
हिलसा (नालंदा दर्पण)। चंडी प्रखंड के सरकारी विद्यालय में शिक्षा की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। प्रखंड के 114 प्राथमिक और मध्य विद्यालयों में पढ़ने वाले करीब 40 से 45 प्रतिशत विद्यार्थी बिना किताबों के ही छमाही परीक्षा देने को मजबूर हैं। सरकार भले ही शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए नई-नई योजनाओं और किताबों की उपलब्धता के दावे करती हो, लेकिन जमीनी हकीकत इन दावों की पोल खोल रही है।
चंडी प्रखंड में कुल 70 प्राथमिक और 44 मध्य विद्यालय संचालित हैं। शिक्षा विभाग के निर्देशानुसार मार्च माह तक कक्षा एक से आठ तक के सभी विद्यार्थियों को मुफ्त किताबें उपलब्ध कराई जानी थीं। ताकि विशेष रूप से गरीब परिवारों के बच्चों को पढ़ाई में किसी तरह की परेशानी न हो। लेकिन वास्तविकता यह है कि मार्च तक केवल 50 से 60 प्रतिशत विद्यार्थियों को ही किताबें मिल पाईं। शेष विद्यार्थी आज भी किताबों के लिए तरस रहे हैं।
मध्य विद्यालय चंडी की स्थिति तो और भी चिंताजनक है। यहां कक्षा छह के लिए 90 सेट, कक्षा सात के लिए 80 सेट और कक्षा आठ के लिए 80 सेट किताबों की मांग की गई थी, लेकिन आज तक एक भी सेट प्राप्त नहीं हुआ है। इसी तरह मध्य विद्यालय एक शिक्षक ने बताया कि जैतीपुर और हनुमानगढ़ से नामांकित 15 विद्यार्थियों को सात महीने बीत जाने के बाद भी एक भी किताब नहीं मिली है।
किताबों की कमी के चलते विद्यार्थी बिना पढ़ाई के ही परीक्षा में बैठने को विवश हैं। शिक्षकों का कहना है कि बिना किताबों के पढ़ाई अधूरी रहती है, जिसका सीधा असर विद्यार्थियों के सीखने की प्रक्रिया और उनके परीक्षा परिणामों पर पड़ रहा है।
मध्य विद्यालय चंडी के एक शिक्षक का कहना है कि बच्चे केवल औपचारिकता के लिए परीक्षा दे रहे हैं। बिना किताबों के पढ़ाई कैसे हो सकती है? यह स्थिति न केवल बच्चों के भविष्य के लिए हानिकारक है, बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता को भी पूरी तरह प्रभावित कर रही है।
इधर प्रभारी बीईओ पुष्पा कुमारी ने स्वीकार किया कि मार्च में केवल 50 से 60 प्रतिशत किताबें ही प्राप्त हुई थीं, जिन्हें विद्यार्थियों में वितरित कर दिया गया। इसके बाद अतिरिक्त 33 प्रतिशत किताबों की मांग की गई थी, लेकिन उसमें से केवल 3 प्रतिशत सेट ही प्राप्त हो सके। बाकी किताबें अब तक उपलब्ध नहीं कराई गई हैं। किताबों की आपूर्ति में देरी के लिए जिला स्तर पर आपूर्तिकर्ताओं की लापरवाही जिम्मेदार है।
सरकार की ओर से शिक्षा सुधार के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, लेकिन किताबों जैसी बुनियादी सुविधा की कमी इन योजनाओं को खोखला साबित कर रही है। शिक्षकों का कहना है कि जब तक बच्चों को समय पर किताबें और अन्य संसाधन उपलब्ध नहीं होंगे, तब तक शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की बातें केवल कागजों तक ही सीमित रहेंगी।
स्थानीय अभिभावकों में भी इस स्थिति को लेकर भारी नाराजगी है। उनका कहना है कि हम गरीब लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में इसलिए पढ़ाते हैं ताकि उन्हें मुफ्त शिक्षा मिले। लेकिन बिना किताबों के पढ़ाई कैसे होगी? सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए।
बहरहाल चंडी प्रखंड के सरकारी विद्यालयों में किताबों की कमी न केवल शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित कर रही है, बल्कि गरीब और वंचित वर्ग के बच्चों के भविष्य को भी खतरे में डाल रही है।
यदि शिक्षा विभाग समय रहते इस समस्या का समाधान नहीं करते तो यह स्थिति और गंभीर हो सकती है। शिक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए किताबों की समय पर आपूर्ति और अन्य संसाधनों की उपलब्धता जरूरी है। अन्यथा सरकार की तमाम योजनाएं और दावे केवल हवा-हवाई साबित होंगे।









