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राजगीर ग्लास ब्रिज: चीन-अमेरिका को मात दे रहा यह भारतीय अजूबा

राजगीर (नालंदा दर्पण)। जरा  कल्पना कीजिए कि आपकी पैरों तले पारदर्शी कांच की चादर, नीचे हरी-भरी घाटियां और प्राचीन पहाड़ियां झांक रही हों और हवा में बौद्ध मंत्रों की गूंज मिश्रित हो। यही है बिहार के राजगीर में स्थित ग्लास ब्रिज का जादू। यह न केवल पर्यटकों को सांस रोक देने वाले रोमांच की सौगात दे रहा है, बल्कि प्राचीन नालंदा की धरोहर को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा रहा है।

वर्ष 2021 में खुलने के बाद से यह ब्रिज पर्यटन का नया केंद्र बन चुका है और 2025 में यहां होने वाले मेन्स हॉकी एशिया कप के साथ इसकी चमक और बढ़ने वाली है। लेकिन क्या यह दुनिया के अन्य ग्लास ब्रिजों से अलग है? आइए, इसकी अनोखी विशेषताओं और वैश्विक तुलना पर एक नजर डालें।

सुरक्षा और सौंदर्य का अनूठा मेलः राजगीर नेचर सफारी के हृदय में बसा इस ग्लास ब्रिज को ‘ग्लास स्काईवॉक’ भी कहा जाता है। यह  देश का पहला ऐसा आकर्षण माना जाता है, जो प्राकृतिक सौंदर्य को आधुनिक इंजीनियरिंग से जोड़ता है। लंबाई 85 फीट और चौड़ाई 6 फीट वाली यह संरचना तीन परतों वाली 15 मिलीमीटर मोटी पारदर्शी कांच से बनी है, जो एक साथ 40 पर्यटकों को सहजता से समायोजित कर सकती है।

स्टील की मजबूत फ्रेमिंग के साथ डिजाइन किया गया यह ब्रिज राजगीर की पांच मनमोहक पहाड़ियों के बीच फैला है, जहां से मत्स्यगंधा झील की लहरें और घने जंगलों का नजारा एक झलक में कैद हो जाता है।

बिहार पर्यटन विभाग की एक महत्वाकांक्षा के तहत निर्मित यह ब्रिज आज न केवल साहसिक पर्यटन को बढ़ावा दे रहा है, बल्कि स्थानीय रोजगार भी पैदा कर रहा है। उद्घाटन के बाद से यहां टिकट काउंटर पर ऑनलाइन बुकिंग की सुविधा उपलब्ध है और सितंबर से मार्च तक का मौसम इसे घूमने के लिए सबसे आदर्श माना जाता है। लेकिन इसकी असली ताकत इसके अनोखे पहलुओं में छिपी है, जो इसे दुनिया के अन्य ग्लास ब्रिजों से अलग बनाते हैं।

इतिहास, प्रकृति और संस्कृति का त्रिवेणी संगमः राजगीर ग्लास ब्रिज सिर्फ एक इंजीनियरिंग चमत्कार नहीं, बल्कि बिहार की सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत प्रतीक है। जहां दुनिया के अधिकांश ग्लास ब्रिज ऊंचे पहाड़ों या कृत्रिम ऊंचाइयों पर बने हैं। वहीं यह ब्रिज प्राचीन राजगीर की पवित्र भूमि पर टिका है, जहां भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था और जहां महावीर स्वामी ने ज्ञान प्राप्त किया।

ब्रिज से नीचे फैली घाटियां नालंदा विश्वविद्यालय की याद दिलाती हैं, जो यूनेस्को की विश्व धरोहर है। यह अनोखा संयोजन पर्यटकों को रोमांच के साथ आध्यात्मिक शांति भी प्रदान करता है। कल्पना कीजिए, कांच के फर्श पर चलते हुए नीचे बौद्ध स्तूपों की कल्पना करना!

