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महाभारत का से जुड़ा जरासंध अखाड़ा को लेकर पर्यटक चिंतित

राजगीर (नालंदा दर्पण)। धरती की मनोरम गोद में मगध के शक्तिशाली सम्राट जरासंध और पांडव वीर भीम के बीच 18 दिनों तक जहां अथाह शक्ति का मलयुद्ध चला। भगवान श्रीकृष्ण की उपस्थिति में रचित यह महाभारत की अमर कथा आज भी राजगीर के हृदय में धड़क रही है। जरासंध अखाड़ा के नाम से शुमार वह ऐतिहासिक धरोहर की गौरवगाथा से पर्यटकों को सीधा जोड़ती है,  वह आज अपनी ही जड़ों से कटने की कगार पर है।Rajgir Jarasandha Arena 1

वन विभाग के सख्त वाहन प्रतिबंध ने जरासंध अखाड़ा को पर्यटकों की पहुंच से दूर कर दिया है और राजगीर जैसी विरासत नगरी का पर्यटन चक्र धीमा पड़ गया है। क्या यह महज प्रशासनिक लापरवाही है या इतिहास संरक्षण की उपेक्षा? आइए  इस धरोहर की गहराइयों में उतरें, जहां महाभारत की धुन अभी भी गूंजती है।Rajgir Jarasandha Arena 2

प्राचीन मगध साम्राज्य की राजधानी राजगीर वह भूमि है, जहां इतिहास और पौराणिक कथाएं आपस में बुनी हुई हैं। जरासंध अखाड़ा इसी मगध की शान का प्रतीक है। महाभारत के अनुसार जरासंध मगध का क्रूर शासक था, जिसने 99 राजाओं को बंदी बनाकर यज्ञ की आहुति के लिए कैद कर लिया था। वहीं यदुवंश के संरक्षक भगवान श्रीकृष्ण ने जरासंध की इस अत्याचारपूर्ण महत्वाकांक्षा को समाप्त करने के लिए एक चतुर योजना रची।Rajgir Jarasandha Arena 4

श्रीकृष्ण ने कुंतीपुत्र पांडवों के बलशाली योद्धा भीम द्वारा चुनौती दिलवाई। अखाड़े में उतरते ही दोनों वीरों के बीच मल्लयुद्ध की शुरुआत हुई। 18 दिनों तक धरती कांपती रही। हर तरफ पसीना और धूल का बादल छा गया। अंततः भीम ने कृष्ण के संकेत पर जरासंध के शरीर को दो भागों में फाड़ दिया, जैसे कि उसके जन्म की कथा उलट दी हो।

दरअसल जरासंध का जन्म ही दो भागों जारा नामक राक्षसी द्वारा संयोजित से हुआ था। यही उसकी अमरता का रहस्य था। यह घटना न केवल महाभारत की राजनीतिक साजिशों का प्रतीक है, बल्कि प्राचीन भारत की मल्लविद्या (कुश्ती) की परंपरा को भी जीवंत करती है।

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पुरातत्वविदों के अनुसार अखाड़ा का वर्तमान गड्ढा-आकार का स्थल 2500 वर्ष पुराना है। यहां मगध की सेना मार्शल आर्ट्स का अभ्यास करती थी। आसपास के अवशेष पत्थर की संरचनाएं और गुफाएं बताते हैं कि यह स्थान युद्धकला का केंद्र था, जो हार्यंक वंश के राजाओं जैसे बिंबिसार के काल से जुड़ा हुआ है।

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पर्यटन की दृष्टि से जरासंध अखाड़ा राजगीर को एक अनोखा आकर्षण प्रदान करता है। यूनेस्को की अस्थायी विश्व धरोहर सूची में शामिल राजगीर बौद्ध और जैन तीर्थों के लिए जाना जाता है। विषुवत चक्र, सप्तपर्णी गुफाएं और गृद्धकूट पर्वत जैसे स्थल यहां आध्यात्मिक पर्यटकों को बुलाते हैं। लेकिन जरासंध अखाड़ा इतिहास प्रेमियों और महाभारत उत्साहीयों के लिए विशेष है।

