नालंदा दर्पण डेस्क। जब भी दुनिया के सबसे पुराने शिक्षण संस्थानों की बात आती है तो “नालंदा विश्वविद्यालय” का नाम सबसे ऊपर आता है।
इतिहासकारों के अनुसार, यह भारत में उच्च शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण और विश्व प्रसिद्ध केंद्र था। बिहार के नालंदा जिला में स्थित इस विश्वविद्यालय में आठवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी के बीच दुनिया के कई देशों के छात्र इस विश्वविद्यालय में पढ़ने आते थे।
इस विश्वविद्यालय में कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फ्रांस और तुर्की से छात्र आते थे।
आज वह विश्वविद्यालय खंडहर में तब्दील हो गया है। अगर एक नजर इतिहास पर डाल दूं तो 1199 में, तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इस विश्वविद्यालय को जलाकर पूरी तरह से नष्ट कर दिया था।
कुछ इतिहासकार बताते हैं कि, इस विश्वविद्यालय में इतनी किताबें थीं कि पूरे तीन महीने तक आग जलती रही। नालंदा विश्वविद्यालय के अतीत और उसके गौरवशाली इतिहास को सभी को जानना चाहिए। नालंदा प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध केंद्र था।
बौद्ध काल में भारत शिक्षा का केंद्र था। इस विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम (450-470) ने की थी। नौवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक, इस विश्वविद्यालय ने अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की।
यहां इतनी सारी किताबें रखी हुई थीं कि उन्हें गिनना आसान नहीं था। इस विश्वविद्यालय में हर विषय की पुस्तकें मौजूद थीं।
प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन के लिए तीन सौ कमरे, सात बड़े कमरे और नौ मंजिला पुस्तकालय था, जिसमें तीन लाख से अधिक पुस्तकें थीं।
प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था, जिसमें एक मुख्य प्रवेश द्वार था।
नालंदा विश्वविद्यालय बहुत प्राचीन है ओर उस समय की पढाई ओर आज की पढाई में ज़मीन आसमान का अंतर है। नालंदा से निकलने वाले एक-एक अभ्यात्री कुशल होते थे। मगर अब यह सिर्फ़ एक धरोहर मात्र हैं।
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