नालंदा दर्पण डेस्क / मुकेश भारतीय। बिहार राज्य के नालंदा जिले अवस्थित राजगीर की वैभरगिरी पहाड़ी की तलहटी में अवस्थित सोन भंडार गुफा में भी लाखों टन सोना समेत अन्य कीमती धातुओं के दफन होने की संभावना व्यक्त की जाती रही है। लेकिन अभी तक इसके ऐतिहासिक और वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिले हैं।
किंवदंतियों के मुताबिक यहाँ सोने का अकूत भंडार है। वह भी इतना सोना कि भारत सोने के मामले में दुनिया में नंबर वन बन सकता है ! लेकिन इस गुफा में अंदर जाने के रास्ते का कोई सुराग अब तक नहीं लग पाया है और न ही किसी ने कोई प्रयास ही किया है।
किंवदंतियों के मुताबिक, गुफाओं की असाधारण बनावट ही लाखों टन सोने के खजाने की सुरक्षा करती है। इन गुफाओं में छिपे खजाने तक जाने का रास्ता एक बड़े प्राचीन पत्थर के पीछे से होकर जाता है।
कुछ का मानना है कि खजाने तक पहुंचने का रास्ता वैभरगिरी पर्वत सागर से होकर सप्तपर्णी गुफाओं तक जाता है, जो सोन भंडार गुफा के दूसरी तरफ तक पहुंचता है।
कुछ लोगों का मानना है कि यह खजाना पूर्व मगध सम्राट जरासंध का है तो कुछ का मानना है कि यह खजाना मौर्य शासक बिम्बिसार का था।
कहतें हैं कि हर्यक वंश के संस्थापक बिम्बिसार को सोने चांदी से बेहद लगाव था। इसके लिए वह सोना और उसके आभूषणों को इकठ्ठा करते रहते
राजगीर सोन भंडार गुफा में भी हर्यंक वंश का खजाना छिपाकर रखा गया है। मुगल आक्रांताओं के आलावे अंग्रेजों ने इसके भीतर जाने की कई बार नाकाम कोशिश की थी। जिसका निर्माण हर्यक वंश के संस्थापक बिम्बिसार की पत्नी ने कराया था।
बताते हैं कि हर्यक वंश के संस्थापक बिम्बिसार को सोने चांदी से बेहद लगाव था। इसके लिए वे सोना और उसके बने आभूषणों को इकठ्ठा करते रहते थे। उनकी कई रानियां थीं, जिनमें एक रानी बिम्बिसार के पसंद का पूरा ध्यान रखती थीं।
जब अजातशत्रु ने अपने पिता को बंदी बना लिया और कारागार में डाल दिया, तब बिम्बिसार की पत्नी ने राजगीर में यह यह गुफा बनवाया और इसमें राजा द्वारा एकत्रित सारे खजाने छुपा दिए।
कहा जाता है कि यह कमरा खजाने की रक्षा करने वाले सैनिकों के लिए बनाया गया था। इसी कमरे के दूसरी ओर खजाने के कमरे होने की बात कही जाती है।
किंवदंतियों की मानें तो मौर्य शासक के समय बनी इस गुफा के दरवाजे पर स्थित चट्टान में शंख लिपि में कुछ लिखा गया।
स्थानीय मान्यता है कि यही अंकित अक्षर इस खजाने के कमरे को खोलने का कुंजी है। जो कोई इस लिपि को पढ़ लेगा, वह सोन भंडार को खोल सकता है।
हालांकि राजगीर में मानव निर्मित अन्य कई प्राचीन गुफाएं हैं। जिनमें मौर्यकालीन कलाकृतियों के आलावे गुप्त राजवंश की भाषा-चिह्नों के शिलालेख मिले हैं। इन गुफाओं में 6 जैन धर्म तीर्थंकरों की मूर्तियां भी चट्टान में उकेरी गई हैं।
इससे स्पष्ट होता है कि यहां पर जैन धर्म के अनुयायी भी रहे हैं। इन गुफाओं के बाहर भगवान विष्णु की प्रतिमा और जैन कलाकृतियां मिलने से इनका संबंध हिंदू व जैन धर्मों से जोड़ा गया है।
लेकिन इतिहासकारों के अनुसार कि हर्यक वंश के संस्थापक व मगध के सम्राट बिम्बिसार ईसा पूर्व 543 में 15 साल की उम्र में गद्दी पर बैठा था। उसी ने राजगृह का निर्माण कराया, जो बाद में राजगीर के नाम से जाना जाने लगा।
बिम्बिसार ने अपने अकूत सोने को छिपाने के लिए विभारगिरि पर्वत की तलहटी में एक जुड़वां गुफा बनवाया। जिसे पुत्र अजातशत्रु ने ही बंदी बना लिया और खुद मगध का सम्राट बन गया। अजातशत्रु द्वारा सत्ता के लिए अपने पिता बिम्बिसार की हत्या करने की बात भी बताई जाती है।
स्थानीय किंवदंती है कि बिम्बिसार की मौत के बाद खजाने का रहस्य आज तक कोई नहीं सुलझा सका है। इस गुफा में रखे खजाने व गुफा के गुप्त दरवाजे तक पहुंचने का राज केवल बिम्बिसार और उसकी रानी ही जानते थे।
वायु पुराण के अनुसार हर्यक वंश के शासन से करीब ढाई हजार साल पहले मगध पर शिव भक्त जरासंध के पिता वृहदरथ का शासन था। वृहदरथ के बाद जरासंध सम्राट बना।
जरासंध ने चक्रवर्ती सम्राट बनने का लक्ष्य लेकर वह 100 राज्यों को पराजित करने निकल पड़ा। जरासंध ने 80 से अधिक राजाओं को पराजित भी कर उनकी संपत्ति पर कब्जा कर लिया।
क्योंकि इसी बीच पांडव पुत्र भीम की 13 दिनों तक चली युद्ध में वह मारा गया और उनकी मौत के साथ गुफा में रखे उसके खजाने का राज भी दफन हो गया।
किंवदंती यह भी है कि अंग्रेजों ने अपने शासनकाल में तोप के गोलों से विस्फोट कर गुफा के भीतर जाने की कोशिश की गई, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। समय-समय पर और भी कई कोशिशें हुईं, लेकिन गुफा की सच्चाई आज तक रहस्य ही रही है।
बहरहाल, आज इस सोन भंडार को देखने व जानने के लिए पूरी दुनिया के पर्यटक आते हैं, लेकिन सभी अनसुलझी रहस्मयी कहानी सुन आश्चर्यचकित हो मन में एक असहज सवाल के साथ वापस लौटते हैं कि गुफा की दीवार पर लिखे शिलालेख पर उकेरे राज कब प्रकट होंगे?
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