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बिहार की पृष्ठभूमि पर बनी मगही फिल्म ‘स्वाहा’ ने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर जमाई धाक

मगही फिल्म ‘स्वाहा’ जल्द ही पटना में भी प्रदर्शित की जाएगी, जिससे बिहार और मगही भाषा का गौरव और अधिक बढ़ेगा। यह फिल्म न केवल एक सिनेमाई कृति है, बल्कि बिहार के सांस्कृतिक, सामाजिक, और दार्शनिक पक्षों का एक मजबूत दस्तावेज़ भी है

नालंदा दर्पण डेस्क। बिहार की सांस्कृतिक समृद्धि और सामाजिक संघर्षों की झलक दिखाती मगही भाषा में बनी फिल्म ‘स्वाहा’ ने वैश्विक मंचों पर अपना अलग मुकाम हासिल किया है। इस फिल्म को न केवल देश बल्कि विदेशों में भी दर्शकों और समीक्षकों द्वारा खूब सराहा जा रहा है।

हाल ही में फिल्म को कोलकाता इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के बाद केरल इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल, अजंता एलोरा इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल, ढाका इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल और त्रिशूर फोकलोर फिल्म फेस्टिवल जैसे बड़े आयोजनों में स्क्रीनिंग के लिए चुना गया। सबसे बड़ी उपलब्धि तब आई, जब इसे शंघाई फिल्म फेस्टिवल में दो प्रमुख पुरस्कार- बेस्ट डायरेक्टर और बेस्ट एक्टर मिले। यह 19 वर्षों में पहली बार था कि किसी भारतीय फिल्म ने वहां इतने महत्वपूर्ण पुरस्कार जीते।

फिल्म का निर्देशन अभिलाष शर्मा ने किया है, जो बिहार के सामाजिक संघर्षों और बौद्ध धर्म के गहरे दर्शन को अपने विशिष्ट अंदाज में प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने बताया कि ‘स्वाहा’ का उद्देश्य सृजन और सृजक के बीच के द्वंद्व को उजागर करना है। यह फिल्म समाज की उन समस्याओं को सामने लाती है, जो व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन में संघर्ष का कारण बनती हैं।

फिल्म का मुख्य पात्र नेहुरा (चंद्रशेखर दत्ता) एक शवदाह गृह में काम करता है, जहां उसे जीवन के सही और गलत के बीच लगातार जूझना पड़ता है। फिल्म के अन्य पात्रों में फेकन (सत्य रंजन) अपने परिवार के लिए काम की तलाश में संघर्ष कर रहा है और उसकी पत्नी रुखिया (सोनाली सर्मिस्था) अपने बच्चे को बचाने के लिए संघर्ष करती है। उसकी गहरी मानवीय कहानी दिखाई गई है।

इस फिल्म की शूटिंग गया और राजगीर जैसे ऐतिहासिक स्थलों पर हुई है, जो इसकी प्रामाणिकता को और भी गहरा बनाती है। फिल्म का संगीत देवर्षि ने तैयार किया है, वह लोकसंगीत और आधुनिक धुनों का सुंदर समन्वय है।

‘स्वाहा’ को इटली के लुका फिल्म महोत्सव, आयरलैंड के कैरी इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल, सालेनों फिल्म फेस्टिवल और ब्राजील के ऑल डैट मूव्स इंटरनेशनल फिल्म महोत्सव में भी सराहना मिली है। ढाका इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में इसे ‘स्पिरिचुअल फिल्म’ श्रेणी में जगह दी गई है।

फिल्म के अभिनेता चंद्रशेखर दत्ता कहते हैं कि कोविड-19 के दौरान मैंने कई अपनों को खो दिया। यह फिल्म मेरे भीतर के संघर्ष और डर को व्यक्त करने का माध्यम बनी। नेहुरा के किरदार ने मुझे आत्म निरीक्षण करने का मौका दिया।

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