यहां कीचड़ में फंसा लोकतंत्र, रास्ता बना मतदाताओं की असल परीक्षा

रहुई (नालंदा दर्पण)। बिहार के नालंदा जिले के रहुई प्रखंड में स्थित मादाचक प्राथमिक विद्यालय की ये तस्वीरें सिर्फ कीचड़ और पानी की कहानी नहीं बुनतीं, बल्कि लोकतंत्र की जड़ों में जमी हुई उदासीनता की पोल खोलती हैं। मानसून की बौछारें थम चुकी हैं, लेकिन यहां की कच्ची सड़कें अभी भी कीचड़ के जाल में फंसी हुई हैं।

बच्चे स्कूल जाते हुए फिसलते हैं, शिक्षक थकान से चूर होकर पहुंचते हैं और ग्रामीण रोजमर्रा की जद्दोजहद में पसीना बहाते हैं। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से यही जगह 6 नवंबर को दो मतदान बूथों के रूप में सजकर लोकतंत्र का उत्सव मनाएगी। सवाल यह है कि क्या मतदाता इस कीचड़ भरे रास्ते को पार करके वोट डाल पाएंगे या सरकारी वादों की धूल में उनका मताधिकार भी दब जाएगा?

संलग्न तस्वीरों का गहन अध्ययन करने पर साफ झलकता है कि समस्या कितनी गंभीर है। पहली तस्वीर में एक समूह दो महिलाएं और तीन पुरुष कीचड़ भरी नाली जैसे रास्ते पर सावधानी से कदम बढ़ा रहे हैं। पीछे हरा-भरा खेत है, जो विपरीत दृश्य पैदा करता है। दाईं ओर एक छोटा सा तालाब पानी से लबालब भरा है, जो सड़क की खराबी को और उभारता है।

दूसरी तस्वीर में दृश्य और स्पष्ट है कि पेड़-पौधों से घिरा एक पुराना पक्का मकान (स्कूल भवन) दिख रहा है, लेकिन उसके ठीक सामने वाली पगडंडी पर कीचड़ की परत इतनी मोटी है कि पैर धंसते नजर आते हैं। तीसरी तस्वीर में बच्चे और युवा इस रास्ते से गुजरते दिख रहे हैं। एक लड़की नीले स्कूल यूनिफॉर्म में मां के हाथ थामे खड़ी है, जबकि पुरुष जूते उतारकर नंगे पैर चल रहे हैं।

पृष्ठभूमि में हल्की बारिश की बूंदें और धुंधलापन समस्या की पुरानी होने का संकेत देता है। ये तस्वीरें न सिर्फ दृश्यात्मक हैं, बल्कि भावनात्मक अपील भी रखती हैं। एक तरफ प्रकृति की हरियाली, दूसरी तरफ मानव-निर्मित लापरवाही का काला धब्बा।

स्थानीय निवासी बताते हैं कि यह रास्ता हमारी जिंदगी का हिस्सा है। बच्चे स्कूल के लिए सुबह 8 बजे निकलते हैं, दोपहर तक पहुंच पाते हैं। बारिश होते ही यह नाला बन जाता है।

स्कूल की प्राचार्या बताती हैं कि पिछले महीने जिलाधिकारी के प्रतिनिधि आए थे। पानी निकासी के लिए पंप लगवाया और सड़क मरम्मत का वादा किया। लेकिन एक हफ्ते बाद सब वैसा ही। केवल ऊपरी सतह साफ की गई, अंदर का कीचड़ जस का तस। अब चुनाव आ गया है तो क्या जादू हो जाएगा?” जमीनी हकीकत सब कुछ बयान कर रही है।

रहुई प्रखंड विकास अधिकारी का कहना है कि निरीक्षण रिपोर्ट के अनुसार सड़क की मरम्मत के लिए प्रस्ताव भेजा गया है। बजट की कमी के कारण देरी हो रही है, लेकिन चुनाव से पहले काम पूरा कर लिया जाएगा।

लेकिन ग्रामीणों का विश्वास कमजोर पड़ चुका है। मादाचक गांव में कुल 662 मतदाता हैं। 354 पुरुष और 308 महिलाएं। इनमें से अधिकांश बुजुर्ग और महिलाएं हैं, जो इस रास्ते को पार करना उनके लिए जोखिम भरा साबित हो सकता है। एक बुजुर्ग मतदाता ने चिंता जताई कि वोट तो डालना है, लेकिन अगर गिर पड़ीं तो? क्या कोई वाहन सुविधा मिलेगी?

यह समस्या सिर्फ मादाचक तक सीमित नहीं। नालंदा जिले के कई ग्रामीण इलाकों में कच्ची सड़कें और जलजमाव मतदान प्रक्रिया के लिए चुनौती बन चुके हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी स्थितियां मतदान प्रतिशत को प्रभावित करती हैं। 2020 के चुनाव में नालंदा में औसत मतदान 58% रहा था, जो राष्ट्रीय औसत से कम था। क्या इस बार भी कीचड़ लोकतंत्र की राह में बाधा बनेगा?

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