

नालंदा दर्पण डेस्क। नव नालंदा महाविहार (एनएनएम) ने नई दिल्ली के प्रतिष्ठित इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (आईआईसी) में आयोजित एक भव्य प्रदर्शनी में अपनी दुर्लभ पांडुलिपियों और बौद्ध साहित्य के अनमोल खजाने का प्रदर्शन किया है। यह प्रदर्शनी आईआईसी के वार्षिक उत्सव सा-वनिता का हिस्सा है और बौद्ध धर्म के प्राचीन ज्ञान और नालंदा की समृद्ध परंपरा को जीवंत रूप में प्रस्तुत कर रही है। प्रदर्शनी में चीनी त्रिपिटक, त्रिपिटक के खंड, अट्ठकथाएं और भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के भाषण जैसी दुर्लभ सामग्रियों ने दर्शकों का ध्यान खींचा है।
बता दें कि 10 अक्टूबर को आईआईसी के सम्मेलन कक्ष में इस प्रदर्शनी का उद्घाटन एक गरिमामय समारोह में हुआ। उद्घाटन समारोह में आईआईसी के अध्यक्ष श्याम शरण, प्रसिद्ध कला विशेषज्ञ और आईआईसी की आजीवन न्यासी डॉ. मीनाक्षी गोपीनाथ, निदेशक डॉ. केएन श्रीवास्तव और नव नालंदा महाविहार के कुलपति प्रो. सिद्धार्थ सिंह ने भाग लिया।
इस अवसर पर प्रो. सिंह ने प्रदर्शनी के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि यह प्रदर्शनी नालंदा की प्राचीन परंपरा को आधुनिक युग में पुनर्जनन का एक प्रयास है। हमारा उद्देश्य बौद्ध साहित्य और संस्कृति के अनमोल रत्नों को विश्व के सामने लाना है।
इस प्रदर्शनी में नव नालंदा महाविहार द्वारा संरक्षित दुर्लभ पांडुलिपियों का एक अनूठा संग्रह प्रदर्शित किया गया है। इनमें सिंहली लिपि में पालि ग्रंथ विशुद्धिमग्ग बौद्ध दर्शन का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ, तिब्बती लिपि में संस्कृत ग्रंथ अष्टसहस्रिका प्रज्ञा पारमिता सूत्र महायान बौद्ध धर्म का आधारभूत सूत्र, खमेर लिपि में पालि व्याकरण दक्षिण-पूर्व एशियाई बौद्ध परंपराओं की झलक शामिल हैं।
वहीं इस प्रदर्शन में बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों को समेटे चीनी त्रिपिटक और त्रिपिटक के विभिन्न खंड, एनएनएम द्वारा प्रकाशित एक महत्वपूर्ण शैक्षिक उपकरण पालि-हिंदी शब्दकोश, भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा नव नालंदा महाविहार के स्थापना दिवस पर दिया गया ऐतिहासिक भाषण की प्रतियां भी लोगों को आकर्षित कर रही है।
प्रदर्शनी का एक विशेष आकर्षण भारतीय बौद्ध स्थलों को दर्शाने वाले पैनल हैं, जो बोधगया, सारनाथ, कुशीनगर और नालंदा जैसे पवित्र स्थानों की महिमा को उजागर करते हैं। इन पैनलों के माध्यम से दर्शकों को भारत की बौद्ध विरासत की गहरी समझ प्राप्त हो रही है।
साथ ही एनएनएम द्वारा तैयार की गई वृत्तचित्र फिल्में भी प्रदर्शनी का हिस्सा हैं, जो नालंदा के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को जीवंत रूप में प्रस्तुत करती हैं। कई अन्य दुर्लभ दस्तावेज और प्रकाशन भी प्रदर्शित किए गए हैं, जो बौद्ध साहित्य और नालंदा की समृद्ध विरासत को दर्शाते हैं।
प्रदर्शनी में दर्शकों की भारी भीड़ उमड़ रही है। बौद्ध साहित्य के प्रेमी, शोधकर्ता, और सामान्य दर्शक इन दुर्लभ पांडुलिपियों और प्रदर्शन सामग्रियों को देखने के लिए उत्साहित हैं। आईआईसी के अध्यक्ष श्याम शरण के अनुसार नव नालंदा महाविहार ने प्राचीन नालंदा की विरासत को पुनर्जनन करने का जो प्रयास किया है, वह अत्यंत प्रशंसनीय है। यह प्रदर्शनी न केवल शैक्षिक है, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी प्रेरणादायक है।
उद्घाटन समारोह और प्रदर्शनी में पुस्तकालयाध्यक्ष डॉ. केके पांडेय, सुबोध कुमार और कई अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। सभी ने इस आयोजन को नालंदा की प्राचीन विद्या परंपरा को जीवित रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया।
प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए स्थापित नव नालंदा महाविहार किया गया था। जोकि इस प्रदर्शनी के माध्यम से अपनी प्रतिबद्धता को और सशक्त रूप में प्रस्तुत कर रहा है। यह आयोजन न केवल बौद्ध साहित्य और संस्कृति के प्रति जागरूकता बढ़ा रहा है, बल्कि नई पीढ़ी को प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा से जोड़ने का भी एक अनूठा प्रयास है। यह प्रदर्शनी 15 अक्टूबर तक आईआईसी में दर्शकों के लिए खुली रहेगी।