पर्यावरण-अनुकूल डिजाइनः राजगीर नेचर सफारी का हिस्सा होने के कारण, ब्रिज जंगलों को नुकसान पहुंचाए बिना बनाया गया है। यहां से पर्यटक न केवल साहसिक वॉक का मजा लेते हैं, बल्कि आसपास के वन्यजीव सफारी और जिपलाइन एक्टिविटीज का भी आनंद उठा सकते हैं।

हाल ही में मत्स्यगंधा झील के पास बनाए गए नए ग्लास ब्रिज ने इसे और विस्तार दिया है, जहां कांच की तकनीक से पर्यटक झील की गहराइयों को निहार सकते हैं। यह ब्रिज स्थानीय कारीगरों की कला को भी बढ़ावा देता है। आसपास के हस्तशिल्प बाजार और बौद्ध सांस्कृतिक कार्यक्रम इसे एक पूर्ण पर्यटन पैकेज बनाते हैं।

साहस और समावेशिता का प्रतीक है यह ब्रिजः महिलाओं और बुजुर्गों के लिए विशेष सुरक्षा उपाय, जैसे हेलमेट और रेलिंग सभी उम्र के लिए सुलभ बनाते हैं। 2025 में हॉकी एशिया कप के दौरान यह अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों को आकर्षित किया। इससे राजगीर वैश्विक नक्शे पर खूब चमका। इन अनोखे पहलुओं से यह स्पष्ट है कि राजगीर ग्लास ब्रिज सिर्फ एक पुल नहीं, बल्कि बिहार की पहचान का नया अध्याय है।

विश्व स्तरीय तुलना: राजगीर की चमक वैश्विक चमत्कारों से टक्कर लेती दुनिया में ग्लास ब्रिजों का दौर चल रहा है, लेकिन राजगीर का ब्रिज अपनी सांस्कृतिक गहराई से अलग खड़ा है। आइए, कुछ प्रमुख वैश्विक उदाहरणों से तुलना करें:

झांगजियाजिए ग्रैंड कैन्यन ग्लास ब्रिज, चीनः दुनिया का सबसे लंबा (430 मीटर) और ऊंचा (300 मीटर) ग्लास ब्रिज है। यह वर्ष 2016 में खुला है। यह साहसिक पर्यटन का प्रतीक है, लेकिन राजगीर की तुलना में इसमें सांस्कृतिक इतिहास की कमी है। झांगजियाजिए की ऊंचाई डरावनी है, जबकि राजगीर का ब्रिज अधिक सुलभ (85 फीट) और प्रकृति से जुड़ा है।

ग्रैंड कैन्यन स्काईवॉक अमेरिका: 4000 फीट ऊंचाई पर हॉर्सशू आकार का यह ब्रिज भूगर्भीय चमत्कार दिखाता है। हालांकि यह निजी स्वामित्व वाला है और टिकट बहुत महंगा (टिकट $50+) है। जबकि राजगीर का ब्रिज किफायती (टिकट ₹100-200) और सरकारी पहल है।

बैच लॉन्ग ब्रिज, वियतनाम: एशिया का सबसे लंबा (लगभग 200 मीटर) समुद्र तट पर बना। यह रोमांचक है, लेकिन राजगीर की तरह प्राचीन धरोहर से नहीं जुड़ा।

पेलिंग ग्लास स्काईवॉक, सिक्किम (भारत): देश का दूसरा प्रमुख ग्लास ब्रिज नंदा देवी रेंज पर बना है। वर्ष 2025 में लॉन्च होने वाला यह राजगीर से छोटा है, लेकिन हिमालयी दृश्यों में समानता रखता है। फिर भी राजगीर की बौद्ध विरासत इसे अनोखा बनाती है।

कुल मिलाकर जहां वैश्विक ब्रिज ऊंचाई और लंबाई पर जोर देते हैं, राजगीर का फोकस सतत पर्यटन और सांस्कृतिक एकीकरण पर है। यह छोटा होने के बावजूद अपनी पहुंच और बहुमुखी प्रतिभा से वैश्विक स्तर पर खरा उतरता है।

बुला रहा है रोमांच और शांति का संगम राजगीरः राजगीर ग्लास ब्रिज साबित करता है कि बिहार पर्यटन की क्षमता असीमित है। यह न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रहा है, बल्कि दुनिया को बता रहा है कि प्राचीनता और आधुनिकता का मेल कितना जादुई हो सकता है। यदि आप साहसिक सफर की तलाश में हैं तो राजगीर आइए, जहां कांच के फर्श पर चलना इतिहास की किताबें जीवंत कर देगा।

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