

राजगीर (नालंदा दर्पण)। भारत के प्राचीन इतिहास को नई तकनीक (इसरो लिडार सर्वे) के साथ उजागर करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की छह सदस्यीय वैज्ञानिक टीम ने राजगीर के पुरातात्विक स्थलों का लिडार (लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग) सर्वे शुरू कर दिया है। यह पहली बार है, जब राजगीर के ऐतिहासिक स्थलों का इतने बड़े पैमाने पर वैज्ञानिक सर्वे किया जा रहा है। इसरो की टीम ने अजातशत्रु किला मैदान और साइक्लोपियन वॉल पर ध्यान केंद्रित करते हुए सर्वे का कार्य तेजी से शुरू किया है।
लिडार तकनीक, जो लेजर किरणों का उपयोग करके सटीक त्रि-आयामी मानचित्रण करती है, पुरातात्विक स्थलों की गहराई से जांच के लिए अत्यंत प्रभावी मानी जाती है। इसरो की टीम ने सर्वे के लिए बड़े ड्रोनों का उपयोग शुरू किया है, जो हवाई स्कैनिंग के माध्यम से क्षेत्र के भू-आकृतियों और पुरातात्विक अवशेषों का विस्तृत डेटा एकत्र कर रहे हैं। यह तकनीक न केवल सतह पर दिखाई देने वाली संरचनाओं को रिकॉर्ड करती है, बल्कि मिट्टी के नीचे छिपे अवशेषों की भी जानकारी प्रदान कर सकती है।
अधीक्षण पुरातत्वविद सुजीत नयन के अनुसार इसरो की वैज्ञानिक टीम बहुत ही व्यवस्थित और वैज्ञानिक तरीके से सर्वे कर रही है। लिडार तकनीक के माध्यम से हमें पुरातात्विक अवशेषों की सटीक जानकारी प्राप्त होगी, जो राजगीर के ऐतिहासिक महत्व को और स्पष्ट करेगी।” उन्होंने आगे कहा कि इस सर्वे से कुछ नए और आश्चर्यजनक तथ्य सामने आ सकते हैं, जो प्राचीन राजगृह के इतिहास को नई रोशनी दे सकते हैं।
बता दें कि राजगीर कभी मगध साम्राज्य की राजधानी थी। जोकि अपने ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। अजातशत्रु किला मैदान, जो मौर्य और मगध काल के अवशेषों का केंद्र है, इस सर्वे का प्रमुख लक्ष्य है। इसके साथ ही साइक्लोपियन वॉल, जिसे प्राचीन राजगृह की सुरक्षा दीवार माना जाता है, वह भी इस सर्वे का हिस्सा है।
साइक्लोपियन वॉल, जो लगभग 40 किलोमीटर लंबी है, राजा बिम्बिसार द्वारा लगभग 2500 साल पहले बनाई गई थी। यह विशाल पत्थरों से निर्मित दीवार प्राचीन भारत की इंजीनियरिंग का एक अद्भुत नमूना है। लिडार सर्वे के माध्यम से हम इस दीवार की संरचना, इसके निर्माण की तकनीक और इसके विस्तार को और बेहतर तरीके से समझ सकेंगे। यह सर्वे न केवल दीवार के दायरे को मैप करेगा, बल्कि इसके आसपास के क्षेत्र में छिपे अन्य पुरातात्विक अवशेषों को भी उजागर कर सकता है।
राजगीर का इतिहास न केवल मगध साम्राज्य से जुड़ा है, बल्कि यह बौद्ध और जैन धर्म के लिए भी एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। भगवान बुद्ध और महावीर दोनों ने इस क्षेत्र में समय बिताया था, और यहाँ की गृधकूट पहाड़ी और सप्तपर्णी गुफा जैसे स्थल आज भी तीर्थस्थलों के रूप में प्रसिद्ध हैं। साइक्लोपियन वॉल और अजातशत्रु किला मैदान जैसे पुरातात्विक स्थल राजगीर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक हैं।
इसरो का यह लिडार सर्वे न केवल इन स्थलों के संरक्षण में मदद करेगा, बल्कि पर्यटन और शैक्षिक अनुसंधान के लिए भी नए अवसर प्रदान करेगा। सर्वे के परिणामों से पुरातत्वविदों को राजगीर के प्राचीन नगर नियोजन, रक्षा प्रणाली और सामाजिक,आर्थिक ढांचे को समझने में सहायता मिलेगी।
इसरो की यह पहल न केवल राजगीर के लिए, बल्कि भारत के अन्य पुरातात्विक स्थलों के लिए भी एक मिसाल बन सकती है। लिडार तकनीक का उपयोग पुरातत्व में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है। क्योंकि यह समय और संसाधनों की बचत करते हुए सटीक परिणाम देता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस सर्वे से प्राप्त डेटा न केवल पुरातत्वविदों के लिए, बल्कि इतिहासकारों, भूगोलवेत्ताओं और तकनीकी विशेषज्ञों के लिए भी महत्वपूर्ण होगा।
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