“एक तरफ राजगीर शहर के बीचोबीच सरस्वती भवन में सत्ता रुढ़ एनडीए गठबंधन की चुनावी बैठक चल रही थी तो दूसरी तरफ राजगीर नगर पंचायत के वार्ड पार्षद पानी नही तो वोट नही के नारे अपने ही नगर पंचायत कार्यालय में लगा रहे थे….”
राजगीर (नालंदा दर्पण)। नांलदा जिले के राजगीर नगर क्षेत्र के 19 वार्डो में जलसंकट किसी से छुपा नही है, लेकिन कल तक आम जनता प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करती थी।
लेकिन आज तो उपमुख्य पार्षद पिंकी देवी के नेतृत्व में वार्ड पार्षदो ने ही पानी नही तो वोट नही के नारे लगाने शुरू कर दिये। सभी वार्ड पार्षद हाथों में तख्ती लेकर जमकर भड़ास निकाली।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले के राजगीर जैसे अंतराष्ट्रीय स्थल पर पानी के लिए आवाज़ उठाना कुछ तो कहती है। वार्ड 1 के वार्ड पार्षद पंकज कुमार यादव ने तो अपने फेसबुक पेज पर लिख दिया वोट बहिष्कार।
चुनावी मौसम में लोग एक दूसरे पर उंगलिया तो उठाते ही है, लेकिन जब अपने ही नगर पंचायत बोर्ड पर अंगुली उठाने लगे तो माजरा कुछ तो राजनीति से जुड़ा हुआ है।
राजगीर नगर पंचायत कार्यालय में जलापूर्ति की व्यवस्था लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग द्वारा 2017 में हस्तांतरित की गई ।
तब नियमों की अनदेखी कर अयोग्य लोगो, बिना बहाली निकाले, तकनीक योग्यता के बगैर सभी पदों पर बहाल कर दिये गए। ऐसे बहुत सारे लोग आज वेतन पा रहे है जो एक भी दिन कार्यालय नही जाते।
महत्वपूर्ण सवाल यह है कि जब शहरी क्षेत्र में पानी आपूर्ति नही है तो पिछले दो वर्षों से इनका वेतन भुगतान क्यों हो रहा है।
नगर पंचायत द्वारा हर साल पानी का टैंकर खरीद कर मोटा माल की निकासी हो रही है तो फिर राजगीर में जलसंकट के लिये जिम्मेदार कौन है?
विकास के नाम पर राजगीर के मठ-मन्दिरों में नगर पंचायत कार्यालय द्वारा टाइल्स और मार्बल लगाए जा रहे है, वह भी विभागीय कार्य द्वारा बिना किसी टेंडर के।
प्रश्न यह है कि यदि शहर के गली मुहल्लों में पानी का इतना ही संकट है तो मन्दिरो में टाइल्स ,कार्यालय में एयर कंडीशनर और वीआईपी कुर्सियों की जगह पानी की भी व्यवस्था युद्ध स्तर पर हो सकती थी।
बहरहाल यह जांच का विषय है कि पिछले कई वर्षों से पानी आपूर्ति के मद में खर्च की गई राशि का क्या वाकई सदुपयोग हुआ है या नहीं।
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