने का मुकाम हासिल किया।
नीतीश कुमार का यह राजनीतिक सफर सिर्फ सत्ता की कहानी नहीं, बल्कि उस दृढ़ निश्चय का प्रमाण है, जिसने गुस्से में निकले शब्दों को भी इतिहास में दर्ज करा दिया औऱ पूरा देश बोल रहा है- 10वीं बार भी लगातार सिर्फ और सिर्फ नीतीश कुमार।
