हिलसा (नालंदा दर्पण)। हिलसा अनुमंडल के पश्चिमी क्षेत्र में हर साल आने वाली बाढ़ की समस्या ने स्थानीय लोगों की जिंदगी को मुश्किल में डाल रखा है। इस बार फिर बाढ़ ने क्षेत्र के गांवों को जलमग्न कर दिया, फसलों को नष्ट कर दिया और हजारों लोगों को बेघर कर दिया। लेकिन इस बार चर्चा का केंद्र है एक ऐसी समस्या, जिसका जड़ 1962 में की गई एक इंजीनियरिंग भूल में छिपा है।
विशेषज्ञों और स्थानीय लोगों का कहना है कि फल्गु नदी से निकलने वाली मुहाने नदी का मुंह बंद होना ही इस बार-बार आने वाली तबाही का मूल कारण है।
बता दें कि 1962 में अभियंताओं ने उदेरा स्थान के पास फल्गु नदी से निकलने वाली मुहाने नदी के मुंह को बंद कर दिया। उस समय यह निर्णय लिया गया था कि इससे नदी का प्रवाह नियंत्रित होगा और क्षेत्र में बाढ़ की समस्या कम होगी। लेकिन यह निर्णय घोर लापरवाही का परिणाम साबित हुआ।
मुहाने नदी का मुंह बंद होने से फल्गु नदी का अतिरिक्त पानी अब पश्चिमी हिलसा की ओर बहता है, जिससे इस क्षेत्र में हर साल बाढ़ की स्थिति बन जाती है। दूसरी ओर हिलसा का पूर्वी क्षेत्र सूखे की मार झेलता है, क्योंकि उसे पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता।
स्थानीय किसान रामविलास महतो कहते हैं कि हमारी जमीनें हर साल पानी में डूब जाती हैं। अगर मुहाने नदी का मुंह खुला होता तो पानी का बंटवारा हो जाता और हमारी फसलें बच जातीं। उनकी बात में दम है, क्योंकि मुहाने नदी के बंद होने से पानी का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ गया है।
हिलसा के पश्चिमी क्षेत्र में बाढ़ की समस्या इतनी गंभीर है कि मानसून के दौरान सैकड़ों गांव जलमग्न हो जाते हैं। सड़कें, स्कूल और स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है। वहीं पूर्वी हिलसा में पानी की कमी के कारण किसानों को सिंचाई के लिए तरसना पड़ता है। यह विडंबना है कि एक ही अनुमंडल के दो हिस्से दो विपरीत समस्याओं से जूझ रहे हैं।
जल संसाधन विशेषज्ञ डॉ. अशोक कुमार का कहना है कि मुहाने नदी का मुंह खोलना एक स्थायी समाधान हो सकता है। इससे फल्गु नदी का अतिरिक्त पानी लोकायन और मुहाने नदियों में बंट जाएगा। यह न केवल बाढ़ की समस्या को कम करेगा, बल्कि पूर्वी क्षेत्र में सिंचाई के लिए पानी भी उपलब्ध कराएगा।
स्थानीय लोग और विशेषज्ञ लंबे समय से मांग कर रहे हैं कि मुहाने नदी का मुंह फिर से खोला जाए। इससे न सिर्फ बाढ़ का पानी नियंत्रित होगा, बल्कि पूर्वी हिलसा के किसानों को सिंचाई की सुविधा भी मिलेगी। इसके अलावा यह कदम क्षेत्र की पारिस्थितिकी को भी संतुलित करेगा।
हिलसा के सामाजिक कार्यकर्ता श्याम सुंदर कहते हैं कि यह समस्या तकनीकी है, लेकिन इसका समाधान राजनीतिक इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है। अगर सरकार इस दिशा में कदम उठाए तो हिलसा के लोगों को दशकों पुरानी इस त्रासदी से मुक्ति मिल सकती है।
वहीं जल संसाधन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इस समस्या का अध्ययन किया जा रहा है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हम मुहाने नदी के मुंह को खोलने की संभावनाओं पर विचार कर रहे हैं। इसके लिए एक विस्तृत सर्वेक्षण और तकनीकी मूल्यांकन की जरूरत है। हालांकि स्थानीय लोगों को लगता है कि इस दिशा में कार्रवाई की गति धीमी है।
बहरहाल, हिलसा की बाढ़ और सूखे की समस्या कोई नई नहीं है, लेकिन इसका समाधान दशकों पुरानी एक भूल को सुधारने में छिपा है। मुहाने नदी का मुंह खोलना न केवल एक तकनीकी समाधान है, बल्कि यह हिलसा के लोगों के लिए उम्मीद की किरण भी है।
अगर ठोस कदम उठाया गया तो न सिर्फ पश्चिमी हिलसा को बाढ़ से राहत मिलेगी, बल्कि पूर्वी हिलसा के खेत भी लहलहा उठेंगे। अब सवाल यह है कि क्या सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठाएगी, या यह मुद्दा फाइलों में ही दबा रहेगा? समय और सरकार का जवाब इसका फैसला करेगा।

संपादकीय टिप्पणी: यह समय है कि हिलसा की इस जटिल समस्या को गंभीरता से लिया जाए। तकनीकी और प्रशासनिक स्तर पर समन्वय के साथ इस दिशा में तेजी से काम करने की जरूरत है। ताकि हिलसा के लोग बाढ़ और सूखा के दोहरे संकट से मुक्त हो सकें।









