“भूषण मुखिया जहां तुलसीगढ़ पंचायत से मुखिया पद के उम्मीदवार होंगे तो वहीं दस साल मुखिया रही और निवर्तमान जिप सदस्या अनिता फिर से मैदान में होंगी। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी सीट बचाने को होगी तो पति भूषण मुखिया अपनी हार का बदला लेना चाहेंगे…
नालंदा दर्पण चुनाव डेस्क। चंडी प्रखंड में भले ही चुनाव सातवें चरण में हो लेकिन चुनाव प्रचार महीनों पहले से जारी है। चंडी में त्रिस्तरीय पंचायत में सबकी निगाहें जिला परिषद की पश्चिमी सीट पर है।
इन सब के बीच मुखियाओं में सबसे ज्यादा लोकप्रिय रहें कुमार चंद्र भूषण उर्फ भूषण मुखिया और उनकी पत्नी अनिता सिन्हा दोनों चुनाव मैदान में आ रहे हैं।
हालांकि कि इसमें कोई शक नहीं कि भूषण मुखिया की लोकप्रियता किसी से कम है। क्षेत्र में उन्हें लोग ग़रीब-गुरबो का मसीहा और दानवीर कर्ण के नाम से जानते हैं। क्षेत्र में जनता के सुख दुख में हमेशा आगे रहते हैं। बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
चंडी प्रखंड के तुलसीगढ़ पंचायत के जलालपुर निवासी और वर्तमान में चंडी से जिला परिषद सदस्या अनिता सिन्हा के घर-परिवार के लिए राजनीति उस लक्ष्मी की तरह है जो घर में वास करती है।
पति-पत्नी दोनों ने 15 साल तक पंचायत में अपना वर्चस्व बनाए रखा। जब पति कुमार चंद्र भूषण 2016 में अपने परंपरागत प्रतिद्वंद्वी मणिकांत मनीष से चुनाव हार गए।
उसके बाद भी राजनीति ने इनके घर के चौखट को पार नहीं किया। किस्मत ने ऐसा साथ दिया कि पूर्व मुखिया की पत्नी पूर्व मुखिया अनिता सिन्हा जिला परिषद सदस्य पद पर काबिज हो गई।
चंडी प्रखंड में एक लोकप्रिय नाम है, जो किसी परिचय का मुहताज नहीं है।उनकी राजनीतिक कद किसी से कम नहीं है। नाम कुमार चंद्र भूषण उर्फ भूषण मुखिया।
एक ऐसा समाज सेवक जो हर समय हर किसी के दुःख-सुख में साथ खड़ा होता है।2001के पंचायत चुनाव में तुलसीगढ़ पंचायत से चुनाव जीते। जब सीट महिलाओं के लिए आरक्षित हो गया तो उन्होंने अपनी पत्नी अनिता सिन्हा को पंचायत में उतार दिया।
एक गृहणी से वह पंचायत की मुखिया बन गई। जलवा ऐसा कि 2011 में भी वह दूसरी बार चुनाव जीतने में सफल रही।2016 में जब पंचायत पुरुष आरक्षित हुआ तो इनके पति पूर्व मुखिया कुमार चंद्र भूषण मैदान में उतरे।
लेकिन दुर्भाग्य रहा कि उन्हें इस बार शिकस्त का सामना करना पड़ा। 15 साल तक पंचायत की राजनीति में एकछत्र राज करने वाले परिवार के लिए लगा राजनीति उनसे रुठ गई हो। लेकिन कुछ ऐसा संयोग हुआ कि बिल्ली के भाग्य से सींका टूटी वाली कहावत चरितार्थ हो गई।
चंडी पश्चिमी से 2016 में जिला परिषद सदस्य निर्वाचित हुई रिटायर्ड शिक्षिका चंद्रकांति देवी का आकस्मिक निधन हो गया। उपचुनाव के दौरान उन्होंने अपनी पत्नी अनिता सिन्हा को मैदान में उतार दिया। उनके सामने दिवंगत सदस्या की बहू मैदान में आ गई।
लगा सहानूभूति वोट उनकी बहू को मिल जाएगा, लेकिन जनता ने भूषण मुखिया की छवि और लोकप्रियता को प्राथमिकता देते हुए अनिता सिन्हा को एक बड़े अंतर से चुनाव जीता दिया।
फिलहाल अनिता सिन्हा एक बार फिर से जिला परिषद चुनाव के लिए मैदान में आ रही है। उनका कहना है कि महिलाएं अब स्वाबलंबी हो चुकी है। वह सिर्फ घर का काम ही नहीं, बल्कि राजनीति का ककहरा भी सीख चुकी है।
अनिता सिन्हा की प्रतिष्ठा इस बार दांव पर दिख रही है। उनके सामने कई दिग्गजों की पत्नी भी चुनाव मैदान में उनको टक्कर दे सकतीं हैं।
ऐसे में उनकी राह आसान नजर नहीं आ रहीं है। लेकिन वह अपने पति की छवि के सहारे अपनी सीट बचा लेने को आश्वस्त दिख रही हैं।
हालांकि, चंडी को नगर पंचायत का दर्जा मिलने के बाद चंडी पंचायत परिसीमन की भेंट चढ़ चुकी है।इस पंचायत के सबसे बड़े गांव गुंजरचक सहित कोरुत तथा अन्य को तुलसीगढ़ में विलय कर दिया गया है।
ऐसे में चंडी पंचायत से भी चुनाव लड़ने वाले कई उम्मीदवार अब तुलसीगढ़ पंचायत से किस्मत आजमाएंगे। ऐसे में भूषण मुखिया की मानें तो वह परिसीमन से डरे नहीं है, बल्कि वह इसे सुखद संयोग भी मानते हैं।
उनका मानना है कि उनका वोट बैंक दोनों ओर है। ऐसे में तुलसीगढ़ पंचायत से उनकी जीत की राह आसान हो जाएगी। उन्हें समाज के हर तबके का समर्थन मिल रहा है और पहले भी मिलता रहा है।
कोरूत और गुंजरचक तो उनके पड़ोसी गांव और आते जाते में ही है। ऐसे में दोनों गांवों के जनता से उनका पुराना नाता रहा है।
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