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चौरसिया महासभा की ओर से नागपंचमी दिवस पर किया गया समारोह का आयोजन

इसलामपुर (नालंदा दर्पण)। इसलामपुर प्रखंड के कोचरा पान शीत भवन में बिहार प्रदेश आर्दश चौरसिया महासभा  की ओर से नागपंचमी चौरसिया दिवस समारोह का आयोजन किया गया। जिसमें नागदेवता का पुजा अर्चना किया गया।

Celebration organized on Nagpanchami day by Chaurasia Mahasabha 1इस दौरान महासभा के प्रदेश सचिव आलोक कुमार ने कहा कि पान की खेती करने वाले चौरसिया समाज नागदेव को अपना अराध्य देव मानते चले आ रहे है। मान्यता है कि भगवान नाग उनकी पान खेती में वृद्धि करते है। इस कारण पान का बेल को नागबेल कहा जाता है। इस दिन चौरसिया समाज के लोग अपना व्यावसायिक प्रतिष्ठान बंद करके इसे मनाते है।

उन्होंने कहा कि इस समाज का इतिहास बहुत पुराना है। चौरसिया नामक शब्द चौऋषि के नाम पर पड़ा है। इस समाज के लोगों का मुख्य पेशा पान खेती करना और पान बेचना है। पान का महत्व आदि काल से पृथ्वी पर रहा है।

एक वार पृथ्वी पर यज्ञ होना था। उस समय पान का अवश्यक्ता पड़ी। पान तो पता ( नागलोक) मे था। अबवहा से पान कैसे लाया जाय। उसकी जिम्मेवारी चौऋषि मुन्नी को दी गई। चौऋषि मुन्नी नागलोक जाकर नागबेल लेकर आए। लेकिन इसके एवज में नागराज की कन्या से शादी करनी पड़ी। दोनों मिलकर नागबेल धरती पर लाए। उस नागबेल को रोपा गया। जिसके बाद पान की उत्पति हुआ। तब यज्ञ प्रारंभ हुआ। चौऋषि मुन्नी और नागराज की कन्या से जो संतान हुआ। वह चौरसिया कहलाया।

महासभा पटना के प्रदेश अध्यक्ष एसपी प्रियदर्शी ने कहा कि चौरसिया समाज का यह मुख्य त्योहार माना जाता है। पूरे देश के अलावे विदेशों मे चौरसिया, वरई, तम्वोली, बंधु है और इस त्यौहार को मनाते है।

प्रदेश संगठन मंत्री सुभाष चौरसिया ने कहा कि चौरसिया शब्द का उत्पति संस्कृत शब्द चतुकशीत से हुई है। जिसका शाव्दिक अर्थ चौरासी होता है। आथर्त चौऋषि समान चौरासी गोत्र में और तम्वोली समाज उपजाति है।

कार्यकारी अध्यक्ष ई. आर के प्रसाद ने कहा कि तम्वोली शब्द का उत्पति संस्कृत शब्द ताम्वुल से हुई है। जिसका अर्थ पान होता है और चौरसिया समाज के लोगों द्वारा नागदेव को अपना कुलदेवी माना जाता है। महाभारत काल समाज उत्पति का इतिहास है। एक मान्यता के अनुसार पांडवों द्वारा युद्ध मे कौरव को परास्त करने के बाद सम्पूर्ण महायज्ञ के लिए भारत से ऋषि मुनियों को आमंत्रित किया गया था। तब प्रारंभ के लिए पान की अवश्यक्ता पड़ी। लेकिन उस समय पृथ्वी पर पान नहीं था। इसके लिए एक राजदूत को पताललोक भेजा गया। पताल लोक राजा नागबासुकी ने राजदुत के उंगली का उपरी भाग काटकर दिया। राजदूत पृथ्वी पर आया और कटा उंगली का पृथ्वी पर बीजोरोपन कर दिया गया। जिससे एक बेल की उत्पति हुआ। जिससे नागब्ल कहा गया। उस नागवेल पर पान उगा। इस तरह पान पृथ्वी पर आया। इस नागवेल की रक्षा और खेती हेतु चौऋषि समाज को चुना गया। चौऋषि समाज नागवंशी के साथ महाभारत काल के साक्षी कहलाए।

इधर खुदागंज मगही पान कृषक कल्याण संस्थान मे नागपंचमी के अवसर पर नाग देवता का पूजा-अर्चना किया गया। इस मौके पर संघ सचिव त्रिपुरारी चौरसिया, लक्ष्मीचंद चौरसिया, अशोक चौरसिया, श्रवण चौरसिया आदि लोग मौजूद थे।

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