बिहारशरीफ मॉडल सदर अस्पताल: डॉक्टर का अभाव, अल्ट्रासाउंड सुविधा बंद

बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। जरा कल्पना कीजिए कि एक गर्भवती महिला जो सपनों में अपने होने वाले बच्चे की सेहत की जांच कराने अस्पताल पहुंचती है, लेकिन वहां उसे बताया जाता है कि अल्ट्रासाउंड मशीन तो है, लेकिन डॉक्टर नहीं है! यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं, बल्कि बिहारशरीफ मॉडल सदर अस्पताल की कड़वी हकीकत है।
पिछले दो महीनों से यहां अल्ट्रासाउंड सुविधा ठप पड़ी है और हजारों मरीजों की जिंदगी में यह कमी एक बड़ा संकट बन गई है। गरीबों के लिए यह अस्पताल उम्मीद की किरण था, लेकिन अब यह मजबूरी का केंद्र बन चुका है, जहां मरीजों को निजी क्लिनिकों की महंगी सेवाओं का सहारा लेना पड़ रहा है।
यह सब उस दिन से शुरू हुआ, जब अस्पताल के अल्ट्रासाउंड सेंटर के जिम्मेदार डॉक्टर तारिक इमरान ने अपना इस्तीफा सौंप दिया। डॉ. इमरान आगे की पढ़ाई करना चाहते थे। लेकिन सरकारी सेवा की बंधनों में बंधकर यह संभव नहीं हो पा रहा था।
उन्होंने बताया कि पढ़ाई और सेवा को साथ निभाना मुश्किल हो गया था, इसलिए इस्तीफा देना पड़ा। अस्पताल प्रबंधन ने तुरंत इसकी सूचना वरीय अधिकारियों को दी, लेकिन दो महीने बीत जाने के बावजूद कोई नया डॉक्टर नहीं आया। नतीजा? अल्ट्रासाउंड सेंटर बंद, और मरीजों की लंबी कतारें अब बाहर की ओर मुड़ गईं।
मरीजों की व्यथा: गरीबों पर सबसे ज्यादा मार
अस्पताल में रोजाना दर्जनों मरीज अल्ट्रासाउंड जांच के लिए पहुंचते हैं। इनमें ज्यादातर गर्भवती महिलाएं, पेट दर्द से पीड़ित बुजुर्ग और बच्चे शामिल होते हैं। लेकिन अब उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ता है।
एक पीड़ित ने बताया कि उनकी पत्नी गर्भवती है और डॉक्टर ने अल्ट्रासाउंड कराने को कहा था। यहां सुविधा बंद मिली तो मजबूरन प्राइवेट सेंटर गए, जहां 1200 रुपये लग गए। हम जैसे गरीबों के लिए यह बोझ बहुत भारी है।
सप्ताह में सिर्फ दो दिन सोमवार और बुधवार यह सुविधा उपलब्ध होती थी, लेकिन तब भी यह मरीजों के लिए वरदान साबित हो रही थी। गर्भवती महिलाओं को बच्चे की स्थिति जानने में मदद मिलती थी, तो पेट संबंधी बीमारियों वाले मरीजों को सही निदान। अब विकल्प क्या? या तो विम्स पावापुरी जैसे दूर के सरकारी अस्पताल, जहां जाना भी एक चुनौती है या फिर निजी सेंटर, जहां जांच की फीस आसमान छू रही है। निर्धन वर्ग के लिए यह दोहरी मार है स्वास्थ्य का संकट और आर्थिक बोझ।
सरकारी तंत्र की लापरवाही: सुविधा बंद, लेकिन समाधान कब?
मॉडल सदर अस्पताल को ‘मॉडल’ का दर्जा इसलिए दिया गया था। ताकि यह नालंदा जिले के लोगों के लिए एक आदर्श स्वास्थ्य केंद्र बने। लेकिन अल्ट्रासाउंड जैसी बुनियादी सुविधा का बंद होना सरकारी तंत्र की उदासीनता को उजागर करता है।
अस्पताल के सिविल सर्जन ने स्वीकार किया कि हमने कई बार उच्चाधिकारियों को लिखा है, लेकिन डॉक्टर की कमी पूरे राज्य की समस्या है। जल्द ही समाधान की उम्मीद है। लेकिन ‘जल्द’ शब्द पिछले दो महीनों से मरीजों के लिए सिर्फ एक झूठा आश्वासन बनकर रह गया है।
बता दें कि नालंदा जिले में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति पहले से ही चिंताजनक है। सदर अस्पताल पर लाखों लोगों की निर्भरता है, लेकिन स्टाफ की कमी, उपकरणों की अनुपलब्धता और प्रशासनिक ढिलाई जैसी समस्याएं इसे कमजोर कर रही हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर समय रहते डॉक्टरों की भर्ती और ट्रेनिंग पर ध्यान दिया जाए, तो ऐसी स्थितियां टाली जा सकती हैं। लेकिन फिलहाल, मरीजों की पीड़ा जारी है।
आगे की राह: उम्मीद की किरण या निराशा?
इस समस्या का समाधान तभी संभव है जब स्वास्थ्य विभाग सक्रिय हो। स्थानीय विधायक और सामाजिक कार्यकर्ता इस मुद्दे को उठा रहे हैं, लेकिन ठोस कार्रवाई का इंतजार है। मरीजों की मांग है कि अल्ट्रासाउंड सेंटर को जल्द चालू किया जाए और सप्ताह में ज्यादा दिन जांच की सुविधा दी जाए।
क्योंकि बिहारशरीफ मॉडल सदर अस्पताल की यह कहानी सिर्फ एक सुविधा के बंद होने की नहीं, बल्कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र की कमजोरियों की है। अगर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया, तो गरीबों की उम्मीदें और टूटेंगी। नालंदा दर्पण इस मुद्दे पर नजर रखे हुए है और उम्मीद करता है कि जल्द ही मरीजों को राहत मिलेगी। यदि आपके पास कोई सुझाव या अनुभव है तो हमें बताएं। स्वास्थ्य सबका अधिकार है और इसे सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी।









