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16 अगस्त 1942 को चंडी थाना पर पहली बार फहराया गया था तिरंगा

The tricolor was hoisted for the first time at Chandi Thana on 16 August 1942
The tricolor was hoisted for the first time at Chandi Thana on 16 August 1942

आजादी के 73 साल बाद भी शहीद बिदेश्वरी सिंह की कोई प्रतिमा शहीद स्थल पर नहीं लग सकी है। यहां तक कि उनकी शहादत दिवस के एक दिन पहले ही उनके शहीद स्थल पर 15 अगस्त को हर साल झंडातोलन कर उन्हें याद किया जाता है। जबकि उनके गाँव में उनकी प्रतिमा स्थापित है

चंडी (नालंदा दर्पण)। जब महात्मा गांधी ने अंग्रजो भारत छोड़ो का नारा दिया था तब देश के ग्रामीण इलाको में भी आजादी के दीवाने गोरी सरकार से मुकाबले के लिए तैयार हो गए।

नालंदा के चंडी थाना में भी अगस्त क्रांति के दौरान थाना पर झंडा फहराने के दौरान एक क्रांतिकारी युवक शहीद हो गए थे।

शहीदों में चंडी के गोखुलपुर के बिंदेश्वरी सिंह का भी नाम दर्ज है। लेकिन शहादत के 78 साल बाद भी उनकी शहादत स्थल उपेक्षित है।

महात्मा गाँधी के आह्वान पर चंडी के सैकड़ों युवा 16 अगस्त 1942 को चंडी थाना पर झंडा फहराने के उद्देश्य से इंकलाब जिंदाबाद के नारो के बीच चंडी थाना पर पहुँच गए। जहाँ तिरंगा फहराने में कामयाब हो गए।

चंडी थाना पर झंडा फहराने के बाद सभी  उत्साही युवक चंडी थाना के बगल में स्थित डाकघर पहुँच गए तथा डाकघर को आग के हवाले कर दिया। डाकघर में आग लगते ही चंडी पुलिस ने फिर से मोर्चा संभाल लिया।

पुलिस के इस कार्रवाई से आंदोलनकारी फिर थाना पर हमला कर दिया। पुलिस ने उन्हें रोकने का प्रयास किया लेकिन भीड़ रूकने का नाम नहीं ले रही थी।

आंदोलनकारियों में शामिल गोखुलपुर के युवा बिंदेश्वरी सिंह ने थाना परिसर में उस समय लगे बरगद के पेड़ के पीछे छिपकर पुलिस पर रोड़े फेंकने लगे।

इसी बीच चंडी थाना के सिपाही वहीर खान ने अपने दोनाली बंदुक से फायर करना शुरू कर दिया।

सिपाही वहीर खान की गोली का शिकार बिंदेश्वरी सिंह हो गए और वे वही पर शहीद हो गए। सिपाही वहीर खान के द्वारा फायरिंग में रामशरण दास और खेसारी पंडित को भी गोली लगी जिसमें वे जख्मी हुए थे।

बिंदेश्वरी सिंह के मौत की खबर सुनकर आंदोलन कारी और उग्र हो गए।थाना में घुसकर तोड़ फोड़ करना शुरू कर दिया।

तब चंडी थाना के दारोगा बीपी राय तथा सिपाही वहीर खान मुहाने नदी में नाव के सहारे अपनी जान बचाकर भाग निकले थे। उस समय थाना में प्रयाग चौकीदार भी जो सुरक्षा व्यवस्था में लगे रहते थे वे सभी भी नौ दो ग्यारह हो गए।

इस घटना के कई दिन बाद तक किसी भी अंग्रेज़ पुलिस को चंडी आने में डर लग रहा था। बहुत दिनों के बाद जब स्थिति सामान्य हुई, तब दूसरे जिले से पुलिस भेजी गई थी।

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