नालंदा दर्पण डेस्क। बिहार में निकाय चुनाव की घोषणा अप्रैल में होने की संभावना है। अप्रैल-मई महीने में चुनाव की सुगबुगाहट शुरू होंगी। निकाय चुनाव को लेकर चंडी में भी हलचल है।
ऐसे में लोगों का कहना है कि चंडी नगर पंचायत में जितनी गलियां नहीं है, उससे ज्यादा अध्यक्ष पद के लिए चुनाव मैदान में उतरने वालों की संख्या सोशल मीडिया से भरी पड़ीं है। जिन्हें समाजसेवी का ‘स’ नहीं पता, वो भी उम्मीदवार घोषित किए घूम रहे हैं। जिन्होंने कभी अपने पड़ोसी तक कि मदद नहीं की है वे भी बड़का समाजसेवी होने का दंभ भर रहे हैं।
चंडी नगर पंचायत चुनाव के लिए अभी आरक्षण रोस्टर लागू नहीं हुआ है। अध्यक्ष पद के लिए भी आरक्षण रोस्टर पर संशय बना हुआ है। सामान्य वर्ग से आने वाले उम्मीदवारों की संख्या बहुत ज्यादा दिख रही है। वहीं एक वर्तमान मुखिया के भी चुनाव मैदान में आने की चर्चा है।
चंडी नगर पंचायत चुनाव भले ही मई में होंगे लेकिन पिछले दशहरा-दीपावली से नगर पंचायत चुनाव लड़ने के इच्छुक उम्मीदवार सोशल मीडिया पर छाये हुए हैं। लोगों को नववर्ष, 26 जनवरी, सरस्वती पूजा और आनेवाली होली की शुभकामनाएं दे रहे हैं।
इतना ही नहीं अपने आप को सबसे बड़ा स्वघोषित ‘समाजसेवी’ का तमगा तक दें रहें हैं।’हम हैं बड़े समाजसेवी’ की होड़ मची हुई है। समाजसेवी होने का चोला ओढ़कर चुनाव मैदान में आने का ऐलान कर रहे हैं। वैसे देखा जाएं तो पंचायत चुनाव हो या विधानसभा, लोकसभा का चुनाव छुटभैय्ए नेताओं की बाढ़ आ ही जाती है।
छुटभैय्ए नेता और समाज सेवक इंसानो की यह वह नस्ल है,जो हर गली,नुक्कड,चौराहे पर आपको आसानी से घूमती नजर आ जाएगी। कभी किसी चाय की टपरी पर तो कभी पान की दुकान पर झक्कास सफ़ेद कुर्ते मे खडे हुए नजर आ जाता है। ये शहर मे भी मिलते हैं और गांव में भी पाए जाते हैं। ये हर जगह उपलब्ध होते हैं।
जैसे ही कोई चुनाव नजदीक आता है ,लोगो को कहना शुरु कर देते हैं कि चुनाव लड़ने के जरा भी इच्छुक नहीं है,अब भले ही अंदर से चुनाव लड़ने की इच्छा जोर मार रही हो, ऐसा कहने से लोगो में जिज्ञासा पैदा होती है।
फिर धीरे से,पीछे से अपने चमचों को सोशल मीडिया पर अपनी मुनादी करवाने के लिए तैयार कर लेते हैं कि आप भावी पार्षद है।ऐसे में छुटभैय्ए नेताओं की अपनी बात भी रह जाती है और बेइज्जती भी नही होती। इलाके में उनकी भौकाल तो बन ही जाता है।
कुछ ऐसे भी समाजसेवी है जो पुलिस स्टेशनों,सरकारी दफ्तरों मे अपने आस पास के लोगो का काम करवाते रहते हैं। लोग भले इन से खुश रहें, मगर पीछे से अपना कमीशन लेना वाला ही असली समाजसेवी कहलाता है।
आखिर समाज सेवकी और नेतागिरी भी तो चमकानी है, बिना कमीशन के पैसो के काम कैसे चलेगा भला? अगर काम नहीं भी कर सके तो कोई बात नहीं है, बस बंदर की तरह इधर उधर उछलते- कूदते रहते हैं ताकि लोगो को लगे कि समाजसेवी लोग काम करने की कोशिश मे लगे है।
चंडी नगर पंचायत में चुनाव लड़ने वाले कुछ लोगों पर तुषारापात भी हो रहा है।उनकी इच्छा पर निर्वाचन आयोग ने पानी फेर दिया है। पहले से चुनाव लड़ने का मंसूबा पाल रखें उम्मीदवार अब चुनाव नहीं लड़ पाएंगे।
इसका कारण है कि निकाय चुनाव में पहले से दो बच्चों की नीति लागू है।चाहे वह महिला उम्मीदवार हो या फिर पुरुष जिन्हें दो से अधिक बच्चे हैं ऐसे में वे चुनाव नहीं लड़ सकते हैं।
ऐसे में पहले से चुनाव की तैयारी कर रहें कुछ भावी उम्मीदवार से उनके सिर से अब समाजसेवा का भूत पूरी तरह उतर गया है। ऐसे लोगों में कुछ पंचायत चुनाव में हार चुके उम्मीदवार भी थें। ऐसी भी चर्चा है कि एक पंचायत के वर्तमान मुखिया भी अध्यक्ष पद की दौड़ में हैं। उनका गांव नगर पंचायत के अंतर्गत आता है।
फिलहाल, चंडी नगर पंचायत को लेकर आरक्षण रोस्टर अभी लागू नहीं हुआ है। आशा है वार्डों का गठन और सीमांकन जल्द करा लिया जाएगा। वैसे निर्वाचन आयोग को भेजे गये 2011 के जनगणना के अनुसार चंडी नगर पंचायत में 14,235 मतदाता हैं जिनमें अनुसूचित मतदाताओं की संख्या 3,748 है।
वार्डों का गठन लगभग 1200 की आबादी पर होने को है,ऐसे में लगभग 10-11 वार्ड निर्धारित होंगे। उनमें किन -किन सीटों पर आरक्षण रोस्टर लागू होगा, अध्यक्ष पद किस आरक्षण श्रेणी में जाएगा यह भी निर्धारित होना है और निर्धारित होना है कि चुनाव की घोषणा के बाद कौन और बड़े समाजसेवी मैदान में आएंगे।