‘Lays जैसे चिप्स के पैकेट में दरअसल सूअर की चर्बी है’ इस बात को लेकर कुछ अरसे पहले पाकिस्तान में काफी हंगामा हुआ था, जिस पर ढेरों आरोप और सफाइयां दस्तावेजों सहित मौजूद हैं…
नालंदा दर्पण डेस्क। हैरत की बात यह है कि इस पदार्थ को कई देशों में प्रतिबंधित किया गया है। किन्तु अपने देश में धड़ल्ले से उपयोग हो रहा।
होता यह है कि अधिकतर (ठंडे) पश्चिमी देशों में सूअर का मांस बहुत पसंद किया जाता है। वहाँ तो बाकायदा इसके लिए हजारों की तादाद में सूअर फार्म हैं। सूअर ही ऐसा प्राणी है, जिसमें सभी जानवरों से अधिक चर्बी होती है।
दिक्कत यह है कि चर्बी से बचते हैं लोग। तो फिर इस बेकार चर्बी का क्या किया जाए? पहले तो इसे जला दिया जाता था, लेकिन फिर दिमाग दौड़ा कर इसका उपयोग साबुन वगैरह में किया गया और यह हिट रहा। फिर तो इसका व्यापारिक जाल बन गया और तरह तरह के उपयोग होने लगे। नाम दिया गया ‘पिग फैट’
1857 का वर्ष तो याद होगा आपको? उस समयकाल में बंदूकों की गोलियां पश्चिमी देशों से भारतीय उपमहाद्वीप में समुद्री राह से भेजी जाती थीं और उस महीनों लम्बे सफ़र में समुद्री आबोहवा से गोलियां खराब हो जाती थीं।
तब उन पर सूअर चर्बी की परत चढ़ा कर भेजा जाने लगा। लेकिन गोलियां भरने के पहले उस परत को दांतों से काट कर अलग किया जाना होता था। यह तथ्य सामने आते ही जो क्रोध फैला उसकी परिणिति 1857 की क्रांति में हुई बताई जाती है।
आखिर उनका 75 प्रतिशत कमाई मारी जा रही थी इन बातों से। हार कर एक राह निकाली गई। अब गुप्त संकेतो वाली भाषा का उपयोग करने की सोची गई। जिसे केवल संबंधित विभाग ही जानें कि यह क्या है! आम उपभोक्ता अनजान रह सब हजम करता रहे। तब जनम हुआ E कोड का।
तब से यह E631 पदार्थ कई चीजों में उपयोग किया जाने लगा जिसमे मुख्य हैं टूथपेस्ट, शेविंग क्रीम, च्युंग गम, चॉकलेट, मिठाई, बिस्कुट, कोर्न फ्लैक्स, टॉफी, डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ आदि। सूची में और भी नाम हो सकते हैं।
हाँ, कुछ मल्टी-विटामिन की गोलियों में भी यह पदार्थ होता है। शिशुयों, किशोरों सहित अस्थमा और गठिया के रोगियों को इस E631 पदार्थ मिश्रित सामग्री को उपयोग नहीं करने की सलाह है। लेकिन कम्पनियाँ कहती हैं कि इसकी कम मात्रा होने से कुछ नहीं होता।