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संकट में धरोहर: इतिहास बनते जा रहे राजगीर के गर्म पानी के झरने

राजगीर (नालंदा दर्पण रिपोर्टर)। अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक धर्म नगरी राजगीर के सुप्रसिद्ध गर्मजल कुंडों एवं झरनों की धारा में हर वर्ष आ रही कमी गंभीर चिंता का विषय बन गयी है। यह प्राकृतिक धरोहर न सिर्फ पर्यटक शहर राजगीर की सांस्कृतिक पहचान का आधार है, बल्कि अपने विशिष्ट औषधीय गुणों के कारण देश-दुनिया के लोगों को स्वास्थ्य लाभ भी प्रदान करती है। गर्म पानी की यह अनमोल संपदा अब निरंतर घटते प्रवाह के कारण संकट में है। इसके अस्तित्व पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। बावजूद शासन-प्रशासन और समाज द्वारा कोई पहल नहीं की जा रही है।

विशेषज्ञों का मत है कि इसके पीछे कई वैज्ञानिक, पर्यावरणीय और मानवीय कारण जुड़े हुए हैं। इसका बड़ा कारण भू-जल स्तर में लगातार गिरावट हो सकता है। कुंड क्षेत्र और आसपास के इलाकों में अनियंत्रित भू-जल दोहन कुंड और झरनों के स्रोतों पर सीधा प्रभाव डाल रहा है। तेजी से बढ़ते बोरिंग, कृषि एवं घरेलू जल उपयोग ने भू-स्तर का प्राकृतिक संतुलन बिगाड़ दिया है। इसका सीधा असर भूमिगत तापीय स्रोतों को मिलने वाला जल-पुनर्भरण कम हो गया है। इससे गर्मजल झरनों की मूल धारा कमजोर पड़ने लगी है।

दूसरा प्रमुख पर्वतीय क्षेत्रों में बढ़ता निर्माण कार्य हो सकता है। पिछले कुछ वर्षों में पहाड़ी इलाकों सप्त धारा ब्रह्म कुंड में होटल, रिसॉर्ट एवं अन्य निर्माण गतिविधियों में भारी वृद्धि हुई है। पहाड़ियों की कटाई मशीनों का कंपन और प्राकृतिक जल प्रवाह वाले मार्गों में अवरोध उत्पन्न होने से भूमिगत गर्मजल चैनलों का नैसर्गिक प्रवाह बाधित हो रहा है। इससे कुंडों में आने वाली धारा का दबाव घट रहा है।

एक बड़ा कारण जल स्रोतों के संरक्षण की कमी भी हो सकती है। कुंडों से जुड़े जलाशयों में गाद जमने, उसकी उड़ाही सफाई में ढिलाई, जल-निकासी मार्गों का अवरुद्ध होना तथा उचित जल प्रबंधन के अभाव ने प्राकृतिक जल प्रवाह को धीमा कर दिया है। भेलवाडोभ जलाशय सहित कई स्थानों पर गाद जमने से कुंडों की जल आपूर्ति प्रभावित होने का अनुमान है।

अवैज्ञानिक हस्तक्षेप और अंधाधुंध डीप बोरिंग भी कारण हो सकता है। कुंड क्षेत्र में कई जगह गहरे स्तर पर बोरिंग कर ठंडा व गर्म पानी निकालने का मामला प्रकाश में आया है। कुछ बोरिंग से गर्मजल सिंचाई और अन्य उपयोगों के लिए खींचा जा रहा है। इस तरह का अत्यधिक दोहन मूल स्रोतों को कमजोर कर देता है। इससे कुंडों और झरनों की धारा साल-दर-साल घटती जा रही है।

लोगों का कहा है कि इन कारणों पर तत्काल प्रभावी कदम नहीं उठाया गया, तो राजगीर के यह अमूल्य गर्मजल कुंड भविष्य में केवल इतिहास के पन्नों में सिमट सकते हैं। वैज्ञानिक अध्ययन, प्राकृतिक मार्गों का संरक्षण, अनियंत्रित बोरिंग पर रोक और पर्यावरण संतुलन बहाली ही इस बहुमूल्य धरोहर को बचाने का एकमात्र उपाय है।

 

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