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यह सोन भंडार गुफा से मात्र 2 किलोमीटर दूर है, जहां पर्यटक प्राचीन शिलालेखों और रहस्यमयी सुरंगों के माध्यम से मगध की समृद्धि को महसूस करते हैं। हर वर्ष हजारों सैलानी देश-विदेश से राजगीर पहुंचते हैं। खासकर दीपावली और महाभारत उत्सवों के दौरान।

जरासंध अखाड़ा न केवल फोटोग्राफी और ट्रेकिंग का केंद्र है, बल्कि स्थानीय कथावाचकों के माध्यम से जीवंत इतिहास सुनाने का माध्यम भी। बिहार पर्यटन विभाग के अनुसार राजगीर में पर्यटन से जुड़े रोजगार गाइड, होमस्टे और हस्तशिल्प लाखों लोगों की आजीविका का आधार हैं। लेकिन अब यह धरोहर पर्यटकों की नजरों से ओझल हो रही है।

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सोन भंडार तक तो वाहन पहुंच जाते हैं, लेकिन आगे का 2 किमी पैदल मार्ग पहाड़ी और जंगली क्षेत्र है। इस कारण अधिकांश सैलानियों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है। बुजुर्ग, परिवारों और कमजोर स्वास्थ्य वाले पर्यटक तो यहां पहुंच ही नहीं पाते। नतीजा? अखाड़े तक पर्यटकों की पहुंच न्यूनतम रह गया है और राजगीर का पर्यटन ग्राफ नीचे लुढ़क रहा है।

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बताया जाता है कि समस्या की जड़ पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग का वह सख्ती भरा आदेश है, जो दोपहिया और चारपहिया वाहनों के प्रवेश पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता है। विभाग का तर्क है कि नेचर सफारी के वाहनों की सुरक्षा के लिए यह जरूरी है। लेकिन हकीकत यह है कि पिछले दो वर्षों से नेचर सफारी के वाहन जू सफारी परिसर के अंदरूनी मार्ग से होकर अखाड़े के दक्षिणी छोर तक जा रहे हैं। फिर भी सोन भंडार के बैरियर पर तैनात वनकर्मी पर्यटकों के निजी वाहनों को रोक रहे हैं।

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हालांकि पूर्व जिलाधिकारी शशांक शुभंकर ने तो स्थिति का जायजा लेते हुए वाहनों की अनुमति बहाल करने का स्पष्ट निर्देश दिया था, लेकिन विभाग ने इसे फाइलों में दफना दिया। स्थानीय लोग और पर्यटक इसे धरोहर के साथ खिलवाड़ मानते हैं। वे कहते हैं कि यह महाभारत की भूमि है। यहां प्रतिबंध हटाकर इतिहास को जीवित रख सकते हैं। मंत्रियों और जिलाधिकारी के निर्देशों की अवहेलना हो रही है।

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विरासत शहर राजगीर के बुद्धिजीवी और पर्यटन हितैषी लगातार जिला प्रशासन और मंत्रालय से गुहार लगा रहे हैं। यदि यह प्रतिबंध न हटा तो महाभारत की साक्षात साक्षी दुनिया का एकमात्र जरासंध अखाड़ा शायद हमेशा के लिए विस्मृति के गर्त में चला जाएगा।

बिहार राज्य पर्यटन विभाग ने हाल ही में राजगीर को इको-टूरिज्म सर्किट के तहत विकसित करने की योजना बनाई है, लेकिन बिना पहुंच के यह कैसे संभव है? इतिहास, पर्यटन और संरक्षण का यह त्रिकोण टूट रहा है और मगध की धरती उदास हो रही है। सरकार और प्रशासन को इस दिशा में तत्काल कदम उठाने की जरुरत है।

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