
नालंदा दर्पण डेस्क। नालंदा जिले के लिए फतुहा-इस्लामपुर रेलखंड एक समय में क्षेत्र की जीवनरेखा हुआ करता था। वर्ष 1922 में कोलकाता की मार्टिन एंड कंपनी द्वारा निर्मित यह नैरो गेज रेल लाइन न केवल लोगों और सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाती थी, बल्कि यह स्थानीय संस्कृति, व्यापार और सामाजिक जीवन का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी।

आज जब हम आधुनिक रेलवे की चमक-दमक में खोए हैं, उस दौर की कुछ दुर्लभ तस्वीरें हमें इतिहास के उन पन्नों की याद दिलाती हैं, जब यह छोटी रेल लाइन नालंदा के खेतों और गांवों के बीच छुक-छुक करती हुई गुजरती थी। इस लेख में हम उस ऐतिहासिक रेलवे की कहानी और उसकी दुर्लभ तस्वीरों के महत्व को विस्तार से जानेंगे।

वर्ष 1922 में मार्टिन एंड कंपनी ने 42 किलोमीटर लंबी फतुहा-इस्लामपुर नैरो गेज रेल लाइन का निर्माण शुरू किया था। यह रेल लाइन उस समय के ग्रामीण भारत के लिए एक क्रांतिकारी कदम थी।

इस रेलवे का उद्देश्य नालंदा और आसपास के क्षेत्रों को जोड़ना था, जिससे स्थानीय किसानों, व्यापारियों और आम लोगों को आवागमन में सुविधा हो। इस रेल लाइन ने न केवल दूरी को कम किया, बल्कि सामाजिक और आर्थिक विकास को भी गति दी।

यह रेल लाइन अपनी छोटी-सी ट्रेनों के लिए जानी जाती थी, जिन्हें स्थानीय लोग प्यार से छोटी रेल कहते थे। ये ट्रेनें धीमी गति से चलती थीं, लेकिन इनका हर पड़ाव गांवों के लिए एक उत्सव की तरह होता था। लोग सामान, अनाज और यहाँ तक कि अपनी कहानियाँ भी इन ट्रेनों के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाते थे।


आज से लगभग एक सदी पहले की इन तस्वीरों में नालंदा के उस दौर की झलक मिलती है, जब आधुनिक तकनीक का प्रभाव कम था और जीवन की गति धीमी थी। इन तस्वीरों में मार्टिन लाइट रेलवे की छोटी-सी ट्रेनें, लकड़ी के डिब्बे, और ग्रामीण स्टेशनों की सादगी देखने को मिलती है।

कुछ तस्वीरों में स्थानीय लोग ट्रेन के इंतजार में प्लेटफॉर्म पर बैठे दिखते हैं तो कुछ में खेतों के बीच से गुजरती ट्रेन की छवि इतिहास को जीवंत करती है।

ये तस्वीरें केवल दृश्य नहीं, बल्कि उस समय के सामाजिक-आर्थिक परिवेश को भी दर्शाती हैं। उदाहरण के लिए, एक तस्वीर में दिखता है कि कैसे किसान अपनी फसल को ट्रेन में लाद रहे हैं, जो उस समय के व्यापार और कृषि की निर्भरता को दर्शाता है।
दूसरी तस्वीर में बच्चे ट्रेन को देखकर उत्साह से हाथ हिला रहे हैं, जो उस दौर में रेलवे के प्रति लोगों की जिज्ञासा और उत्साह को दर्शाता है।

दुर्भाग्यवश यह रेल लाइन 1976 में बाढ़ की चपेट में आ गई और 1984 में इसकी सेवाएँ पूरी तरह बंद कर दी गईं। इसके बाद यह रेलखंड समय के साथ उपेक्षित होता गया।

लेकिन हाल के वर्षों में फतुहा-इस्लामपुर रेलखंड को पुनर्जनन की दिशा में कदम उठाए गए हैं। वर्ष 2003 में इस रेल लाइन का ब्रॉड गेज में परिवर्तन शुरू हुआ और अब यह रेलखंड फिर से क्षेत्र की महत्वपूर्ण कड़ी बन चुका है। इसके दोहरीकरण की योजना भी चल रही है, जो इस क्षेत्र में रेलवे के महत्व को और बढ़ाएगी।

फतुहा-इस्लामपुर रेल लाइन नालंदा के लिए केवल एक परिवहन साधन नहीं थी, बल्कि यह क्षेत्र के आर्थिक और सांस्कृतिक विकास का प्रतीक थी। इस रेल लाइन ने नालंदा को बिहार के अन्य हिस्सों और देश से जोड़ा।

आज भी इस रेलखंड का विस्तार और आधुनिकीकरण नालंदा के लिए नए अवसर ला रहा है। हाल ही में इस्लामपुर-जैतीपुर-बेन-नालंदा नई रेल लाइन के सर्वे की खबरें भी सामने आई हैं, जो इस क्षेत्र को बौद्ध सर्किट का हिस्सा बनाकर पर्यटन को बढ़ावा देगी।

मार्टिन लाइट रेलवे की दुर्लभ तस्वीरें हमें उस समय की याद दिलाती हैं, जब रेल की आवाज़ और उसकी सादगी ग्रामीण जीवन का अभिन्न हिस्सा थी। ये तस्वीरें न केवल इतिहास को संजोए रखती हैं, बल्कि हमें यह भी सिखाती हैं कि कैसे छोटे-छोटे प्रयास बड़े बदलाव ला सकते हैं।

फतुहा-इस्लामपुर रेलखंड का आधुनिकीकरण और नए रेल रूट की योजनाएँ इस क्षेत्र के लिए एक उज्ज्वल भविष्य का संकेत देती हैं। नालंदा दर्पण इस ऐतिहासिक धरोहर को सामने लाकर न केवल स्थानीय लोगों को उनकी जड़ों से जोड़ रहा है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी इस गौरवशाली इतिहास से प्रेरणा लेने का अवसर दे रहा है।









