Home चिकसौरा देखिए जुर्रतः सूचना की जगह दारोगा ने थाना बुलाकर की यूं बदतमीजी!

देखिए जुर्रतः सूचना की जगह दारोगा ने थाना बुलाकर की यूं बदतमीजी!

हिलसा (नालंदा दर्पण)। सूचना अधिकार अधिनियम 2005 की जानकारी का अभाव कहिए या पुलिसिया रौब। चिकसौरा थाना के एक एएसआई एक आवेदक के साथ जिस तरह के मानसिकता का परिचय दिया है, वह पुलिस-पब्लिक फ्रेंडली के ठिंढोरे की यूं ही पोल खोल जाती है।

कमरथू गांव निवासी नवीन कुमार ने थानाध्यक्ष चिकसौरा सह लोक सूचना पदाधिकारी से विधिवत सूचना मांगी गई थी कि कांड संख्या-9/18 एवं 10/18 में हिलसा अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी का पर्वेक्षण टिप्पणी प्रतिवेदन एक एवं कांड संख्या-9/18 एवं 10/18 में नालंदा पुलिस अधीक्षक नालंदा का प्रतिवेदन दो एवं ज्ञापांक 9394 सीआर दिनांकः29.11.18 की सत्यापित प्रति उपलब्ध कराई जाए।

श्री कुमार ने यह सूचना विगत 16 अप्रैल,2019 को सशुल्क आवेदन प्रपत्र ‘क’ के जरिए मांगी थी।

chiksaura crupt police rtiइसके बाद आज 25 अप्रैल,19 को चिकसौरा थाना के एक एएसआई शशि भूषण सिंह ने आवेदक को चौकीदार के जरिए थाना बुलवाया और तरह-तरह की चेतावनी देते हुए अनाप-शनाप बातें की।

एएसआई ने आवेदक के सूचना मांगने के तरीके और आवेदन पर ही सबाल उठाते हुए काफी दुर्व्यवहार किया।

हिलसा कोर्ट में मुंशी का कार्य करने वाले आवेदक ने तत्काल दूरभाष के जरिये इसकी शिकायत नालंदा एसपी से की। जिस पर एसपी ने लिखित शिकायत देने की बात कही।

बहरहाल, एएसआई के रवैये से साफ जाहिर होता है कि उसे सूचना अधिकार अधिनियम-2005 के बारे में कोई जानकारी नहीं है या फिर अपनी पुलिसिया रौब के बल सूचना नहीं देना चाहता है या फिर सूचना देने की एवज में कुछ खर्चा-पानी चाहता है।

जैसा कि अमुमन थानों में देखा जाता है। क्योंकि आवेदक के साथ जिस तरह के व्यवहार किए गए, उसमें इससे इतर कुछ नहीं नजर आता है।

सूचना अधिकार अधिनियम-2005 के तहत कोई भी जन सूचना पदाधिकारी 30 दिनों तक सूचना देने को बाध्य है।

यदि उसे आवेदन में कोई त्रूटि या सूचना देने में असमर्थता प्रतीत होता है तो वह अपने मंतव्य के साथ आवेदक को उसी अनुरुप सूचना उपलब्ध करा सकता है।

इसके बाद यदि आवेदक जन सूचना अधिकारी से असंतुष्ट होता है तो उसके लिए भी प्रथम अपीलीय प्राधिकार या आगे का दरवाजा खुला है।

लेकिन यहां जन सूचना अधिकारी की जगह थाने में पदस्थ कनीय कर्मी ने चौकीदार के जरिए बुलाकर उसके साथ दुर्व्यवहार किया। इससे नालंदा जिले के थानों की कार्यशैली की स्वभाविक पोल खुल जाती है कि वहां कितने योग्य या ईमानदार लोग भरे पड़े हैं।   

 

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