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अब खुद बेटा निशांत को लांच करने की कसमसाहट में उलझे नीतीश कुमार !

Now Nitish Kumar himself is confused about launching his son Nishant
Now Nitish Kumar himself is confused about launching his son Nishant

नालंदा दर्पण डेस्क। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले अपने परिवारवाद के विरोध में मुखर रहने वाले जदयू के स्वंयभू नेता एवं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब खुद अपने बेटे निशांत कुमार को राजनीति में लांच करने की कसमसाहट में उलझे हुए नजर आ रहे हैं। पहले राजद नेता लालू प्रसाद यादव के परिवारवाद पर निशाना साधने वाले नीतीश कुमार भी अब परिवारवाद के ही धागों में उलझते दिख रहे हैं। अब उनका बेटा निशांत कुमार राजनीति में कदम रखने की दिशा में बढ़ रहा है।

इसकी शुरुआत सीएम हाउस में आयोजित होली मिलन समारोह से हुई है। इस समारोह में जदयू के बड़े नेता और पार्टी कार्यकर्ताओं की भीड़ देखी गई। जहां सीएम के बेटे निशांत कुमार ने पहली बार सार्वजनिक रूप से पार्टी नेताओं से मुलाकात की और होली का उत्सव मनाया।

इसी दौरान पटना स्थित जदयू कार्यालय के बाहर पोस्टर्स लगने लगे। जिनमें ‘बिहार की जनता करे पुकार, निशांत का राजनीति में है स्वागत’ जैसे संदेश दिए गए। एक अन्य पोस्टर में पार्टी में शामिल होने का आग्रह किया गया और ‘जदयू के लोग करे पुकार, पार्टी में शामिल होइए निशांत कुमार’ लिखा था।

हालांकि, निशांत कुमार ने अब तक राजनीति में सक्रिय होने का कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। लेकिन इन पोस्टरों के जरिए उनके राजनीति में आने की दिशा स्पष्ट हो गई है। पिछले कुछ महीनों से यह चर्चा जोरों पर है कि निशांत कुमार जदयू में शामिल हो सकते हैं और पार्टी की सियासी दिशा में अपनी भूमिका निभा सकते हैं।

इस बीच निशांत खुद भी कह चुके हैं कि वे अपने पिता नीतीश कुमार को फिर से मुख्यमंत्री पद पर देखना चाहते हैं और उन्होंने कई बार एनडीए से नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाने की अपील की है।

पार्टी के कुछ नेता यह चाहते हैं कि निशांत राजनीति में कदम रखें। ताकि नीतीश के नेतृत्व में बने हुए राजनीतिक समीकरण को बनाए रखा जा सके। इसके अलावा भाजपा भी यह चाहती है कि नीतीश के बाद उनके कुर्मी समुदाय के वोट बैंक में बदलाव आए। हालांकि यह बात अब साफ हो चुकी है कि राजनीति में परिवारवाद का चलन खत्म हो चुका है। चाहे भाजपा हो या जदयू।  हर पार्टी में नेताओं के बेटे-बेटी राजनीति में कदम रखते हैं।

बीते कुछ दशकों में बिहार के कई बड़े नेताओं के बेटों ने राजनीति में कदम रखा है। इनमें लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव, जगन्नाथ मिश्रा के बेटे नीतीश मिश्रा, भागवत झा के बेटे कीर्ति झा, जीतन राम मांझी के बेटे संतोष सुमन, सत्येंद्र नारायण सिंहा के बेटे निखिल कुमार, कर्पूरी ठाकुर के बेटे रामनाथ ठाकुर और रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान, शकुनी चौधरी के पुत्र सम्राट चौधरी आदि शामिल हैं।

इन सबकी पृष्ठभूमि परिवारवाद से जुड़ी हुई है और यही स्थिति जदयू और भाजपा में भी देखने को मिलती है। जो यह साबित करता है कि बिहार में परिवारवाद और उनके स्वजातिवाद का मिलाजुला असर बिहार के राजनीतिक ढांचे को प्रभावित करता रहा है। अबर शायद यही कारण है कि नीतीश कुमार को अब अपने बेटे निशांत को राजनीति में उतारने की जरूरत महसूस हो रही है। क्योंकि जदयू में उनके ढलान के साथ कोई विकल्प नहीं रह गया है।

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