बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। नालंदा जिले में बकरीद को लेकर बकरों के दाम और मांग में काफी बढ़ गई है। बकरीद में कुछ दिन ही बचे हैं। जैसे-जैसे बकरीद के दिन नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे बकरी-बकरों के दामों में तेजी देखने को मिल रहे हैं।
इसके व्यापारी गांवों में घूम-घूमकर बकरीद को लेकर बकरा-बकरी खरीद रहे हैं और पशुपालकों को मनमाने दाम देने के लिए तैयार हो रहे हैं। आम दिनों से 70 फीसदी अधिक तक बकरा-बकरी के दाम बढ़ गये हैं। कुर्बानी के मनपसंद बकरे तो अनमोल हो गये हैं।
यूं तो हाल के वर्षों में वर्षों से बकरी पालन कारोबार तेजी से विकसित हुआ है, लेकिन मांग के हिसाब से उत्पाद प्रतिशत अभी भी काफी कम हैं। हालांकि हरेक वर्ष बकरा-बकरी उत्पादन और खपत दोनों में वृद्धि देखने को मिल रही है। लेकिन प्रति वर्ष उत्पादन में तेज वृद्धि हो रही है। इसलिए बकरी-बकरा पालने वाले से अधिक खाने वाले की संख्या में तेजी से बढ़ रही है।
बकरीद पर्व में एक खास धर्म के लोगों के लिए बकरी-बकरों का खास महत्व रखता है, जिसका असर पशु मंडी में दिखने लगा है। गत छह वर्षों में तेजी से बकरी पालन कारोबार के रूप लिया है। यहां अलग-अलग क्षेत्रों में करीब सवा सौ व्यवसायिक स्तर पर बकरी पालन हो रहा है।
पशु कारोबारी बताते हैं कि आम दिनों में 350 से 550 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकने वाले बकरों के दाम वर्तमान में 500 से 750 रुपये प्रति किलो तक हो जाता है। पिछले वर्ष बकरीद के समय 300 से 500 रुपये प्रति किलो आम बकरी- बकरे बिक रहे थे, जिसके हिसाब से इस वर्ष 70 प्रतिशत बकरी-बकरों के दाम में उछाल देखने को मिल रहे हैं।
वहीं कुर्बानी के प्रति बकरे 10 हजार से 15 हजार में मिल रहे थे, जिसकी कीमत अभी 20 से 25 हजार रुपये प्रति बकरे तक हो गयी है। रोगमुक्त, छोटे कान के खूबसुरत बकरा कुर्बानी के लिए काफी पसंद किये जाते हैं, जिसकी बोली लगाकर दाम तय होता है।
यहां के मंडी में बरबरी, अजमेरी, ब्लैक बंगाल, गुजरी, दिशा जैसे नस्ल के बकरी काफी पसंद किये जा रहे हैं। कुर्बानी के लिए औसतन 35 से 100 किलो के बकरे की अधिक मांग होती है, लेकिन इस बार 25 से 150 किलो के बकरों की मांग अधिक देखने को मिल रही है।
पशु कारोबारी बताते हैं कि बकरी-बकरा की कीमत में वृद्धि होने के पीछे कई कारण हैं। बकरीद व अन्य पर्व त्योहारों में कुछ समय के लिए उसके कीमत में तेजी देखने को मिलती है, लेकिन हाल के वर्षों से लगातार मीट की दुकान खुल रही हैं। क्योंकि बढती जनसंख्या में अधिकांश मीट खाने वाले तैयार हो रहे हैं।
जिला मुख्यालय से लेकर प्रखंड स्तर तक मीट के अलग-अलग व्यंजन की दुकान खुल रही हैं। जिससे बकरे -पाठे की मांग में वृद्धि हो रही है। मांग की पूर्ति लोकल बकरी पालन से नहीं हो रहा है, बल्कि यहां बाहर से भी बकरी-बकरों की आपूर्ति खूब की जा रही है।
बकरी-बकरों की कीमत बढने का दूसरा सबसे बड़ा कारण उसके चारा और दवाओं की कीमत में लगातार वृद्धि होनी है। मसूर और गेहूं की सूखी पशु चारा के दाम प्रति वर्ष प्रति क्विंटल 100 से 200 रुपये तक महंगे हो रहे हैं। रबी फसल के दौरान बारिश नहीं होने पशु चारा कम हुई हैं, जिसका असर उसकी कीमत पर दिख रहा है।
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